जगदलपुर : बस्तर दशहरा पर्व के लिए महत्वपूर्ण रस्म बेल पूजा की अदायगी की गई. इस रस्म में बेलवृक्ष और उसमें एक साथ लगने वाले दो फलों की पूजा का विधान है. ऐसे इकलौते बेलवृक्ष को बस्तर के लोग अनोखा और दुर्लभ मानते हैं. शहर से लगे ग्राम सरगीपाल में वर्षों पुराना एक बेलवृक्ष है. जिसमें एक के अलावा दो फल भी एक साथ लगते हैं.
बस्तर दशहरा के दौरान अनोखे बेल की पूजा : इस अनोखे बेलवृक्ष और जोड़ी बेल फल की पूजा-अर्चना परंपरा अनुसार की गई. इसी के साथ शनिवार की दोपहर बेलन्योता विधान संपन्न हुआ.यहां के ग्रामीणों की माने तो इस वृक्ष के आगे और पीछे दो और बेलवृक्ष हैं. लेकिन इनमें केवल एक ही फल लगता है. आमतौर पर बस्तर दशहरा पर्व के प्रमुख विधानों की जानकारी ही आम लोगों तक पहुंचती रही है. बेल पूजा विधान की वास्तविकता के बारे में पता लगाने पर एक रोचक कहानी सामने आई.
क्या है बेल न्यौता पूजन की कहानी ? : बस्तर राजपरिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव ने बताया कि वास्तव में यह रस्म विवाहोत्सव से संबंधित है. कमलचंद बताते हैं कि बस्तर चालुक्य वंश के एक राजा सरगीपाल जंगल में शिकार करने गए थे. वहां इस बेलवृक्ष के नीचे खड़ी दो सुंदर कन्याओं को देख राजा ने उनसे विवाह की इच्छा जताई. जिस पर कन्याओं ने उनसे बारात लेकर आने को कहा. अगले दिन जब राजा बारात लेकर वहां पहुंचे तो दोनों कन्याओं ने उन्हें बताया कि वे उनकी ईष्टदेवी माणिकेश्वरी और दंतेश्वरी हैं. उन्होंने हंसी-ठिठोली में राजा को बारात लाने को कह दिया था.
''देवियों की जानकारी होने के बाद शर्मिंदगी महसूस करते हुए राजा ने दंडवत होकर अज्ञानतावश किए गए अपने व्यवहार के लिए दोनों से क्षमा मांगी .इसके साथ ही दोनों देवियों को दशहरा पर्व में शामिल होने का न्योता दिया. तब से यह विधान चला आ रहा है. जोड़ी बेल फल को दोनों देवियों का प्रतीक माना जाता है.'' -कमलचंद भंजदेव, सदस्य, बस्तर राजपरिवार
राजा को भूल का हुआ अहसास : हर साल बेलन्योता में राजा स्वयं इस गांव में आकर जोड़ी बेल फल को पेड़ से तोड़ता है.फिर उसे जगदलपुर स्थित मांई दंतेश्वरी के मंदिर में पूजा-अर्चना के साथ रखता है. इन बेलफलों के गूदे का लेप को छत्र पर लगाया किया जाता है. इसी से राजा स्नान भी करता है. बेल पूजा विधान के दौरान गांव सरगीपाल में उत्सव जैसा माहौल रहता है. स्वागत और बेटी की विदाई दोनों का अभूतपूर्व नजारा यहां देखने को मिलता है.
काफी पुरानी है बेल न्यौता पूजा की परंपरा :ग्रामीण हमीरनाथ यादव ने बताया कि सालों पहले बस्तर के महाराजा सरगीपाल से बेल को शहर ले जाते थे. उस बेल के लेप को पानी मे डालकर नहाते थे. उसका लेप माथे पर लगाकर रथ में चढ़ते थे. जिसके बाद रथ की परिक्रमा करवाई जाती थी. अब बेल को यहां ले जाने के बाद देवी दंतेश्वरी के चरणों मे अर्पण करते हैं. उनके छत्र में बेल का लेप लगाकर और नहलाकर छत्र को रथ में चढ़ाया जाता है. जिसके बाद उनकी परिक्रमा करवाया जाता है.
गांव में उत्सव जैसा रहता है माहौल : बेल पूजा विधान रस्म के दौरान सरगीपाल में काफी उत्साह का माहौल बना रहता है. मानो एक शादी का समारोह सम्पन्न किया जा रहा हो. लोग नाचते गाते हैं. बैंड बाजा की धुन में सभी वर्ग के लोग थिरकते हैं. छोटे बच्चे से लेकर सभी वर्ग के लोग इस दौरान शामिल रहते हैं. अपने घरों से निकलकर पूजा स्थल पहुंचते हैं.
विदेशी भी बस्तर दशहरे का लेते हैं आनंद : विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे को देखने के लिए फ्रांस से पहुंचे पर्यटक लुक ने कहा कि बस्तर में आकर उन्हें काफी अच्छा लगता है. वे इससे पहले भी बस्तर आये हैं. वो बस्तर दशहरा की सभी रस्मों को देख रहे हैं. साथ ही अपने कैमरे में भी तस्वीरों को कैद कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि फ्रांस में भी कई त्योहार मनाए जाते हैं. लेकिन बस्तर दशहरा पर्व की तरह कुछ मनाया नहीं जाता. यही कारण है कि इस अनोखी परमपरा को देखने के लिए बस्तर आये हैं.