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केन्या और युगांडा जैसे देशों से ज्यादा है जशपुर में शिशु मृत्यु दर

जशपुर में शिशुमृत्यु दर के आंकड़े कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं. वहीं दूसरी ओर जिम्मेदार इसपर कदम उठाने की जगह कुपोषण को जिम्मेदार बता रहे हैं.

परिजन के साथ मौजूद बच्चे
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Published : Jun 29, 2019, 10:38 AM IST

Updated : Jun 29, 2019, 11:29 AM IST

जशपुर: शिशुमृत्यु दर के मामले में जनजातीय बहुल जशपुर जिला प्रदेश में पहले स्थान पर है. इस जिले का स्टिलबर्थ का आंकड़ा युगांडा और केन्या जैसे पिछड़े देशों की बराबरी कर रहा है. शिशु मृत्यु दर के आसमान छूते आंकड़े के लिए स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी कुपोषण ओर जागरूकता को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.

केन्या और युगांडा से ज्यादा है जशपुर की शिशु मृत्यु दर


खुद को जिम्मेदार नहीं मानता सिस्टम
यूनिवर्सल हैल्थ स्किम की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहे प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग के चिकित्सकों और तकनीकी कर्मचारियों की कमी संवेदना को झकझोर कर रख देने वाले आंकड़ों के लिए सिस्टम खुद को कहीं से भी जिम्मेदार नहीं मानता.

स्वास्थ्य विभाग बना रहा कार्ययोजना
स्वास्थ्य विभाग की समीक्षा बैठक के दौरान कलेक्टर के सामने यह शर्मनाक आंकड़ा उजागर होने पर स्वास्थ्य विभाग अब इस पर नकेल कसने के लिए कार्य योजना बनाने की तैयारी में जुटा है.

आंकड़ों पर लगाम लगाने में असफल प्रशासन
स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में स्टील बर्थ (प्रसव के दौरान मृत शिशु का पैदा होना) सबसे शर्मनाक माना जाता है. शिशु मृत्यु दर का सीधा अर्थ संबंधित क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधा सहित सभी क्षेत्रों में पिछड़ेपन से जोड़ा जाता है. किसी भी देश या प्रदेश की सरकार इस आंकड़े को बढ़ते हुए नहीं देखना चाहती, लेकिन आदिवासी बाहुल्य जसपुर जिले में शासन और प्रशासन इस आंकड़ों को सीमा में बांध कर रखने में पूरी तरह से असफल रहे.

22 फीसदी से अधिक है शिशु मृत्यु दर
आंकड़ों के मुताबिक 2018 19 में जिले में 14629 जीवित प्रसव हुए, जबकी स्टिलबर्थ के 384 मामले सामने आए. यह जीवित प्रसव की तुलना में लगभग 26% है. जिले का यह आंकड़ा देश के शिशु मृत्यु दर में 22% से कहीं अधिक है.

क्या कहते हैं आंकड़े
स्टिलबर्थ के मामले में जिले में सबसे खराब स्थिति कुनकुरी जनपद की है. स्वास्थ विभाग के आंकड़ों के मुताबिक साल 2018-19 में जिले में 3891 जीवित प्रस्ताव प्रसव की तुलना में 131 स्टिलबर्थ के मामले दर्ज किए गए. यह शासन की ओर से निर्धारित 28.8% से 4.9 प्रतिशत अधिक यानी 33.7% हैं.

कहां कितनी है शिशु मृत्यु दर
वहीं जिला चिकित्सालय में 50 बिस्तर वाले मातृ शिशु अस्पताल जैसे आधुनिक चिकित्सा प्रणाली से लैस इस तहसील में शिशु मृत्यु 30.6 प्रतिशत है जो शासन की ओर से निर्धारित लक्ष्य 26.9% से अधिक है इसी तरह बगीचा में यह दर 19%, दुलदुला में 29.7% वहीं कांसाबेल में 19.6%, मनोरा में 8.7% और पत्थलगांव में 27.7 और प्रसार में 24% दर्ज की गई.

स्वास्थ्य महकमे का रिकॉर्ड है खराब
जिले में स्वास्थ्य सेवा किस कदर लचर है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, केंद्र और प्रदेश सरकार के लगातार प्रयास के बाद भी संस्थागत प्रसव के मामले में जिले के स्वास्थ्य महकमे का रिकॉर्ड बेहद खराब है.

