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SPECIAL: चांद पर पहुंचने का दावा, लेकिन 7 दशक में पखांजूर तक नहीं पहुंच पाई सरकार

एक तरफ हम विकास की दौड़ में चांद तक पहुंचने की बात कहते हैं, वहीं दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के परलकोट क्षेत्र के करीब 50 से ज्यादा गांवों के लोग बरसात के दिनों में भगवान भरोसे जीने को मजबूर हैं. विकास का दावा करने वाली सरकारें यहां आजादी के सात दशक बाद भी नदी पर एक पुल-पुलिया नहीं बना सकी है.

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Published : Jul 12, 2020, 6:54 PM IST

Updated : Jul 13, 2020, 5:04 PM IST

villagers forced to cross river in rain
बारिश में नदी पार करने को मजबूर ग्रामीण

पखांजूर: कांकेर जिले के परलकोट क्षेत्र के अंदरूनी इलाके के 50 से ज्यादा गांवों में बारिश के दिनों में हालत बद से बदतर हो जाते है. सड़क मार्ग नहीं होने के कारण ग्रामीणों को बारिश के दिनों में नदी-नालों को नाव के सहारे पारकर जिला मुख्यालय जाना पड़ता है. किसी को अस्पताल पहुंचाना हो या राशन लेना हो इन ग्रामीणों को नाव से नदी पार कर जाना पड़ता है. नदी पार करने के लिए इन ग्रामीणों को 50 रुपये प्रति व्यक्ति किराया भी देना पड़ता है.

नाव से नदी पार कर रहे ग्रामीण

50 से ज्यादा गांवों की हालत दयनीय

छत्तीसगढ़ अब डिजिटल प्रदेश बनता जा रहा है, लेकिन यहां के कई इलाकों में अब भी विकास के नाम पर एक नाम का सहारा है. कांकेर जिले के परलकोट के कई गावों का यहीं हाल है. पखांजूर से लगभग 30 किलोमीटर दूर परलकोट क्षेत्र के करीब 50 से ज्यादा गांव के ग्रामीणों को अब तक मूलभूत सुविधाएं तक नहीं मिल पाई है. सीताराम, बेचाघाट, राजामुंडा, बिनागुंडा, मेसपी, केंगल जैसे 50 से ज्यादा गांव कोटरी नदी के उस पार बसे हैं. गर्मियों के 4 से 5 महीने में कोटरी नदी का जलस्तर कम रहता है, लेकिन बारिश शुरू होने के बाद से करीब 6 से 7 महीनों तक कोटरी नदी में पानी भरा रहता है, जिससे उन दिनों में ग्रामीणों को अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए उफनती हुई कोटरी नदी को पार कर बेटियां बाजार और पखांजूर आना पड़ता है.

पढ़ें: नक्सल प्रभावित आलदंड गांव का हाल, 12 साल की बीमार बच्ची 5 किमी पैदल चलकर पहुंची अस्पताल

वनवास से कम नहीं लोगों का जीवन

villagers crossing the river by boat
नाव से नदी पार कर रहे ग्रामीण
कोटरी नदी के उस पार बसे करीब 50 गांववालों का जीवन वनवास से कम नहीं है. अक्सर इन गांव के ग्रामीणों को घरेलू उपयोगी सामानों के लिए कोटरी नदी को नाव के सहारे पार कर बेटियां बाजार, बांदे बाजार और पखांजूर आना पड़ता है. किसी के बीमार होने की स्थिति में ग्रामीणों को नाव के सहारे जान जोखिम में डालकर नदी पार कर स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचना पड़ता है. यहां तक कि ग्रामीणों द्वारा इकट्ठा किए गए वनोपज को भी बेचने के लिए उन्हें नाव का ही सहारा लेना पड़ता है. इन गांव के चारों ओर नदी-नाले हैं. जो बारिश के दिनों में लबालब भर जाते हैं. इतने साल बीतने के बाद भी शासन-प्रशासन की तरफ से न ही पुलिया बनी और न ही ब्रिज बनाया गया. जिसका खामियाजा इन ग्रामीणों को उठाना पड़ रहा है.

पढ़ें: कछुआ की गति से हो रहा काम, ग्रामीण ने इंजीनियर पर लगाए गंभीर आरोप

किराये पर चलती है नाव

villagers crossing the river by boat
नाव से नदी पार कर रहे ग्रामीण
क्षेत्र में कोटरी नदी के बारकोट घाट और बेचाघाट में ग्रामीणों की तरफ से नाव चलाया जाता है. एक मोटरसाइकिल सहित एक आदमी को एक बार नाव पार करने के लिए नाव का किराया 50 रुपये देना पड़ता है. नाव चलाने के लिए रोज अलग-अलग गांव के नाविकों की जिम्मेदारी होती है.

