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बस्तर: 8 महीने में 300 नवजातों ने तोड़ा दम, कुपोषण और मांओं की कमजोर सेहत बड़ी वजह

शासन-प्रशासन के लाख दावे के बाद भी बस्तर जिले में नवजात बच्चों की मृत्यु दर में कोई कमी नहीं आई है. छत्तीसगढ़ में बस्तर शिशु मृत्यु दर के मामले में चौथे सबसे बड़े जिले में शामिल हो गया है. चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक शिशु मृत्यु दर का प्रमुख कारण ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं का एनीमिक होना है. सुदूर अंचल क्षेत्रों में गरीबी इसकी एक प्रमुख वजह है. कुपोषण और गर्भ के दौरान पौष्टिक आहार विहार का अभाव एक महत्वपूर्ण कारण है.

Bastar district ranks fourth in newborn mortality in Chhattisgarh
छत्तीसगढ़ में नवजात शिशुओं के मृत्यु दर में बस्तर जिला चौथे स्थान पर
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Published : Dec 9, 2020, 1:36 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

जगदलपुर: बस्तर जिले में प्रशासन सुरक्षित प्रसव एवं सुपोषण के लाख दावे करे लेकिन नवजात बच्चों की मृत्यु दर में इजाफा ही हो रहा है. अप्रैल महीने से लेकर 30 नवंबर तक बीते 8 माह में जिला अस्पताल समेत सीएचसी व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में 300 से ज्यादा शिशुओं और 8 महिलाओं की मृत्यु हुई है. छत्तीसगढ़ में बस्तर जिला शिशु मृत्यु दर के मामले में चौथे सबसे बड़े जिले में शामिल हो गया है.

छत्तीसगढ़ में नवजात शिशुओं के मृत्यु दर में बस्तर जिला चौथे स्थान पर

संस्थागत प्रसव बढ़े फिर भी नवजात मृत्यु दर में इजाफा

Bastar district ranks fourth in newborn mortality in Chhattisgarh
बस्तर का शासकीय हॉस्पिटल

स्वास्थ्य अमला सुरक्षित प्रसव के लिए पर्याप्त व्यवस्था किए जाने के दावे करता आया है. हर गांव में मितानिन की नियुक्ति समेत जननी सुरक्षा योजना के जरिए संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के दावे भी किए जाते है. शासन स्तर पर भी मातृ व शिशु मृत्यु दर रोकने पायलट प्रोजेक्ट चलाने के दावे भी किए जा रहे है, बावजूद इसके बस्तर संभाग में हर साल नवजात शिशुओं की मृत्यु दर में तेजी से इजाफा हो रहा है. तमाम दावों के बाद भी आदिवासी अंचलों में नवजात बच्चे मौत के मुंह में क्यों समा रहे हैं, ये बड़ा सवाल बना हुआ है.

पढ़ें: मुख्यमंत्री सुपोषण योजना बनी वरदान, एनीमिया से महिलाएं जीत रही जंग, बच्चों को मिल रहा न्यूट्रिशन

8 माह में 300 से ज्यादा नवजात की मौत

Bastar district ranks fourth in newborn mortality in Chhattisgarh
छत्तीसगढ़ में नवजात शिशुओं के मृत्यु दर में बस्तर जिला चौथे स्थान पर

स्वास्थ्य विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक बीते अप्रैल माह से लेकर 30 नवंबर तक जिले में कुल 300 से अधिक शिशुओं की मृत्यु हुई है. 8 महिलाओं की भी प्रसव के दौरान मौत हुई है. चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक शिशु मृत्यु दर का प्रमुख कारण ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं का एनीमिक होना है. सुदूर अंचल क्षेत्रों में गरीबी इसकी एक प्रमुख वजह है. कुपोषण और गर्भ के दौरान पौष्टिक आहार विहार का अभाव एक महत्वपूर्ण कारण है.

महिलाओं में जागरूकता की कमी

ETV भारत से बातचीत के दौरान स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर महिलाएं मितानिन और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ स्वास्थ्य कर्मियों की सलाह नहीं मानती है. गर्भावस्था के दौरान आयरन व कैल्शियम की दवा समेत पौष्टिक आहार नहीं लेती है. इसके चलते प्रसव के दौरान शिशु की मौत की आशंका बढ़ जाती है. चिकित्सकों की मानें तो महिलाओं में खून की कमी ब्लड प्रेशर और ब्लीडिंग टेंडेंसी शिशु मृत्यु के कारकों में से एक है.