शर्मनाक हैं जिले के हालात
स्टिलबर्थ और संस्थागत प्रसव के मामले में जिले में बेहद शर्मनाक आंकड़ों के बारे में जब हमने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से बात की तो, उनका कहना है कि, कुपोषण और जागरूकता की कमी की वजह से जिले की यह स्थिति है.

कलेक्टर ने दिए हालत सुधारने के निर्देश
इस संबंध में सीएमएचओ एस एस पैकरा ने बताया कि 'स्टील बर्थ और संस्थागत प्रसव की स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए कलेक्टर ने इसे तेजी से सुधारने के निर्देश विभाग को दिए हैं'. उन्होंने बताया कि 'स्टिलबर्थ का सीधा संबंध कुपोषण से होता है, जिले के ग्रामीण अंचल पॉस्टिक आहार को लेकर जागरूकता की कमी की वजह से एनीमिया, वजन में कमी शारीरिक कमजोरी जैसी समस्याएं महिलाओं में अपेक्षाकृत अधिक है और इसका सीधा असर गर्भावस्था में महिलाओं और उसके शिशु पर पड़ता है.

जागरुकता की कमी लेती है जान
जागरूकता की कमी और रोगियों की वजह से प्रसव के लिए अब भी लोग स्वास्थ्य केंद्र जाने से हिचकिचाते हैं. कई मामले ऐसे होते हैं, जिनमें गर्भवती महिला की स्थिति बिगड़ जाने पर परिजन अस्पताल आते हैं ऐसे में उसे बचा पाना बेहद मुश्किल हो जाता है.

नई रणनीति से कंट्रोल करेगा विभाग
सीएमएचओ ने बताया कि 'स्थिति को सुधार के लिए स्वास्थ्य विभाग सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के साथ स्वास्थ्य केंद्र हेल्थ वैलनेस सेंटर में गर्भवती माताओं को आकर्षित करने के लिए नई रणनीति के तहत काम शुरू करेगा'. उन्होंने बताया कि 'गर्भधारण करने वाली मां और उनके गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य की निगरानी करना है ताकि स्टीलबर्ड के मामले को न्यूनतम स्तर पर लाया जा सके'.

जशपुर: शिशुमृत्यु दर के मामले में जनजातीय बहुल जशपुर जिला प्रदेश में पहले स्थान पर है. इस जिले का स्टिलबर्थ का आंकड़ा युगांडा और केन्या जैसे पिछड़े देशों की बराबरी कर रहा है. शिशु मृत्यु दर के आसमान छूते आंकड़े के लिए स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी कुपोषण ओर जागरूकता को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.

केन्या और युगांडा से ज्यादा है जशपुर की शिशु मृत्यु दर


खुद को जिम्मेदार नहीं मानता सिस्टम
यूनिवर्सल हैल्थ स्किम की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहे प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग के चिकित्सकों और तकनीकी कर्मचारियों की कमी संवेदना को झकझोर कर रख देने वाले आंकड़ों के लिए सिस्टम खुद को कहीं से भी जिम्मेदार नहीं मानता.

स्वास्थ्य विभाग बना रहा कार्ययोजना
स्वास्थ्य विभाग की समीक्षा बैठक के दौरान कलेक्टर के सामने यह शर्मनाक आंकड़ा उजागर होने पर स्वास्थ्य विभाग अब इस पर नकेल कसने के लिए कार्य योजना बनाने की तैयारी में जुटा है.

आंकड़ों पर लगाम लगाने में असफल प्रशासन
स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में स्टील बर्थ (प्रसव के दौरान मृत शिशु का पैदा होना) सबसे शर्मनाक माना जाता है. शिशु मृत्यु दर का सीधा अर्थ संबंधित क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधा सहित सभी क्षेत्रों में पिछड़ेपन से जोड़ा जाता है. किसी भी देश या प्रदेश की सरकार इस आंकड़े को बढ़ते हुए नहीं देखना चाहती, लेकिन आदिवासी बाहुल्य जसपुर जिले में शासन और प्रशासन इस आंकड़ों को सीमा में बांध कर रखने में पूरी तरह से असफल रहे.

22 फीसदी से अधिक है शिशु मृत्यु दर
आंकड़ों के मुताबिक 2018 19 में जिले में 14629 जीवित प्रसव हुए, जबकी स्टिलबर्थ के 384 मामले सामने आए. यह जीवित प्रसव की तुलना में लगभग 26% है. जिले का यह आंकड़ा देश के शिशु मृत्यु दर में 22% से कहीं अधिक है.

