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जांजगीर-चांपा: कोसा बुनकर ने फांसी लगाकर की आत्महत्या, आर्थिक तंगी से जूझ रहा था परिवार

जांजगीर-चांपा में आर्थिक तंगी से परेशान एक बुनकर ने फांसी लगा खुदकुशी कर ली है. बुनकर की दयनीय स्थिति को पहले भी ETV भारत ने कई बार उठाया है. लगातार हम इनकी परेशानी शासन प्रशासन तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं. आज एक बुनकर ने आर्थिक तंगी से परेशान होकर खुदकुशी कर ली है.

कोसा बुनकर ने फांसी लगाकार की आत्महत्या
कोसा बुनकर ने फांसी लगाकार की आत्महत्या
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Published : Oct 11, 2020, 6:28 PM IST

Updated : Oct 11, 2020, 8:33 PM IST

जांजगीर-चांपा: जिले में आर्थिक तंगी से जूझ रहे एक बुनकर ने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी है. सुरारी लाल देवांगन की लाश चांपा थाना क्षेत्र के हनुमान धारा नर्सरी के एक पेड़ से लटकी मिली है. सुरारी लाल देवांगन चांपा थाना क्षेत्र के कुरदा गांव में किराये के मकान में रहकर जीवन यापन कर रहे थे.

कोसा बुनकर ने फांसी लगाकार की आत्महत्या

सुरारी लाल देवांगन के पुत्र टेकराम देवांगन ने बताया कि कोरोना काल में बुनकरों का व्यवसाय पूरी तरह से बंद है और कहीं भी उन्हें काम नहीं मिल रहा है. 7 महीने से लॉक डाउन की स्थिति में बेरोजगारी की स्थिति झेल रहे हैं. आर्थिक तंगी के कारण पिता ने यह कदम उठाया है. फिलहाल पुलिस जांच में जुटी है.

10 हजार कोसा बुनकर

जिले में लगभग 10 हजार कोसा बुनकर रहते हैं, जो लॉकडाउन के कारण बेरोजगार हो चुके हैं. बुनकरों की स्थिति काफी दयनीय है. न केवल कपड़ा व्यवसाई बल्कि कोसा बुनकर परिवारों की स्थिति भी बेहद खराब है. बुनकर की स्थिति को लेकर पहले भी ETV भारत ने कई बार मुद्दा उठाया है. लगातार हम इनकी परेशानी शासन-प्रशासन तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं. आखिरकार एक बुनकर ने फांसी लगाकार आत्महत्या कर ली है.

जांजगीर-चांपा में कोसा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे लोगों को रोजगार मिल सके. जिले में करीब 10 हजार कोसा बुनकर हैं, जो सस्ता कोसा मिलने पर कोसा उद्योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की बात करते हैं. नोडल अधिकारी ने बताया था कि कोरबा और रायगढ़ जैसे जिलों से कोकून जांजगीर-चांपा भेजा जाता है और वहां उसका धागाकरण किया जाता है. अगर कोसे का उत्पादन बढ़ाया जाता है, तो ग्रामीणों को रोजगार मिलेगा साथ ही प्रदेश में कोसा उत्पादन से इसके निर्यात से राजस्व भी मिलेगा. लेकिन इस आत्महत्या के बाद ये बाते सिर्फ बयानबाजी ही मालूम पड़ती है.

रेशम विभाग के मुताबिक उन्होंने बताया था कि जिले में वर्तमान में 89 लाख रुपये का कोसा उत्पादन हो रहा है. संभावना है कि अगले 5 सालों में कोसे का उत्पादन दो करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा. जिले में करीब 10 हजार कोसा बुनकर हैं, जो सस्ता कोसा मिलने पर कोसा उद्योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की बात करते हैं. लेकिन वर्तमान में कोसा उत्पादन को देखते हुए ऐसा संभव होता नहीं दिखता. अब यह सारी बातें खोखली साबित हो रही है.

ETV भारत ने कई बार उठाया था बुनकरों का मुद्दा

पढ़ें : SPECIAL: कोरोना संकट और सरकार की अनदेखी से 'कोसा नगरी' के बुनकर बेहाल

पढ़ें : SPECIAL: जांजगीर चांपा में कोसा उत्पादन बढ़ाने की जरूरत, ताकि संवर सके लोगों की जिंदगी

पढ़ें : डीबीटी के माध्यम से भुगतान को लेकर बुनकर में विरोध, दूसरे ओर रूख करने को मजबूर

जांजगीर-चांपा: जिले में आर्थिक तंगी से जूझ रहे एक बुनकर ने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी है. सुरारी लाल देवांगन की लाश चांपा थाना क्षेत्र के हनुमान धारा नर्सरी के एक पेड़ से लटकी मिली है. सुरारी लाल देवांगन चांपा थाना क्षेत्र के कुरदा गांव में किराये के मकान में रहकर जीवन यापन कर रहे थे.

कोसा बुनकर ने फांसी लगाकार की आत्महत्या

सुरारी लाल देवांगन के पुत्र टेकराम देवांगन ने बताया कि कोरोना काल में बुनकरों का व्यवसाय पूरी तरह से बंद है और कहीं भी उन्हें काम नहीं मिल रहा है. 7 महीने से लॉक डाउन की स्थिति में बेरोजगारी की स्थिति झेल रहे हैं. आर्थिक तंगी के कारण पिता ने यह कदम उठाया है. फिलहाल पुलिस जांच में जुटी है.

10 हजार कोसा बुनकर

जिले में लगभग 10 हजार कोसा बुनकर रहते हैं, जो लॉकडाउन के कारण बेरोजगार हो चुके हैं. बुनकरों की स्थिति काफी दयनीय है. न केवल कपड़ा व्यवसाई बल्कि कोसा बुनकर परिवारों की स्थिति भी बेहद खराब है. बुनकर की स्थिति को लेकर पहले भी ETV भारत ने कई बार मुद्दा उठाया है. लगातार हम इनकी परेशानी शासन-प्रशासन तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं. आखिरकार एक बुनकर ने फांसी लगाकार आत्महत्या कर ली है.

जांजगीर-चांपा में कोसा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे लोगों को रोजगार मिल सके. जिले में करीब 10 हजार कोसा बुनकर हैं, जो सस्ता कोसा मिलने पर कोसा उद्योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की बात करते हैं. नोडल अधिकारी ने बताया था कि कोरबा और रायगढ़ जैसे जिलों से कोकून जांजगीर-चांपा भेजा जाता है और वहां उसका धागाकरण किया जाता है. अगर कोसे का उत्पादन बढ़ाया जाता है, तो ग्रामीणों को रोजगार मिलेगा साथ ही प्रदेश में कोसा उत्पादन से इसके निर्यात से राजस्व भी मिलेगा. लेकिन इस आत्महत्या के बाद ये बाते सिर्फ बयानबाजी ही मालूम पड़ती है.

रेशम विभाग के मुताबिक उन्होंने बताया था कि जिले में वर्तमान में 89 लाख रुपये का कोसा उत्पादन हो रहा है. संभावना है कि अगले 5 सालों में कोसे का उत्पादन दो करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा. जिले में करीब 10 हजार कोसा बुनकर हैं, जो सस्ता कोसा मिलने पर कोसा उद्योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की बात करते हैं. लेकिन वर्तमान में कोसा उत्पादन को देखते हुए ऐसा संभव होता नहीं दिखता. अब यह सारी बातें खोखली साबित हो रही है.

ETV भारत ने कई बार उठाया था बुनकरों का मुद्दा

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Last Updated : Oct 11, 2020, 8:33 PM IST
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