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SPECIAL: कांकेर में हांफ रही 'पढ़ई तुंहर दुआर' योजना, बिना नेटवर्क डगमगा रहा बच्चों का भविष्य

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Published : Aug 16, 2020, 12:13 AM IST

Updated : Aug 16, 2020, 2:47 AM IST

कोरोना संकट की वजह से बच्चो की शिक्षा पर कोरोना का असर न पड़े, इसके लिए राज्य सरकार ने पढ़ई तुंहर दुआर पोर्टल की शुरुआत की. साथ ही ऑनलाइन क्लास चलाने का फैसला किया, लेकिन कांकेर के वनांचल क्षेत्रों में नेटवर्क और एंड्राइड फोन की उपलब्धता नहीं होने से बच्चों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

problem of students to attend online class
कांकेर में 'पढ़ई तुंहर दुआर' का हाल

कांकेर: कोरोना संकट की वजह से लगभग सभी सेक्टर प्रभावित हुए हैं. ऐसे में 'शिक्षा के मंदिर' स्कूलों के दरवाजे भी अभी तक नहीं खुल सके हैं. बच्चों की शिक्षा पर कोरोना का असर न पड़े इसलिए राज्य सरकार ने पढ़ई तुंहर दुआर पोर्टल की शुरुआत की. सरकार ने ऑनलाइन क्लास चलाने का फैसला किया, जिसके तहत शिक्षकों, बच्चों का रजिस्ट्रेशन कर पढ़ाई भी शुरू कर दी गई, लेकिन कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां बच्चे इस ऑनलाइन क्लास का हिस्सा नहीं बन पा रहे हैं. इसे लेकर कांकेर जिले में ईटीवी भारत ने पड़ताल की, तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. जो राज्य सरकार की इस योजना पर सवाल खड़े कर रहे हैं.

हांफ रही 'पढ़ई तुंहर दुआर' योजना

शहरी इलाकों में डिजिटल शिक्षा को लेकर ज्यादा समस्या नहीं है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में हालात बद से बदतर हैं. नेटवर्क की समस्या से लेकर एंड्राइड फोन की उपलब्धता तक का सामना बच्चों को करना पड़ रहा है.

आंकड़ों के अनुसार-

  • जिले में कुल 1 लाख 23 हजार बच्चे क्लास 1 से 12 तक के हैं.
  • प्रशासन के सर्वे के अनुसार करीब 69 हजार 47 बच्चों के घरों पर एंड्राइड फोन उपलब्ध.
  • तकरीबन 52 हजार 300 बच्चों के पास एंड्राइड फोन की सुविधा ही नहीं है.
  • जिले में अब तक 63 हजार 658 बच्चों ने ही ऑनलाइन क्लास के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है.

नक्सल इलाकों में नेटवर्क एक बड़ी समस्या

ऑनलाइन क्लास में फोन के अलावा नेटवर्क एक बड़ी समस्या है, जिले के अन्तागढ़, कोयलीबेड़ा, दुर्गुकोंदल ये वो इलाके हैं, जहां के गांव में फोन पर बात भी ठीक से नहीं होती है. ऐसे में ऑनलाइन क्लास के लिए इंटरनेट कैसे चलेगा, यह बड़ा सवाल है. अधिकांश इलाके तो ऐसे हैं, जहां नेटवर्क ही नहीं है. जिन इलाकों में नेटवर्क कमजोर है ,उन इलाकों के लिए शिक्षकों और छात्रों का वाट्सअप ग्रुप तैयार किया गया है. जिसके माध्यम से पोर्टल से लर्निंग वीडियो बनाकर ग्रुप में डाला जाता है. जब नेटवर्क होता है, तब बच्चें इसे डाउनलोड करके पढ़ाई करत हैं.

पढ़ें- SPECIAL: सूरजपुर के इस गांव में बच्चों को पढ़ाते हैं 'लाउडस्पीकर गुरुजी' !

जिले में अब तक 7 हजार 755 शिक्षकों का रजिस्ट्रेशन किया गया है. जिसमें से 79 शिक्षकों ने ही क्लास ली है. शिक्षकों ने अब तक 1426 क्लास ली है. जिसमें अब तक 10 हजार बच्चे क्लास अटेंड कर चुके हैं.

दुर्गुकोंदल ब्लॉक में मोबाइल मित्र बना रहे शिक्षक

दुर्गुकोंदल ब्लॉक के शिक्षक ने बताया कि बच्चों के पास फोन नहीं होने से ज्यादा समस्या हो रही है. जिसके कारण जिन बच्चों के पास फोन है, उन्हें अन्य साथियों को साथ लेकर क्लास अटेंड करने को कहा जा रहा है. मोबाइल मित्र के माध्यम से कुछ बच्चे जुड़ रहे हैं, लेकिन नेटवर्क भी बड़ी चुनौती है.

