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Chhattisgarh Election 2023 : कांग्रेस बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ा सकता है सर्व आदिवासी समाज, 50 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की तैयारी

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Published : Aug 7, 2023, 8:09 PM IST

Updated : Aug 7, 2023, 8:15 PM IST

Chhattisgarh Election 2023 छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर होती है. कुछ सीटों को छोड़ दें तो पूरे प्रदेश में दो ही दलों पर जनता विश्वास जताती है. लेकिन इस बार होने वाले चुनाव में मुद्दे और राजनीतिक समीकरण का भी असर देखने को मिलेगा. क्योंकि छत्तीसगढ़ आदिवासी प्रदेश माना जाता है. ऐसे में इस बार आदिवासियों की आवाज को लेकर सर्व आदिवासी समाज ने चुनाव में प्रत्याशी उतारने का ऐलान किया है.

Chhattisgarh Election 2023
कांग्रेस बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ा सकता है सर्व आदिवासी समाज
कांग्रेस बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ा सकता है सर्व आदिवासी समाज

जगदलपुर : सर्व आदिवासी समाज पिछले कई साल से अपनी मांगों को लेकर सरकार के सामने गुहार लगा रही है.चाहे वो आरक्षण का मुद्दा हो, पेसा कानून की बात हो या फिर शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के आधार पर प्रवेश का मामला.लेकिन अभी तक आदिवासियों की मांगों को लेकर सरकार की ओर से सकारात्मक कदम नहीं उठाया गया है. जिससे समाज में आक्रोश है. सर्व आदिवासी समाज के संरक्षक अरविंद नेताम कई मौकों पर इस बात को कहा है कि आदिवासियों के अस्तित्व को खत्म करने का काम किया जा रहा है.लिहाजा अब समाज ने छत्तीसगढ़ की 50 सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बनाया है.इसके लिए सर्व आदिवासी समाज नई पार्टी के नाम से मैदान में उतरेगी.

50 सीटों पर आदिवासी समाज झोकेगा ताकत : जिन पचास सीटों को समाज ने चुना है.उनमें से 30 सीट आरक्षित हैं.वहीं जिन सीटों में आदिवासियों की संख्या 20 से 70 हजार के बीच है.वहां भी सर्व आदिवासी समाज अपने प्रत्याशियों को उतारेगी.छत्तीसगढ़ में ऐसी सीटों की संख्या 20 के आसपास मानी जा रही है. इसके साथ ही अरविंद नेताम ने कहा है कि वो दूसरी विधानसभा के प्रत्याशियों और समाज को भी ये दावत दे रहे हैं कि वो उन्हीं के बैनर से चुनाव लड़े,ताकि आदिवासियों का वोट प्रत्याशी को मिल सके.

सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले चुनाव नहीं लड़ेंगे. बल्कि चुनाव के लिए एक अलग से दल का गठन किया गया है. जिसकी रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया दिल्ली में की जा रही है. जल्द ही चुनाव आयोग इस बारे में जानकारी देगा और उस दल का नाम छत्तीसगढ़ में सार्वजनिक किया जाएगा.कांग्रेस के शो कॉज नोटिस का जवाब भी छत्तीसगढ़ प्रभारी कुमारी सेलजा को सौंप दिया है.फाइनल जवाब का इंतजार कर रहे हैं. जैसे ही कांग्रेस का जवाब आएगा.हम फैसला लेंगे. -अरविंद नेताम, संरक्षक सर्व आदिवासी समाज

क्यों लड़ रही है सर्व आदिवासी समाज चुनाव ? : अरविंद नेताम की माने तो पिछले 15 सालों में आदिवासी समाज ने अपनी मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन किया गया, जिनमें उनके संवैधानिक अधिकार भी शामिल थे. जल, जंगल, जमीन पर अधिकार भी अब धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. पेसा कानून का नियम भी अब धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. यह देखा जा रहा है कि आदिवासियों के अधिकारों का हनन हो रहा है. अब आदिवासी समाज अपने अस्तित्व की लड़ाई पर पहुंच गया है. समाज के पास और कोई दूसरा विकल्प बचा नहीं है. आदिवासी समाज खतरे में है. यही कारण है कि अपना अस्तित्व बचाने के लिए आदिवासी समाज 2023 के विधानसभा चुनाव में अपने प्रत्याशी उतारेंगे.

