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अनलॉक के बाद घट गए मनरेगा मजदूर

लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों को गांव में काम देने के बाद भी मजदूर वापस शहर लौटने लगे हैं. इसके पीछे कई वजह सामने आ रही है, जैसे प्रवासी मजूदरों को मनरेगा के तहत काम न मिलना, या फिर अगर काम मिला भी तो उन्हें उसका भुगतान के लिए कई दिनों का इंतजार करना पड़ गया. जिससे रोजी-रोटी कमाने वाले मजदूर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं.

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Published : Jan 4, 2021, 6:37 PM IST

MGNREGA laborers decreased after unlock IN KANKER
अनलॉक के बाद घट गए मनरेगा मजदूर

कांकेर: लॉकडाउन में गांव लौटे प्रवासी मजदूर अनलॉक होते ही वापस शहरों की ओर निकल पड़े है. एक बार फिर से गांव की गलियां सूनी हो गई हैं. सरकार भले ही वापस लौटे मजदूरों को मनरेगा के तहत काम देने का दावा कर रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही नजर आ रही है. शायद इसी वजह से घर लौटे मजदूर फिर शहरों की ओर निकल पड़े हैं. जानकारों का मानना है कि कांकेर जिले में लॉकडाउन में घर वापसी के बाद भी मजदूरों का ठीक से रोजगार नहीं मिला, अगर मिला भी तो कई महीनों तक उन्हें उसका भुगतान नहीं किया गया, जिसकी वजह से वे दोबारा वापस लौट गए. इधर अधिकारियों का कहना है कि पलायन की स्थिति नहीं है. कोरोना काल के दौरान जो प्रवासी मजदूर आए थे उनकी संख्या भी काफी कम थी.

अनलॉक के बाद घट गए मनरेगा मजदूर

श्रम विभाग के आंकड़े के अनुसार 4 हजार मजदूर जिले में वापस लौटे थे. मार्च से जुलाई तक मनरेगा के तहत 36 हजार 290 औसत मजदूरों को काम मिला, लेकिन लॉकडाउन खत्म होते ही अनलॉक की प्रक्रिया में मनरेगा मजदूरों की संख्या उतनी ही तेजी से गिर गई. कांकेर में अगस्त से दिसम्बर 2020 तक 1746 मजदूरों को ही मनरेगा के तहत काम मिल पाया. ये आंकड़ा लॉकडाउन के दौरान मनरेगा में काम करने वाले मजदूरों का आधा है.

कोरोना काल में वरदान बना 'मनरेगा' योजना

महामारी के मौजूदा संकट काल में यह योजना न सिर्फ रोजगार देने वाली, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की संचालक बनने का दावा किया गया. शहरों से वापस घर की ओर लॉकडाउन के दौरान लौटे मजदूरों के चलते मनरेगा में काम करने वाले मजदूरों की संख्या में काफी इजाफा हुआ. कांकेर जिले के 7 ब्लॉक कांकेर, चारामा, नरहरपुर, भानुप्रतापपुर, दुर्गुकोंदल, अन्तागढ़, कोयलीबेड़ा में औसत 36 हजार दौ सौ नब्बे औसत मजदूरों को मनरेगा में काम मिला.

'लॉकडाउन में लौटे सभी मजदूरों को नहीं मिला काम '

पूरे मामले को लेकर जब ETV भारत ने मनरेगा मुद्दों पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता केशव शोरी से बात किया तो उन्होंने कहा कि कांकेर जिले में 100 गांवों में उनका संपर्क है. हर गांव में 5 से 10 ऐसे लोग है जो लॉकडाउन के दौरान वापस गांव लौटे थे, लेकिन उन्हें काम नहीं मिला और वो वापस चले गए. शोरी ने कहा कि लोग काम करना चाहते है, उन्हें खुशी ही होगी कि स्थानीय स्तर पर गांव, घर के आसपास उन्हें काम मिल जाए. कई जगह ये बात भी सामने आ रही है कि काम करने के बाद भी उन्हें पेमेंट नहीं किया जा रहा है. कई मनरेगा मजदूरों को 6 महीने से पेमेंट नहीं हुआ है. जबकि कानून कहता है कि 15 दिन के अंदर भुगतान होना चाहिए. इन्हीं सब कारणों से लोग मनरेगा में काम करने लिए उत्सुक नहीं दिख रहे हैं.

