जांजगीर चांपा : विधानसभा चुनाव से पहले जांजगीर चांपा में पटेल मरार समाज ने प्रतिनिधित्व की मांग उठाई है. मरार समाज ने इसके लिए एक नारा भी दिया है.जिसके मुताबिक बिन मरार कैसी सरकार का स्लोगन समाज प्रचारित कर रहा है. मरार समाज महासंघ के अध्यक्ष ने राजनीतिक दलों से 90 विधानसभा सीटों में से 12 में टिकट देने की मांग की है. इस दौरान मरार समाज ने ऐलान किया है कि जो भी दल उनकी मांगों को दरकिनार करेगा,वो आगामी चुनाव में जरुर हारेगा.
मरार समाज ने बढ़ाई मुश्किल : विधानसभा चुनाव के ठीक पहले मरार समाज के प्रतिनिधियों ने जांजगीर में एक बड़ी प्रेसवार्ता की.इस प्रेसवार्ता में मरार समाज ने दावा किया कि प्रदेश में उनकी जनसंख्या 40 लाख के करीब है.समाज का कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दलों में सक्रिय भूमिका रहती है.बावजूद इसके दोनों ही राष्ट्रीय दलों ने मरार समाज को अनदेखा किया है.जिसका समाज को मलाल है.लिहाजा इस बार मरार समाज ने विधानसभा चुनाव में ताल ठोंकने का मन बनाया है.ऐसे में जो भी दल उनकी मांगों को नहीं मानेगा उस दल को वोट नहीं देने का ऐलान समाज ने किया है.
कई वर्षों से राजनीतिक हिस्सेदारी की मांग कर रहा है समाज :आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद से ही पटेल मरार समाज कांग्रेस और बीजेपी से सत्ता में हिस्सेदारी की मांग कर रहा है.लेकिन दोनों ही दलों से समाज को कुछ खास तवज्जो नहीं मिली.लेकिन अब विधानसभा चुनाव 2023 में समाज ने दोनों दलों के सामने टिकट की मांग उठाई है. जिसमें प्रमुख विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी से जांजगीर-चाम्पा, सक्ती, अकलतरा, कवर्धा, खल्लारी, पंडरिया, महासमुंद, कटघोरा और कांग्रेस से कसडोल, बालोद, अकलतरा, जांजगीर-चाम्पा विधानसभा सीटों की बात की गई है.समाज ने इन सीटों को लेकर दोनों ही राजनीतिक दलों से निवेदन किया है.
'पटेल मरार समाज की जनसंख्या प्रदेश में 40 लाख है.लेकिन अभी तक राजनीतिक में समाज की किसी भी तरह की हिस्सेदारी नहीं है.इस बार यदि विधानसभा में समाज को हिस्सेदारी नहीं मिली तो राजनीतिक दल का विरोध होगा. बिन मरार कैसी सरकार का नारा हर घर तक पहुंचाकर, विरोध किया जाएगा'-देवचरण पटेल, पटेल मरार समाज
किंग मेकर बनना चाहता है मरार समाज : आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव को लेकर पटेल मरार समाज ने कमर कस ली है.इस बार वो किसी भी दल के आश्वासन को नहीं मानने वाले हैं.समाज की माने तो यदि उनकी मांगों को नहीं सुना गया तो दोनों ही दलों को इसका परिणाम भुगतना होगा. ऐसे में समाज का वोट किसी क्षेत्रीय दल को दिया जाएगा. समाज के प्रमुखों का मानना है कि समाज इस बार के चुनाव में किंग मेकर की भूमिका में होगा.