पढ़ें: आंगनबाड़ी केन्द्रों के माध्यम से गर्भवती और एनीमिक महिलाओं को दिया जा रहा है गरम खाना

जापानी इंसेफेलाइटिस भी ले रहा नवजातों की जान

इसके साथ ही ये बात भी निकलकर सामने आ रही है कि बस्तर में पिछले कुछ सालों से जापानी इंसेफेलाइटिस का भी प्रकोप है. जिसके चलते नवजात शिशु इस बीमारी के चपेट में आकर दम तोड़ रहे हैं. स्वास्थ्य विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक जापानी इंसेफेलाइटिस ( जेई ) से कुछ सालों में 60 से अधिक बच्चों की मौत हुई है. इसके अलावा इंद्रधनुष टीकाकरण (MR) और अन्य टीकाकरण नहीं होने से कई बच्चे भी मौत के मुंह में समाए हैं.

31 दिसंबर तक 95% टीकाकरण का लक्ष्य

हालांकि स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि बस्तर जिले में जापानी इंसेफेलाइटिस का 70% टीकाकरण हो चुका है. इंद्रधनुष टीकाकरण भी लगभग 65% हुआ है, जबकि अन्य टीकाकरण में बस्तर जिले में 100 में से 35% बच्चों का टीकाकरण हो पाया है. विभाग के अधिकारियों का दावा है कि 31 दिसंबर तक जापानी इंसेफेलाइटिस से लेकर अन्य टीकाकरण लक्ष्य के अनुसार 95% तक पहुंचाया जाएगा. दिसंबर महीना खत्म होने को कुछ ही दिन बचे हैं, ऐसे में देखना होगा कि स्वास्थ्य विभाग अपने लक्ष्य के करीब पहुंच पाता है या नहीं.

पढ़ें: दुर्ग: कुपोषण दर में आई कमी, मुख्यमंत्री सुपोषण योजना के तहत बच्चों को बांटा गया था राशन

'जल्द खत्म होगा कुपोषण'

जगदलपुर विधायक और बस्तर कलेक्टर रजत बंसल ने बस्तर में कुपोषण से लड़ने के लिए सारे इंतजामात कर लेने के दावे किए हैं. कुपोषण की वजह से हो रहे शिशुओं की मृत्यु दर को गंभीरता से लेते हुए इसके लिए विशेष कार्यक्रम चलाकर जल्द से जल्द बस्तर को कुपोषण मुक्त बनाने और नवजात शिशुओं की मृत्यु दर में कमी लाने के लिए प्रयास करने के दावे किए गए हैं.

जगदलपुर: बस्तर जिले में प्रशासन सुरक्षित प्रसव एवं सुपोषण के लाख दावे करे लेकिन नवजात बच्चों की मृत्यु दर में इजाफा ही हो रहा है. अप्रैल महीने से लेकर 30 नवंबर तक बीते 8 माह में जिला अस्पताल समेत सीएचसी व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में 300 से ज्यादा शिशुओं और 8 महिलाओं की मृत्यु हुई है. छत्तीसगढ़ में बस्तर जिला शिशु मृत्यु दर के मामले में चौथे सबसे बड़े जिले में शामिल हो गया है.

छत्तीसगढ़ में नवजात शिशुओं के मृत्यु दर में बस्तर जिला चौथे स्थान पर

संस्थागत प्रसव बढ़े फिर भी नवजात मृत्यु दर में इजाफा

Bastar district ranks fourth in newborn mortality in Chhattisgarh
बस्तर का शासकीय हॉस्पिटल

स्वास्थ्य अमला सुरक्षित प्रसव के लिए पर्याप्त व्यवस्था किए जाने के दावे करता आया है. हर गांव में मितानिन की नियुक्ति समेत जननी सुरक्षा योजना के जरिए संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के दावे भी किए जाते है. शासन स्तर पर भी मातृ व शिशु मृत्यु दर रोकने पायलट प्रोजेक्ट चलाने के दावे भी किए जा रहे है, बावजूद इसके बस्तर संभाग में हर साल नवजात शिशुओं की मृत्यु दर में तेजी से इजाफा हो रहा है. तमाम दावों के बाद भी आदिवासी अंचलों में नवजात बच्चे मौत के मुंह में क्यों समा रहे हैं, ये बड़ा सवाल बना हुआ है.