पढ़ें: सरगुजा: भीख मांगने को लेकर दो महिलाओं के बीच हुई मारपीट

अनलॉक होते ही वापस लौट गए मजदूर

लॉकडाउन के समय जो दिहाड़ी मजदूर वापस लौटे थे, उन्हें काफी परेशानी का समाना करना पड़ा, वो जैसे ही लौटे 14 दिन उन्हें क्वारंटाइन सेंटर्स में रखा गया. जहां सुविधाओं का अभाव भी रहा.मनरेगा में कुछ दिन काम मिलने के बाद जैसे ही अनलॉक हुआ सभी मजदूर फिर वापस लौट गए.

'पलायन करने वाले मजदूरों को आधिकारिक डेटा नहीं'

श्रम अधिकारी पंकज पिचपोरिया ने बताया कि लॉकडाउन के समय जनपद और नगरीय निकायों से जो जानकरी ली गई है, उसके अनुसार 3 हजार 700 प्रवासी मजदूर जिले में लौटे थे. श्रम विभाग ने शासन से मिलने वाले कौशल विकास योजना के तहत उन श्रमिकों को जोड़ा है. भवन निर्माण में 84 श्रमिकों का पंजीयन किया गया. असंगठित कर्मकार के रूप में 364 श्रमिकों का पंजीयन किया गया. श्रम अधिकारी कहते है अनलॉक होने के बाद जो मजदूर फिर पलायन कर रहे है, उसका कोई आधिकारिक डेटा नहीं है, लेकिन पंचायतों में पलायन पंजी रखेंगे और जो भी श्रमिक बाहर जाएंगे उनका विवरण लिया जाएगा.

पढ़ें: दुर्ग: अवैध प्लाटिंग के खिलाफ चला निगम का बुलडोजर

बरसात में मिट्टी का काम हुआ कम

कांकेर जिला पंचायत सीईओ संजय कन्नौजे ने ETV भारत से चर्चा में कहा कि लॉकडाउन के समय मनरेगा में काफी मजदूर निकले है. उस समय जिले में 65 हजार से 70 हजार तक मजदूर निकल रहे थे, जो 2001 के बाद से सबसे अधिक मजदूरों की संख्या है. मार्च से लेकर जुलाई तक 3 महीना जो लॉकडाउन था उस समय 36 हजार मजदूरों को रोजगार दिया गया. सीईओ आगे कहते है कि उसके बाद बरसात का सीजन लग गया था, बरसात के सीजन में 3 से 4 महीना मिट्टी में होने वाले काम मनरेगा में बंद रहता है. मनरेगा 2 के तहत मटेरियल वर्क का काम होता है, इस वजह से मजदूरों की संख्या में कुछ कमी आई है.

सीईओ ने कहा कि पलायन की स्थिति नहीं है. कोरोना काल के दौरान जो प्रवासी मजदूर आए थे उनकी संख्या भी काफी कम थी.

कांकेर: लॉकडाउन में गांव लौटे प्रवासी मजदूर अनलॉक होते ही वापस शहरों की ओर निकल पड़े है. एक बार फिर से गांव की गलियां सूनी हो गई हैं. सरकार भले ही वापस लौटे मजदूरों को मनरेगा के तहत काम देने का दावा कर रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही नजर आ रही है. शायद इसी वजह से घर लौटे मजदूर फिर शहरों की ओर निकल पड़े हैं. जानकारों का मानना है कि कांकेर जिले में लॉकडाउन में घर वापसी के बाद भी मजदूरों का ठीक से रोजगार नहीं मिला, अगर मिला भी तो कई महीनों तक उन्हें उसका भुगतान नहीं किया गया, जिसकी वजह से वे दोबारा वापस लौट गए. इधर अधिकारियों का कहना है कि पलायन की स्थिति नहीं है. कोरोना काल के दौरान जो प्रवासी मजदूर आए थे उनकी संख्या भी काफी कम थी.

अनलॉक के बाद घट गए मनरेगा मजदूर

श्रम विभाग के आंकड़े के अनुसार 4 हजार मजदूर जिले में वापस लौटे थे. मार्च से जुलाई तक मनरेगा के तहत 36 हजार 290 औसत मजदूरों को काम मिला, लेकिन लॉकडाउन खत्म होते ही अनलॉक की प्रक्रिया में मनरेगा मजदूरों की संख्या उतनी ही तेजी से गिर गई. कांकेर में अगस्त से दिसम्बर 2020 तक 1746 मजदूरों को ही मनरेगा के तहत काम मिल पाया. ये आंकड़ा लॉकडाउन के दौरान मनरेगा में काम करने वाले मजदूरों का आधा है.

