ETV Bharat / state

1 जुलाई 1992 भिलाई का वो काला दिन, जब मजदूरों पर दागी गई थी गोलियां, 16 श्रमिकों की हुई थी मौत

1 जुलाई 1992 की सुबह भिलाई के 16 मजदूरों के लिए आखिरी सुबह बनकर आई थी. अपनी मांगों को मनवाने के लिए हजारों मजदूर भिलाई पावर हाउस रेलवे स्टेशन के ट्रैक पर बैठ गए थे. पुलिस ने उन्हें काफी समझाने की कोशिश की, लेकिन जब वे नहीं माने तो पुलिस ने अंधाधुंध फायरिंग कर दी. जिससे मौके पर 16 मजदूरों की मौत हो गई. आंदोलन में शामिल और छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के उपाध्यक्ष एजी कुरैशी और वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह ने ETV भारत से उस काले दिन की जिक्र किया.

People still tremble remembering the incident of July 1 1992 at Bhilai Power House Station
1 जुलाई 1992 ,भिलाई का फायरिंग कांड
author img

By

Published : Jun 30, 2021, 7:55 AM IST

दुर्ग: छत्तीसगढ़ में भिलाई का वह काला दिन. आज भी भिलाईवासी इस दिन की घटना को भूल नहीं पाते हैं. इस घटना ने ना केवल भिलाई को बल्कि देश को झंकझोर कर रख दिया था. बात हो रही है साल 1992 के मजदूर आंदोलन की. जब उस समय दुर्ग और भिलाई एक साथ संयुक्त था और छत्तीसगढ़ अविभाजित मध्यप्रदेश का हिस्सा हुआ करता था. उस दौरान मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार थी और तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदर लाल पटवा थे. दुर्ग के तत्कालीन SP सुरेंद्र सिंह और कलेक्टर प्रह्लाद सिंह तोमर हुआ करते थे. प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि उस दिन 16 लोगों की मौत हुई थी. यह मौत कोई नॉर्मल नहीं बल्कि गोलियों से हुई थी. उस गोलियों की गूंज आज भी लोगों के दिलों और जहन में बैठी हुई है. आज भी उस गोली कांड के बारे में बताते हुए उनकी रूह कांप जाती है.

1 जुलाई 1992 ,भिलाई का फायरिंग कांड

भिलाई प्लेटफॉर्म पर मजदूरों पर बरसाई गई थी गोलियां

1 जुलाई 1992 (1st July 1992 incident in Bhilai) का वह दिन आज भी भिलाई के लोग कभी भूल नहीं पाते. इस दिन हजारों की तादाद में मजदूर भिलाई पावर हाउस के रेलवे स्टेशन के प्लेट फार्म नंबर एक पर बैठ गए थे. लंबे समय से मांगें पूरी नहीं होने से मजदूर आक्रोशित थे. मजदूरों को नियंत्रित कर पाना मुश्किल हो गया था. आंदोलन में शामिल व छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के उपाध्यक्ष एजी कुरैशी ने ETV भारत को बताया कि उस दिन मजदूर सुबह 9 बजे अपनी मांगों को लेकर रेलवे ट्रैक पर बैठ गए थे. दोपहर के 3 बजे तक प्रशासन और मजदूर नेताओं के बीच लगातार बैठकें हुईं. बावजूद कोई निष्कर्ष नहीं निकला. उसके बाद तत्कालीन सरकार व कलेक्टर के आदेश के बाद पुलिस ने मजदूरों पर लाठीचार्ज कर दिया. आंसू गैस के गोले छोड़े गए. इससे भी जब बात नहीं बनी तो तत्कालीन कलेक्टर ने भूखे प्यासे निहत्थे मजदूरों पर गोलियां चलाने के आदेश दे दिए. फिर पुलिस ने अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दी. अचानक अंधाधुंध गोलियां चलने से अफरा-तफरी का माहौल हो गया था. मौके पर ही 16 मजदूर मारे गए और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे.

People still tremble remembering the incident of July 1 1992 at Bhilai Power House Station
भिलाई पावर हाउस स्टेशन

पावर हाउस से लेकर सुपेला तक अंधाधुंध चली गोलियां

मजदूरों के इस प्रदर्शन में हजारों की संख्या में मजदूर थे. जिसमें भिलाई, रायपुर और टेडेसरा समेत विभिन्न इलाकों के मजदूर इस प्रदर्शन में शामिल हुए थे. कुरैशी बताते हैं कि पुलिस ने पावर हाउस से लेकर सुपेला और खुर्सीपार से लेकर पावर हाउस तक मजदूरों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई थी. इस खूनी खेल में सैकड़ों लोग अपंग हो गए थे. पूरी तरह से डर और खौफ का माहौल बना दिया गया था. जिसकी वजह से बहुत से घायल मजदूर अस्पताल में इलाज कराने भी नहीं पहुंचे. प्रशासन की खौफ की वजह से घायल मजदूरों ने अपने स्तर पर ही इलाज कराया था. उन्होंने दावा किया है कि इस गोलीकांड में बहुत से लोग मारे गए थे. जिनकी लाशों को प्रशासन ने BSP के अंदर खाक कर दिया था.