पढ़ें: मुख्यमंत्री सुपोषण योजना बनी वरदान, एनीमिया से महिलाएं जीत रही जंग, बच्चों को मिल रहा न्यूट्रिशन

8 माह में 300 से ज्यादा नवजात की मौत

Bastar district ranks fourth in newborn mortality in Chhattisgarh
छत्तीसगढ़ में नवजात शिशुओं के मृत्यु दर में बस्तर जिला चौथे स्थान पर

स्वास्थ्य विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक बीते अप्रैल माह से लेकर 30 नवंबर तक जिले में कुल 300 से अधिक शिशुओं की मृत्यु हुई है. 8 महिलाओं की भी प्रसव के दौरान मौत हुई है. चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक शिशु मृत्यु दर का प्रमुख कारण ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं का एनीमिक होना है. सुदूर अंचल क्षेत्रों में गरीबी इसकी एक प्रमुख वजह है. कुपोषण और गर्भ के दौरान पौष्टिक आहार विहार का अभाव एक महत्वपूर्ण कारण है.

महिलाओं में जागरूकता की कमी

ETV भारत से बातचीत के दौरान स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर महिलाएं मितानिन और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ स्वास्थ्य कर्मियों की सलाह नहीं मानती है. गर्भावस्था के दौरान आयरन व कैल्शियम की दवा समेत पौष्टिक आहार नहीं लेती है. इसके चलते प्रसव के दौरान शिशु की मौत की आशंका बढ़ जाती है. चिकित्सकों की मानें तो महिलाओं में खून की कमी ब्लड प्रेशर और ब्लीडिंग टेंडेंसी शिशु मृत्यु के कारकों में से एक है.

पढ़ें: आंगनबाड़ी केन्द्रों के माध्यम से गर्भवती और एनीमिक महिलाओं को दिया जा रहा है गरम खाना

जापानी इंसेफेलाइटिस भी ले रहा नवजातों की जान

इसके साथ ही ये बात भी निकलकर सामने आ रही है कि बस्तर में पिछले कुछ सालों से जापानी इंसेफेलाइटिस का भी प्रकोप है. जिसके चलते नवजात शिशु इस बीमारी के चपेट में आकर दम तोड़ रहे हैं. स्वास्थ्य विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक जापानी इंसेफेलाइटिस ( जेई ) से कुछ सालों में 60 से अधिक बच्चों की मौत हुई है. इसके अलावा इंद्रधनुष टीकाकरण (MR) और अन्य टीकाकरण नहीं होने से कई बच्चे भी मौत के मुंह में समाए हैं.

31 दिसंबर तक 95% टीकाकरण का लक्ष्य

हालांकि स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि बस्तर जिले में जापानी इंसेफेलाइटिस का 70% टीकाकरण हो चुका है. इंद्रधनुष टीकाकरण भी लगभग 65% हुआ है, जबकि अन्य टीकाकरण में बस्तर जिले में 100 में से 35% बच्चों का टीकाकरण हो पाया है. विभाग के अधिकारियों का दावा है कि 31 दिसंबर तक जापानी इंसेफेलाइटिस से लेकर अन्य टीकाकरण लक्ष्य के अनुसार 95% तक पहुंचाया जाएगा. दिसंबर महीना खत्म होने को कुछ ही दिन बचे हैं, ऐसे में देखना होगा कि स्वास्थ्य विभाग अपने लक्ष्य के करीब पहुंच पाता है या नहीं.

पढ़ें: दुर्ग: कुपोषण दर में आई कमी, मुख्यमंत्री सुपोषण योजना के तहत बच्चों को बांटा गया था राशन

'जल्द खत्म होगा कुपोषण'

जगदलपुर विधायक और बस्तर कलेक्टर रजत बंसल ने बस्तर में कुपोषण से लड़ने के लिए सारे इंतजामात कर लेने के दावे किए हैं. कुपोषण की वजह से हो रहे शिशुओं की मृत्यु दर को गंभीरता से लेते हुए इसके लिए विशेष कार्यक्रम चलाकर जल्द से जल्द बस्तर को कुपोषण मुक्त बनाने और नवजात शिशुओं की मृत्यु दर में कमी लाने के लिए प्रयास करने के दावे किए गए हैं.

Last Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST
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