कोरोना काल में वरदान बना 'मनरेगा' योजना

महामारी के मौजूदा संकट काल में यह योजना न सिर्फ रोजगार देने वाली, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की संचालक बनने का दावा किया गया. शहरों से वापस घर की ओर लॉकडाउन के दौरान लौटे मजदूरों के चलते मनरेगा में काम करने वाले मजदूरों की संख्या में काफी इजाफा हुआ. कांकेर जिले के 7 ब्लॉक कांकेर, चारामा, नरहरपुर, भानुप्रतापपुर, दुर्गुकोंदल, अन्तागढ़, कोयलीबेड़ा में औसत 36 हजार दौ सौ नब्बे औसत मजदूरों को मनरेगा में काम मिला.

'लॉकडाउन में लौटे सभी मजदूरों को नहीं मिला काम '

पूरे मामले को लेकर जब ETV भारत ने मनरेगा मुद्दों पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता केशव शोरी से बात किया तो उन्होंने कहा कि कांकेर जिले में 100 गांवों में उनका संपर्क है. हर गांव में 5 से 10 ऐसे लोग है जो लॉकडाउन के दौरान वापस गांव लौटे थे, लेकिन उन्हें काम नहीं मिला और वो वापस चले गए. शोरी ने कहा कि लोग काम करना चाहते है, उन्हें खुशी ही होगी कि स्थानीय स्तर पर गांव, घर के आसपास उन्हें काम मिल जाए. कई जगह ये बात भी सामने आ रही है कि काम करने के बाद भी उन्हें पेमेंट नहीं किया जा रहा है. कई मनरेगा मजदूरों को 6 महीने से पेमेंट नहीं हुआ है. जबकि कानून कहता है कि 15 दिन के अंदर भुगतान होना चाहिए. इन्हीं सब कारणों से लोग मनरेगा में काम करने लिए उत्सुक नहीं दिख रहे हैं.

पढ़ें: सरगुजा: भीख मांगने को लेकर दो महिलाओं के बीच हुई मारपीट

अनलॉक होते ही वापस लौट गए मजदूर

लॉकडाउन के समय जो दिहाड़ी मजदूर वापस लौटे थे, उन्हें काफी परेशानी का समाना करना पड़ा, वो जैसे ही लौटे 14 दिन उन्हें क्वारंटाइन सेंटर्स में रखा गया. जहां सुविधाओं का अभाव भी रहा.मनरेगा में कुछ दिन काम मिलने के बाद जैसे ही अनलॉक हुआ सभी मजदूर फिर वापस लौट गए.

'पलायन करने वाले मजदूरों को आधिकारिक डेटा नहीं'

श्रम अधिकारी पंकज पिचपोरिया ने बताया कि लॉकडाउन के समय जनपद और नगरीय निकायों से जो जानकरी ली गई है, उसके अनुसार 3 हजार 700 प्रवासी मजदूर जिले में लौटे थे. श्रम विभाग ने शासन से मिलने वाले कौशल विकास योजना के तहत उन श्रमिकों को जोड़ा है. भवन निर्माण में 84 श्रमिकों का पंजीयन किया गया. असंगठित कर्मकार के रूप में 364 श्रमिकों का पंजीयन किया गया. श्रम अधिकारी कहते है अनलॉक होने के बाद जो मजदूर फिर पलायन कर रहे है, उसका कोई आधिकारिक डेटा नहीं है, लेकिन पंचायतों में पलायन पंजी रखेंगे और जो भी श्रमिक बाहर जाएंगे उनका विवरण लिया जाएगा.

पढ़ें: दुर्ग: अवैध प्लाटिंग के खिलाफ चला निगम का बुलडोजर

बरसात में मिट्टी का काम हुआ कम

कांकेर जिला पंचायत सीईओ संजय कन्नौजे ने ETV भारत से चर्चा में कहा कि लॉकडाउन के समय मनरेगा में काफी मजदूर निकले है. उस समय जिले में 65 हजार से 70 हजार तक मजदूर निकल रहे थे, जो 2001 के बाद से सबसे अधिक मजदूरों की संख्या है. मार्च से लेकर जुलाई तक 3 महीना जो लॉकडाउन था उस समय 36 हजार मजदूरों को रोजगार दिया गया. सीईओ आगे कहते है कि उसके बाद बरसात का सीजन लग गया था, बरसात के सीजन में 3 से 4 महीना मिट्टी में होने वाले काम मनरेगा में बंद रहता है. मनरेगा 2 के तहत मटेरियल वर्क का काम होता है, इस वजह से मजदूरों की संख्या में कुछ कमी आई है.

सीईओ ने कहा कि पलायन की स्थिति नहीं है. कोरोना काल के दौरान जो प्रवासी मजदूर आए थे उनकी संख्या भी काफी कम थी.

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