People still tremble remembering the incident of July 1 1992 at Bhilai Power House Station
भिलाई पावर हाउस स्टेशन

नियोगी हत्याकांड के बाद तेज हुआ था आंदोलन

छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के शीर्ष नेता शंकर गुहा नियोगी ने भिलाई में मजदूरों के हक के लिए आवाज बुलंद की थी. उन्होंने जीने लायक वेतन और निकाले गए श्रमिकों को काम पर लेने समेत कई मांगों को लेकर 1991 में प्रदर्शन किया था. इस दौरान मजदूरों के शीर्ष नेता शंकर गुहा नियोगी की 28 सितंबर 1991 की रात अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. इसके बाद देशभर में विरोध के स्वर उठने शुरू हो गए थे. नियोगी जी की हत्या के बाद मजदूरों का आंदोलन और तेज हो गया. सवा महीने से मजदूर अपने परिजनों को छोड़कर आंदोलन कर रहे थे. कुरैशी बताते हैं कि आंदोलन पांच पड़ाव में हुआ था. हर पड़ाव में एक सप्ताह लगा. इसकी शुरुआत जामुल से हुई थी. उसके बाद छावनी, सारदा पारा, खुर्सीपार और सेक्टर 1 मैदान में किया गया था. उसके बाद भी सरकार ने उनकी मांग नहीं सुनी. तत्कालीन मंत्री मुरली मनोहर जोशी उस दौरान रायपुर भी आए थे, लेकिन जिम्मेदारों ने मजदूर नेताओं से नहीं मिलाया. जिसकी वजह से मजदूरों को रेलवे ट्रैक पर आना पड़ा था.

ETV भारत IMPACT: आर्थिक तंगी से जूझ रही ताइक्वांडो खिलाड़ी शिवानी को मिली आर्थिक सहायता

हजारों की संख्या में श्रमिक रेलवे ट्रैक पर बैठे थे

वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह बताते हैं कि छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व में मजदूरों ने एक बड़ा आंदोलन किया था. इसके नेतृत्व कर्ता जनक लाल ठाकुर, भीमराव बागड़े और सुकलाल साहू थे. प्रदर्शनकारी श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी की हत्या के आरोपियों को सजा दिलाने और मजदूरों की लंबित मांगों को लेकर रेलवे ट्रैक पर हजारों की तादाद में बैठ गए थे. सुबह 9 बजे श्रमिकों ने सारनाथ एक्सप्रेस को रोक दिया था. बड़ी तादाद में श्रमिकों के रेलवे ट्रैक पर बैठने की खबर फैलते ही शहर में सनसनी फैल गई. उसके बाद अधिकारी और नेताओं के बीच बातचीत हुई. फिर भी कोई हल नहीं निकला. शाम होते ही पुलिस पर अचानक पथराव शुरू हो गया. कुछ लोग पेट्रोल पंप को आग लगाने की भी कोशिश कर रहे थे. नियंत्रण कर पाना मुश्किल था.

लोग शासन-प्रशासन से थे नाराज

आंदोलन के ठीक पहले निगम ने GE रोड के कई अतिक्रमण को हटाए गए थे. इससे भी लोग शासन प्रशासन से नाराज थे. जिसकी वजह से लोगों का भी सपोर्ट श्रमिकों को मिलने लगा था. प्रदर्शन के दौरान अलग अलग क्षेत्रों से पुलिस पर पथराव किये गए. जिसके बाद पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी. इस दौरान नेवई थाने में पदस्थ सब इस्पेक्टर टीके सिंह शहीद हो गए थे. पथराव के दौरान वे दीवार फांदकर भागने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वह नहीं निकल पाए और उन पर लोगों ने पथराव की बौछार कर दी. पुलिस चारों तरफ से घिर गई थी. क्योंकि सेक्टर 1 से भी पथराव शुरू हो गया था. उस समय पुलिस फायरिंग ही अंतिम चारा था. यदि पुलिस फायरिंग नहीं होती तो स्थिति बहुत ही विकट होती. इस दौरान सारनाथ एक्सप्रेस की पूरी बोगियां खाली हो चुकी थी. खाली खड़ी रेल गाड़ी और पुलिस के तमाम जवान ही नजर आ रहे थे.