कांग्रेस को झेलना पड़ेगा ज्यादा नुकसान: राजनीति जानकर और वरिष्ठ पत्रकार सुरेश रावल सर्व आदिवासी समाज के चुनाव लड़ने पर जरा भी हैरानी नहीं जताते. उनका मानना है कि सर्व आदिवासी समाज की ओर से प्रत्याशी उतारने और चुनावी तैयारी देखने के बाद ही नतीजों का अनुमान लगाया जा सकता है.

आदिवासी समाज के द्वारा प्रत्याशी मैदान में उतारने के बाद ही नुकसान का पता चलेगा. लेकिन चुनाव लड़ने से कांग्रेस को ज्यादा नुकसान होगा क्योंकि अरविंद नेताम की पृष्टभूमि कांग्रेस है. अरविंद नेताम शुरू से ही कांग्रेस के कद्दावर सक्रिय नेता रहे हैं. केंद्रीय मंत्री के साथ ही सांसद रहे हैं. भाजपा को इससे तब नुकसान होगा जब भाजपा के नेता आदिवासियों के पक्ष में होंगे, चाहे वह राजाराम तोडेम हों या फिर दशरथ कश्यप. यह आंकलन प्रत्याशी मैदान में उतारने के बाद ही होगा. -सुरेश रावल, राजनीति जानकर और वरिष्ठ पत्रकार

सर्व आदिवासी समाज विधानसभा चुनाव में दिखा सकती है दमखम
मणिपुर हिंसा के विरोध में सर्व आदिवासी समाज ने किया बस्तर बंद
समान नागरिकता के खिलाफ सर्व आदिवासी समाज

क्या पड़ेगा चुनाव में असर : छत्तीसगढ़ की राजनीति में आदिवासी वोट बैंक के प्रभाव को कम नहीं समझा जा सकता. पिछले चार बार के चुनाव में आदिवासियों का रुझान जिस पार्टी की ओर गया उसे सत्ता मिली. लेकिन इस बार आदिवासी अपने अधिकारों को लेकर लामबंद है. कई मौकों पर प्रदेश सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर चुके हैं. ऐसे में सर्व आदिवासी समाज का दमखम के साथ 50 सीटों पर चुनाव लड़ना, चुनावी नतीजों पर असर डाल सकता है.

कांग्रेस बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ा सकता है सर्व आदिवासी समाज

जगदलपुर : सर्व आदिवासी समाज पिछले कई साल से अपनी मांगों को लेकर सरकार के सामने गुहार लगा रही है.चाहे वो आरक्षण का मुद्दा हो, पेसा कानून की बात हो या फिर शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के आधार पर प्रवेश का मामला.लेकिन अभी तक आदिवासियों की मांगों को लेकर सरकार की ओर से सकारात्मक कदम नहीं उठाया गया है. जिससे समाज में आक्रोश है. सर्व आदिवासी समाज के संरक्षक अरविंद नेताम कई मौकों पर इस बात को कहा है कि आदिवासियों के अस्तित्व को खत्म करने का काम किया जा रहा है.लिहाजा अब समाज ने छत्तीसगढ़ की 50 सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बनाया है.इसके लिए सर्व आदिवासी समाज नई पार्टी के नाम से मैदान में उतरेगी.

50 सीटों पर आदिवासी समाज झोकेगा ताकत : जिन पचास सीटों को समाज ने चुना है.उनमें से 30 सीट आरक्षित हैं.वहीं जिन सीटों में आदिवासियों की संख्या 20 से 70 हजार के बीच है.वहां भी सर्व आदिवासी समाज अपने प्रत्याशियों को उतारेगी.छत्तीसगढ़ में ऐसी सीटों की संख्या 20 के आसपास मानी जा रही है. इसके साथ ही अरविंद नेताम ने कहा है कि वो दूसरी विधानसभा के प्रत्याशियों और समाज को भी ये दावत दे रहे हैं कि वो उन्हीं के बैनर से चुनाव लड़े,ताकि आदिवासियों का वोट प्रत्याशी को मिल सके.

सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले चुनाव नहीं लड़ेंगे. बल्कि चुनाव के लिए एक अलग से दल का गठन किया गया है. जिसकी रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया दिल्ली में की जा रही है. जल्द ही चुनाव आयोग इस बारे में जानकारी देगा और उस दल का नाम छत्तीसगढ़ में सार्वजनिक किया जाएगा.कांग्रेस के शो कॉज नोटिस का जवाब भी छत्तीसगढ़ प्रभारी कुमारी सेलजा को सौंप दिया है.फाइनल जवाब का इंतजार कर रहे हैं. जैसे ही कांग्रेस का जवाब आएगा.हम फैसला लेंगे. -अरविंद नेताम, संरक्षक सर्व आदिवासी समाज

क्यों लड़ रही है सर्व आदिवासी समाज चुनाव ? : अरविंद नेताम की माने तो पिछले 15 सालों में आदिवासी समाज ने अपनी मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन किया गया, जिनमें उनके संवैधानिक अधिकार भी शामिल थे. जल, जंगल, जमीन पर अधिकार भी अब धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. पेसा कानून का नियम भी अब धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. यह देखा जा रहा है कि आदिवासियों के अधिकारों का हनन हो रहा है. अब आदिवासी समाज अपने अस्तित्व की लड़ाई पर पहुंच गया है. समाज के पास और कोई दूसरा विकल्प बचा नहीं है. आदिवासी समाज खतरे में है. यही कारण है कि अपना अस्तित्व बचाने के लिए आदिवासी समाज 2023 के विधानसभा चुनाव में अपने प्रत्याशी उतारेंगे.

कांग्रेस को झेलना पड़ेगा ज्यादा नुकसान: राजनीति जानकर और वरिष्ठ पत्रकार सुरेश रावल सर्व आदिवासी समाज के चुनाव लड़ने पर जरा भी हैरानी नहीं जताते. उनका मानना है कि सर्व आदिवासी समाज की ओर से प्रत्याशी उतारने और चुनावी तैयारी देखने के बाद ही नतीजों का अनुमान लगाया जा सकता है.

आदिवासी समाज के द्वारा प्रत्याशी मैदान में उतारने के बाद ही नुकसान का पता चलेगा. लेकिन चुनाव लड़ने से कांग्रेस को ज्यादा नुकसान होगा क्योंकि अरविंद नेताम की पृष्टभूमि कांग्रेस है. अरविंद नेताम शुरू से ही कांग्रेस के कद्दावर सक्रिय नेता रहे हैं. केंद्रीय मंत्री के साथ ही सांसद रहे हैं. भाजपा को इससे तब नुकसान होगा जब भाजपा के नेता आदिवासियों के पक्ष में होंगे, चाहे वह राजाराम तोडेम हों या फिर दशरथ कश्यप. यह आंकलन प्रत्याशी मैदान में उतारने के बाद ही होगा. -सुरेश रावल, राजनीति जानकर और वरिष्ठ पत्रकार

सर्व आदिवासी समाज विधानसभा चुनाव में दिखा सकती है दमखम
मणिपुर हिंसा के विरोध में सर्व आदिवासी समाज ने किया बस्तर बंद
समान नागरिकता के खिलाफ सर्व आदिवासी समाज

क्या पड़ेगा चुनाव में असर : छत्तीसगढ़ की राजनीति में आदिवासी वोट बैंक के प्रभाव को कम नहीं समझा जा सकता. पिछले चार बार के चुनाव में आदिवासियों का रुझान जिस पार्टी की ओर गया उसे सत्ता मिली. लेकिन इस बार आदिवासी अपने अधिकारों को लेकर लामबंद है. कई मौकों पर प्रदेश सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर चुके हैं. ऐसे में सर्व आदिवासी समाज का दमखम के साथ 50 सीटों पर चुनाव लड़ना, चुनावी नतीजों पर असर डाल सकता है.

Last Updated : Aug 7, 2023, 8:15 PM IST
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