पढ़ें: SPECIAL: 'न रोका-न छेका', फिर काहे का 'रोका-छेका'

पखांजूर: कांकेर जिले के परलकोट क्षेत्र के अंदरूनी इलाके के 50 से ज्यादा गांवों में बारिश के दिनों में हालत बद से बदतर हो जाते है. सड़क मार्ग नहीं होने के कारण ग्रामीणों को बारिश के दिनों में नदी-नालों को नाव के सहारे पारकर जिला मुख्यालय जाना पड़ता है. किसी को अस्पताल पहुंचाना हो या राशन लेना हो इन ग्रामीणों को नाव से नदी पार कर जाना पड़ता है. नदी पार करने के लिए इन ग्रामीणों को 50 रुपये प्रति व्यक्ति किराया भी देना पड़ता है.

नाव से नदी पार कर रहे ग्रामीण

50 से ज्यादा गांवों की हालत दयनीय

छत्तीसगढ़ अब डिजिटल प्रदेश बनता जा रहा है, लेकिन यहां के कई इलाकों में अब भी विकास के नाम पर एक नाम का सहारा है. कांकेर जिले के परलकोट के कई गावों का यहीं हाल है. पखांजूर से लगभग 30 किलोमीटर दूर परलकोट क्षेत्र के करीब 50 से ज्यादा गांव के ग्रामीणों को अब तक मूलभूत सुविधाएं तक नहीं मिल पाई है. सीताराम, बेचाघाट, राजामुंडा, बिनागुंडा, मेसपी, केंगल जैसे 50 से ज्यादा गांव कोटरी नदी के उस पार बसे हैं. गर्मियों के 4 से 5 महीने में कोटरी नदी का जलस्तर कम रहता है, लेकिन बारिश शुरू होने के बाद से करीब 6 से 7 महीनों तक कोटरी नदी में पानी भरा रहता है, जिससे उन दिनों में ग्रामीणों को अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए उफनती हुई कोटरी नदी को पार कर बेटियां बाजार और पखांजूर आना पड़ता है.

पढ़ें: नक्सल प्रभावित आलदंड गांव का हाल, 12 साल की बीमार बच्ची 5 किमी पैदल चलकर पहुंची अस्पताल

वनवास से कम नहीं लोगों का जीवन

villagers crossing the river by boat
नाव से नदी पार कर रहे ग्रामीण
कोटरी नदी के उस पार बसे करीब 50 गांववालों का जीवन वनवास से कम नहीं है. अक्सर इन गांव के ग्रामीणों को घरेलू उपयोगी सामानों के लिए कोटरी नदी को नाव के सहारे पार कर बेटियां बाजार, बांदे बाजार और पखांजूर आना पड़ता है. किसी के बीमार होने की स्थिति में ग्रामीणों को नाव के सहारे जान जोखिम में डालकर नदी पार कर स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचना पड़ता है. यहां तक कि ग्रामीणों द्वारा इकट्ठा किए गए वनोपज को भी बेचने के लिए उन्हें नाव का ही सहारा लेना पड़ता है. इन गांव के चारों ओर नदी-नाले हैं. जो बारिश के दिनों में लबालब भर जाते हैं. इतने साल बीतने के बाद भी शासन-प्रशासन की तरफ से न ही पुलिया बनी और न ही ब्रिज बनाया गया. जिसका खामियाजा इन ग्रामीणों को उठाना पड़ रहा है.

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किराये पर चलती है नाव

villagers crossing the river by boat
नाव से नदी पार कर रहे ग्रामीण
क्षेत्र में कोटरी नदी के बारकोट घाट और बेचाघाट में ग्रामीणों की तरफ से नाव चलाया जाता है. एक मोटरसाइकिल सहित एक आदमी को एक बार नाव पार करने के लिए नाव का किराया 50 रुपये देना पड़ता है. नाव चलाने के लिए रोज अलग-अलग गांव के नाविकों की जिम्मेदारी होती है.

पढ़ें: SPECIAL: 'न रोका-न छेका', फिर काहे का 'रोका-छेका'

Last Updated : Jul 13, 2020, 5:04 PM IST
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