क्या कहते हैं आंकड़े
स्टिलबर्थ के मामले में जिले में सबसे खराब स्थिति कुनकुरी जनपद की है. स्वास्थ विभाग के आंकड़ों के मुताबिक साल 2018-19 में जिले में 3891 जीवित प्रस्ताव प्रसव की तुलना में 131 स्टिलबर्थ के मामले दर्ज किए गए. यह शासन की ओर से निर्धारित 28.8% से 4.9 प्रतिशत अधिक यानी 33.7% हैं.

कहां कितनी है शिशु मृत्यु दर
वहीं जिला चिकित्सालय में 50 बिस्तर वाले मातृ शिशु अस्पताल जैसे आधुनिक चिकित्सा प्रणाली से लैस इस तहसील में शिशु मृत्यु 30.6 प्रतिशत है जो शासन की ओर से निर्धारित लक्ष्य 26.9% से अधिक है इसी तरह बगीचा में यह दर 19%, दुलदुला में 29.7% वहीं कांसाबेल में 19.6%, मनोरा में 8.7% और पत्थलगांव में 27.7 और प्रसार में 24% दर्ज की गई.

स्वास्थ्य महकमे का रिकॉर्ड है खराब
जिले में स्वास्थ्य सेवा किस कदर लचर है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि, केंद्र और प्रदेश सरकार के लगातार प्रयास के बाद भी संस्थागत प्रसव के मामले में जिले के स्वास्थ्य महकमे का रिकॉर्ड बेहद खराब है.

शर्मनाक हैं जिले के हालात
स्टिलबर्थ और संस्थागत प्रसव के मामले में जिले में बेहद शर्मनाक आंकड़ों के बारे में जब हमने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से बात की तो, उनका कहना है कि, कुपोषण और जागरूकता की कमी की वजह से जिले की यह स्थिति है.

कलेक्टर ने दिए हालत सुधारने के निर्देश
इस संबंध में सीएमएचओ एस एस पैकरा ने बताया कि 'स्टील बर्थ और संस्थागत प्रसव की स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए कलेक्टर ने इसे तेजी से सुधारने के निर्देश विभाग को दिए हैं'. उन्होंने बताया कि 'स्टिलबर्थ का सीधा संबंध कुपोषण से होता है, जिले के ग्रामीण अंचल पॉस्टिक आहार को लेकर जागरूकता की कमी की वजह से एनीमिया, वजन में कमी शारीरिक कमजोरी जैसी समस्याएं महिलाओं में अपेक्षाकृत अधिक है और इसका सीधा असर गर्भावस्था में महिलाओं और उसके शिशु पर पड़ता है.

जागरुकता की कमी लेती है जान
जागरूकता की कमी और रोगियों की वजह से प्रसव के लिए अब भी लोग स्वास्थ्य केंद्र जाने से हिचकिचाते हैं. कई मामले ऐसे होते हैं, जिनमें गर्भवती महिला की स्थिति बिगड़ जाने पर परिजन अस्पताल आते हैं ऐसे में उसे बचा पाना बेहद मुश्किल हो जाता है.

नई रणनीति से कंट्रोल करेगा विभाग
सीएमएचओ ने बताया कि 'स्थिति को सुधार के लिए स्वास्थ्य विभाग सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के साथ स्वास्थ्य केंद्र हेल्थ वैलनेस सेंटर में गर्भवती माताओं को आकर्षित करने के लिए नई रणनीति के तहत काम शुरू करेगा'. उन्होंने बताया कि 'गर्भधारण करने वाली मां और उनके गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य की निगरानी करना है ताकि स्टीलबर्ड के मामले को न्यूनतम स्तर पर लाया जा सके'.

Intro:जशपुर स्टिलबर्थ के मामले में जनजातीय बहुल जसपुर जिला प्रदेश में पहले स्थान पर है। इस जिले का स्टिलबर्थ का आंकड़ा युगांडा और केनिया जैसे पिछड़े हुए देशों की बराबरी कर रहा है। शिशु मृत्यु दर के इस आसमान छूते आंकड़े के लिए स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी कुपोषण ओर जागरूकता को जिम्मेदार ठहरा रहे है। युनिवर्सल हैल्थ स्किम की ओर तेजी से कदन बढ़ा रहे इस प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग चिकित्सकों और तकनीकी कर्मचारियों की कमी इस मानवीय संवेदना को झकझोर कर रख देने वाले आंकड़ों के लिए कहीं भी जिम्मेदार नहीं है कलेक्टर द्वारा लिए गए स्वास्थ्य विभाग की समीक्षा बैठक में यह शर्मनाक आंकड़ा उजागर होने पर अब स्वास्थ्य विभाग इस पर नकेल कसने के लिए कार्य योजना बनाने की तैयारी में जुटा हुआ है।


