कांकेर: कहते हैं दान देने वालों की रकम नहीं दिल देखना चाहिए, जो खुद के बुरे वक्त में भी दूसरों का भला चाहते हैं. खुद के हालात आर्थिक रूप से कमजोर हैं, लेकिन प्रदेश को संकट से उबारने के लिए एकजुटता दिखाई है. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है कांकेर के रसोइया संघ ने, जिन्होंने खुद की मानदेय राशि कम होने के बावजूद प्रदेश के लिए हाथ बंटाया है.
रसोइयों का मानदेय इतना कम है कि हम आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इस छोटी रकम से घर चलाना कितना मुश्किल होता होगा. रसोइया संघ ने आज ये साबित कर दिया कि उनका दिल बहुत बड़ा है. रसोइया संघ ने बूंद-बूंद से घड़ा भरने की कहावत को संकट के घड़ी में असहायों की मदद कर साबित कर दिया है और मुख्यमंत्री राहत कोष में 6 लाख 87 हजार रुपये की मदद की है.
सरकार से जंग होने के बाद भी असहयों की मदद
सरकार से रसोइयों की हमेशा से मानदेय को लेकर ठनी रही है, जिससे रसोइयों की आवाज सड़क से लेकर सदन तक गूंजती है. लेकिन सरकार ने इनकी एक न सुनी. रसोइया समाज जिस 1200 के मानदेय से एक जोड़ी कपड़ा खरीदना मुश्किल होता है, लेकिन संघ ने खुद के पेट काटकर असहायों के लिए दान की.
महामारी से छिड़ी जंग में निभाई सहभागिता
रसोइया संघ की सदस्य प्रभा निषाद कहती हैं कि 200 रुपए की मदद करने से हम भूखे नहीं मर जाएंगे, लेकिन मदद नहीं करेंगे तो जरूर कोई भूखा मर सकता है, जिसे देखते हुए 3 हजार 435 रसाइया संघ ने महामारी से छिड़ी जंग में सहभागिता निभाई है. इस पहल को कांकेर कलेक्टर ने भी खूब सराहा है.
रसोइया संघ ने पेश की मिसाल
बहरहाल, रसोइया संघ ने मानदेय को लेकर कई बार आंदोलन किया, धरना प्रदर्शन किया, सड़कों पर उतरकर सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ी कि उनका मानदेय बढ़ाया जाए, लेकिन सरकार ने इनकी एक न सुनी. अब देश में संकट की घड़ी है. कोरोना वायरस से जंग छिड़ी है, जिसे देखते हुए 1200 रुपये महीना के कमाने वाला रसोइया संघ ने मुख्यमंत्री राहत कोष में 6 लाख 87 हजार रुपये दान कर के एक मिसाल पेश की है.