जगदलपुर: नक्सल आतंक का पर्याय बन चुके बस्तर में भोले-भाले आदिवासियों को बहका कर नक्सली उनके हाथों में बंदूकें थमा देते हैं. हालांकि बस्तर में अब बदलाव की बयार बहने लगी है. यहां के युवा अब नक्सलियों के बहकावे में नहीं आ रहे हैं और मुख्यधारा में वापस लौट रहे हैं. बस्तर आईजी सुंदरराज पी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि इंटर स्टेट, इंटर डिस्ट्रिक्ट बॉर्डर पर नक्सली सक्रिय हैं और सिक्योरिटी वैक्यूम का फायदा उठाते हैं, लेकिन त्रिवेणी कार्ययोजना 'विश्वास, विकास और सुरक्षा' के जरिए नक्सल मोर्चे पर पुलिस को बड़ी कामयाबी मिल रही है. हालांकि बस्तर की कठिन भौगोलिक परिस्थितियां, IED, गुरिल्ला वॉर से निपटना बड़ी चुनौती है. स्थानीय भाषा सीखना-समझना, पहुंचविहीन इलाके भी बड़े चैलेंज हैं. लेकिन जनता में विश्वास और उम्मीद जगी है. बस्तर की नई पहचान बनाने की कोशिश की जा रही है.
जवाब: पिछड़ा क्षेत्र और शिक्षा की कमी के कारण नक्सलियों ने भोले-भाले ग्रामीणों को अपने झांसे में फंसाया और बस्तर में अपनी पैठ जमाकर हिंसक गतिविधियां शुरू कर दीं. नक्सलियों ने अपनी खोखली विचारधारा से ग्रामीणों को बहला-फुसलाकर नक्सल संगठन से जोड़ा और बस्तर में नक्सलवाद की जड़ को मजबूत किया. लेकिन अब धीरे-धीरे बस्तर की जनता नक्सलियों की खोखली विचारधारा को समझने लगी है और नक्सलियों का साथ छोड़ रही है.
सवाल: बस्तर में नक्सल समस्या को खत्म करने के क्या हैं उपाए ?
जवाब: बस्तर में पुलिस नक्सलियों के खिलाफ त्रिवेणी कार्य योजना, विश्वास विकास और सुरक्षा के तहत काम कर रही है. इस योजना के तहत नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के ग्रामीणों को पुलिस और शासन के प्रति विश्वास दिलाने, उन्हें पूरी तरह से सुरक्षा देने और क्षेत्र के विकास के लिए काम किए जा रहे हैं. पुलिस की इस योजना को अच्छा रिस्पांस भी मिल रहा है. यही वजह है कि अब नक्सल प्रभावित क्षेत्र के ग्रामीण पुलिस के हर कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं. ग्रामीणों का भरोसा जीतकर और नक्सलियों के चेहरे को उजागर करके ही नक्सलवाद को खत्म किया जा सकता है.
सवाल: नक्सलविरोधी अभियान में क्या कुछ और बदलाव होने चाहिए ?
जवाब: आईजी ने बताया कि नक्सल विरोधी अभियान एक डायनामिक प्रतिक्रिया है जिसे वक्त और जरूरत के हिसाब से बदते रहते हैं. उन्होंने बतया कि जनता और पुलिसकर्मियों से मिले फीडबैक से योजना में परिवर्तन करते हैं ताकि शांती व्यवस्था बनी रहे. आईजी ने कहा कि वर्तमान में बस्तर में संचालित किए जा रहे नक्सल विरोधी अभियान से वे संतुष्ट हैं. हालांकि शासन के निर्देशानुसार इन अभियानों में बदलाव भी किए जा सकते हैं.
सवाल: नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जवानों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है ?
जवाब: नक्सल क्षेत्र में काम करने के दौरान सबसे बड़ी समस्या IED प्लांट की जगह को पहचानने में होती है. पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण जवानों को रोजाना बड़े-बड़े पहाड़ों और मौसम की मार का सामना भी करना पड़ता है. कई बार जवानों को मलेरिया और अन्य गंभीर बीमारी से जूझना पड़ता है. इसके बावजूद जवान बरसात, ठंड और तेज धूप में भी नक्सलियों से लोहा लेने के लिए मोर्चा संभाले रहते हैं. उन्होंने बताया कि कोरोना महामारी में बस्तर में तैनात 7 हजार से ज्यादा जवान संक्रमित हो गए थे, बावजूद इसके जवान पीछे नहीं हटे.
सवाल: नक्सलियों के खिलाफ क्या है आगे की रणनीति ?
जवाब: बस्तर में वर्तमान में एंटी नक्सल ऑपरेशन और ग्रामीणों में पुलिस के प्रति विश्वास जीतने के लिए कम्युनिटी पुलिसिंग कार्यक्रम और आमचो बस्तर आमचो पुलिस जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं. जिससे नक्सली बैकफुट पर हैं. उन्होंने बताया कि आने वाले दिनों में अभियानों में और बदलाव किए जाएंगे ताकि ज्यादा से ज्यादा स्थानीय कैडर के नक्सली अपना मन परिवर्तन कर मुख्यधारा से जुड़ सके.
सवाल: नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकास कार्यों के दौरान किन चुनौतियों का करना पड़ता है सामना ?
जवाब: बस्तर पुलिस अभी विकास और सुरक्षा पर काम कर रही है. पुलिस की पहली प्राथमिकता सुरक्षा है. जवानों की सुरक्षा के साथ-साथ नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीणों की सुरक्षा करना है. वहीं दूसरी प्राथमिकता विकास है. इन दोनों योजना के तहत बस्तर पुलिस को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और पग-पग में रास्ते पर बिछे बारूद और नक्सलियों की पैनी नजर से बचना पड़ता है.
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सवाल: पहले के मुकाबले अब ग्रामीणों का नक्सलवाद के प्रति कैसा है रवैया ?
जवाब: पिछले कुछ सालों से जिस तरह से नक्सलियों का हिंसक चेहरा ग्रामीणों के सामने उजागर हो रहा है, उससे निश्चित तौर पर ग्रामीणों का नक्सलवाद से मोहभंग हो रहा है. ग्रामीण समझ गए हैं कि उनके क्षेत्रों में विकास न हो पाने की सबसे बड़ी वजह नक्सलवाद है. नक्सलवाद की वजह से शिक्षा, रोजगार ,सड़क, पुल-पुलिया और अन्य सुविधाओं से ग्रामीण कोसों दूर है. उनके अपने भी उनसे दूर हो रहे हैं. ग्रामीण समझ चुके हैं कि नक्सली संगठन विकास विरोधी हैं और ग्रामीणों का कभी हित नहीं चाहते हैं.
बस्तर आईजी ने बस्तर की जनता और रास्ता भटक कर नक्सलियों के संगठन में शामिल होने वाले स्थनीया युवाओं से मुख्यधारा में जुड़ने की अपील की है. उन्होंने कहा कि नक्सली सरेंडर पॉलिसी से जुड़कर पुनर्वास नीति का लाभ उठाएं और एक अच्छी और सामान्य जिंदगी जिएं. इसके साथ ही उन्होंने स्थानीय जनता से अपील की है कि वे नक्सलवाद को पूरी तरह से नकार दें और उनका विरोध करें. उन्होंने क्षेत्र के विकास के लिए ग्रामीणों को पुलिस और शासन के साथ मिलकर काम करने की बात कही है.