Body:स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में स्टील बर्थ अर्थात प्रसव के दौरान वित्त शिशु का पैदा होना सबसे शर्मनाक माना जाता है शिशु मृत्यु दर का सीधा अर्थ संबंधित क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधा सहित सभी क्षेत्रों में पिछड़ेपन से जोड़ा जाता है किसी भी देश या प्रदेश की सरकार इस आंकड़े को बढ़ते हुए नहीं देखना चाहती लेकिन आदिवासी बाहुल्य जसपुर जिले में शासन और प्रशासन इस आंकड़ों को सीमा में बांध कर रखने में पूरी तरह से विफल साबित हुवे है।
आंकड़ों के मुताबिक 2018 19 में जिले में 14629 जीवित प्रस्ताव के विरुद्ध 384 स्टिलबर्थ का मामला दर्ज किया गया, यह जीवित प्रसव की तुलना में लगभग 26% है जिले का यह आंकड़ा देश के शिशु मृत्यु दर में 22% से कहीं अधिक है स्टिलबर्थ के मामले में जिले में सबसे खराब स्थिति कुनकुरी जनपद की है स्वास्थ विभाग के आंकड़ों के मुताबिक इस तहसील में वर्ष 2018-19 में जिले में 3891 जीवित प्रस्ताव के विरुद्ध 131 स्टिलबर्थ के मामले दर्ज किए गए, यह शासन द्वारा निर्धारित 28.8% से 4.9 प्रतिशत अधिक यानी 33.7% है, वही जिला मुख्यालय के जिला चिकित्सालय में 50 बिस्तर वाले मातृ शिशु अस्पताल जैसे आधुनिक चिकित्सा प्रणाली से लैस इस तहसील में शिशु मृत्यु 30.6 प्रतिशत है जो शासन द्वारा निर्धारित लक्ष्य 26.9% से अधिक है इसी तरह बगीचा में यह दर 19% दुलदुला में 29.7% वही कांसाबेल में 19.6% मनोरा में 8.7% पत्थलगांव में 277 और प्रसार में 24% दर्ज किया गया है,
जीने में स्वास्थ सेवा की लचर व्यवस्था का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि केंद्र व प्रदेश सरकार के लगातार प्रयास के बाद भी संस्थागत प्रसव के मामले में जिले के स्वास्थ्य महकमे का रिकॉर्ड बेहद खराब है।



Conclusion:स्टिलबर्थ और संस्थागत प्रसव के मामले में जिले के इस बेहद शर्मनाक आंकड़े के संबंध में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कुपोषण और जागरूकता की कमी की वजह से जिले की स्थिति है इस संबंध में सीएमएचओ एस एस पैकरा ने बताया कि स्टील बर्थ और संस्थागत प्रसव की स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए कलेक्टर ने इसे तेजी से सुधारने के निर्देश विभाग को दिए हैं उन्होंने बताया कि स्टिलबर्थ का सीधा संबंध कुपोषण से होता है जिले के ग्रामीण अंचल पोस्टिक आहार को लेकर जागरूकता की कमी की वजह से एनीमिया वजन में कमी शारीरिक कमजोरी जैसे समस्याएं महिलाओं में अपेक्षाकृत अधिक है इसका सीधा असर गर्भावस्था में महिलाओं और उसके शिशु पर पड़ता है जागरूकता की कमी और रोगियों की वजह से प्रसव के लिए अब भी लोग स्वास्थ्य केंद्र जाने से हिचकी जाते हैं कई मामले ऐसे होते हैं जिन्हें गर्भवती महिला की स्थिति बिगड़ जाने पर परिजन अस्पताल आते हैं ऐसे में उसे बचा पाना बेहद कठिन हो जाता है सीएमएचओ ने बताया कि स्थिति को सुधार के लिए स्वास्थ्य विभाग सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के साथ स्वास्थ्य केंद्र हेल्थ वैलनेस सेंटर में गर्भवती माताओं को आकर्षित करने के लिए नई रणनीति के तहत काम शुरू करेगा गर्भधारण करने वाली माता और उनके गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य की निगरानी करना है ताकि स्टीलबर्ड के मामले को न्यूनतम स्तर पर लाया जा सके।

बाइट एस एस पैकरा सीएमएचओ जशपुर

तरुण प्रकाश शर्मा
जशपुर

Last Updated : Jun 29, 2019, 11:29 AM IST
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