पढ़ें-SPECIAL: कोरोना के कारण 'स्पेशल बच्चों' के स्कूल भी बंद, बढ़ी मुश्किलें

ऑनलाइन क्लास से शिक्षा मुश्किल

जिस तरह के हालात जिले में नजर आ रहे हैं, उससे ऑनलाइन क्लास से शिक्षा बेहद मुश्किल नजर आ रही है. नक्सल प्रभावित इलाकों में आज भी मोबाइल टावर नहीं है, आधे से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही है. ऐसे में 'पढ़ई तुंहर दुआर' योजना जिले में फेल होती नजर आ रही है.

कांकेर: कोरोना संकट की वजह से लगभग सभी सेक्टर प्रभावित हुए हैं. ऐसे में 'शिक्षा के मंदिर' स्कूलों के दरवाजे भी अभी तक नहीं खुल सके हैं. बच्चों की शिक्षा पर कोरोना का असर न पड़े इसलिए राज्य सरकार ने पढ़ई तुंहर दुआर पोर्टल की शुरुआत की. सरकार ने ऑनलाइन क्लास चलाने का फैसला किया, जिसके तहत शिक्षकों, बच्चों का रजिस्ट्रेशन कर पढ़ाई भी शुरू कर दी गई, लेकिन कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां बच्चे इस ऑनलाइन क्लास का हिस्सा नहीं बन पा रहे हैं. इसे लेकर कांकेर जिले में ईटीवी भारत ने पड़ताल की, तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए. जो राज्य सरकार की इस योजना पर सवाल खड़े कर रहे हैं.

हांफ रही 'पढ़ई तुंहर दुआर' योजना

शहरी इलाकों में डिजिटल शिक्षा को लेकर ज्यादा समस्या नहीं है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में हालात बद से बदतर हैं. नेटवर्क की समस्या से लेकर एंड्राइड फोन की उपलब्धता तक का सामना बच्चों को करना पड़ रहा है.

आंकड़ों के अनुसार-

  • जिले में कुल 1 लाख 23 हजार बच्चे क्लास 1 से 12 तक के हैं.
  • प्रशासन के सर्वे के अनुसार करीब 69 हजार 47 बच्चों के घरों पर एंड्राइड फोन उपलब्ध.
  • तकरीबन 52 हजार 300 बच्चों के पास एंड्राइड फोन की सुविधा ही नहीं है.
  • जिले में अब तक 63 हजार 658 बच्चों ने ही ऑनलाइन क्लास के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है.

नक्सल इलाकों में नेटवर्क एक बड़ी समस्या

ऑनलाइन क्लास में फोन के अलावा नेटवर्क एक बड़ी समस्या है, जिले के अन्तागढ़, कोयलीबेड़ा, दुर्गुकोंदल ये वो इलाके हैं, जहां के गांव में फोन पर बात भी ठीक से नहीं होती है. ऐसे में ऑनलाइन क्लास के लिए इंटरनेट कैसे चलेगा, यह बड़ा सवाल है. अधिकांश इलाके तो ऐसे हैं, जहां नेटवर्क ही नहीं है. जिन इलाकों में नेटवर्क कमजोर है ,उन इलाकों के लिए शिक्षकों और छात्रों का वाट्सअप ग्रुप तैयार किया गया है. जिसके माध्यम से पोर्टल से लर्निंग वीडियो बनाकर ग्रुप में डाला जाता है. जब नेटवर्क होता है, तब बच्चें इसे डाउनलोड करके पढ़ाई करत हैं.

पढ़ें- SPECIAL: सूरजपुर के इस गांव में बच्चों को पढ़ाते हैं 'लाउडस्पीकर गुरुजी' !

जिले में अब तक 7 हजार 755 शिक्षकों का रजिस्ट्रेशन किया गया है. जिसमें से 79 शिक्षकों ने ही क्लास ली है. शिक्षकों ने अब तक 1426 क्लास ली है. जिसमें अब तक 10 हजार बच्चे क्लास अटेंड कर चुके हैं.

दुर्गुकोंदल ब्लॉक में मोबाइल मित्र बना रहे शिक्षक

दुर्गुकोंदल ब्लॉक के शिक्षक ने बताया कि बच्चों के पास फोन नहीं होने से ज्यादा समस्या हो रही है. जिसके कारण जिन बच्चों के पास फोन है, उन्हें अन्य साथियों को साथ लेकर क्लास अटेंड करने को कहा जा रहा है. मोबाइल मित्र के माध्यम से कुछ बच्चे जुड़ रहे हैं, लेकिन नेटवर्क भी बड़ी चुनौती है.

पढ़ें-SPECIAL: कोरोना के कारण 'स्पेशल बच्चों' के स्कूल भी बंद, बढ़ी मुश्किलें

ऑनलाइन क्लास से शिक्षा मुश्किल

जिस तरह के हालात जिले में नजर आ रहे हैं, उससे ऑनलाइन क्लास से शिक्षा बेहद मुश्किल नजर आ रही है. नक्सल प्रभावित इलाकों में आज भी मोबाइल टावर नहीं है, आधे से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही है. ऐसे में 'पढ़ई तुंहर दुआर' योजना जिले में फेल होती नजर आ रही है.

Last Updated : Aug 16, 2020, 2:47 AM IST
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