कोरोना से जिन पुलिसकर्मियों ने गंवाई जान, उनकी याद में बना कोरोना वॉरियर पार्क

फायरिंग से पहले SP, सिटी मजिस्ट्रेट ने पत्रकारों से की थी चर्चा

वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह ने बताया कि उस दिन वरिष्ठ पत्रकार बाबूलाल शर्मा, सत्यप्रकाश, पुखराज जैन, अब्दुल मजीद समेत अनेक पत्रकार पूरे दिन भूखे प्यासे डटे रहे. फायरिंग से पहले तत्कालीन पुलिस अधीक्षक सुरेंद्र सिंह और सिटी मजिस्ट्रेट नासिर अहमद ने पत्रकारों से चर्चा की थी. उन्होंने कहा था कि अब यह अंतिम स्थिति है. आप सभी रेलवे फुटपाथ के ऊपर चढ़ जाएं, ताकि पत्रकारों को पत्थर न लगे. इसके साथ ही हमारी सुरक्षा के लिए कुछ पुलिस जवानों को भी तैनात कर दिया था. फायरिंग जैसे ही बंद हुई. उसके बाद पुलिस अधीक्षक ने पत्रकारों को रेलवे ट्रैक पर जाने दिया. उस दौरान थोड़ा अंधेरा हो गया था. टॉर्च के माध्यम से हम प्रशासन के साथ ट्रैक पर पहुंचे और तस्वीरें ली थी.

गोलीकांड के बाद दो दिन तक रहा कर्फ्यू

भिलाई में 1 जुलाई 1992 को हुए इस गोलीकांड के बाद दो दिन तक कर्फ्यू लगा रहा. अरविंद सिंह कहते हैं कि कर्फ्यू लगने की वजह से सड़कें पूरी तरह से वीरान हो गई थी. चौक चौराहों पर भारी पुलिस बल तैनात कर दिए गए थे, ताकि किसी तरह की कोई अप्रिय घटना न हो. उन्होंने बताया कि इस दौरान पत्रकारों के लिए पास जारी किया गया था. उस समय रायपुर, राजनांदगांव, कवर्धा समेत दुर्ग की पुलिस बल ने मोर्चा संभाला था. इस गोलीकांड के कुछ समय बाद घायल दो श्रमिकों की मौत हो गई. इस तरह कुल 18 श्रमिक और एक पुलिस अफसर शहीद हो गया था.

दुर्ग: छत्तीसगढ़ में भिलाई का वह काला दिन. आज भी भिलाईवासी इस दिन की घटना को भूल नहीं पाते हैं. इस घटना ने ना केवल भिलाई को बल्कि देश को झंकझोर कर रख दिया था. बात हो रही है साल 1992 के मजदूर आंदोलन की. जब उस समय दुर्ग और भिलाई एक साथ संयुक्त था और छत्तीसगढ़ अविभाजित मध्यप्रदेश का हिस्सा हुआ करता था. उस दौरान मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार थी और तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदर लाल पटवा थे. दुर्ग के तत्कालीन SP सुरेंद्र सिंह और कलेक्टर प्रह्लाद सिंह तोमर हुआ करते थे. प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि उस दिन 16 लोगों की मौत हुई थी. यह मौत कोई नॉर्मल नहीं बल्कि गोलियों से हुई थी. उस गोलियों की गूंज आज भी लोगों के दिलों और जहन में बैठी हुई है. आज भी उस गोली कांड के बारे में बताते हुए उनकी रूह कांप जाती है.

1 जुलाई 1992 ,भिलाई का फायरिंग कांड

भिलाई प्लेटफॉर्म पर मजदूरों पर बरसाई गई थी गोलियां

1 जुलाई 1992 (1st July 1992 incident in Bhilai) का वह दिन आज भी भिलाई के लोग कभी भूल नहीं पाते. इस दिन हजारों की तादाद में मजदूर भिलाई पावर हाउस के रेलवे स्टेशन के प्लेट फार्म नंबर एक पर बैठ गए थे. लंबे समय से मांगें पूरी नहीं होने से मजदूर आक्रोशित थे. मजदूरों को नियंत्रित कर पाना मुश्किल हो गया था. आंदोलन में शामिल व छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के उपाध्यक्ष एजी कुरैशी ने ETV भारत को बताया कि उस दिन मजदूर सुबह 9 बजे अपनी मांगों को लेकर रेलवे ट्रैक पर बैठ गए थे. दोपहर के 3 बजे तक प्रशासन और मजदूर नेताओं के बीच लगातार बैठकें हुईं. बावजूद कोई निष्कर्ष नहीं निकला. उसके बाद तत्कालीन सरकार व कलेक्टर के आदेश के बाद पुलिस ने मजदूरों पर लाठीचार्ज कर दिया. आंसू गैस के गोले छोड़े गए. इससे भी जब बात नहीं बनी तो तत्कालीन कलेक्टर ने भूखे प्यासे निहत्थे मजदूरों पर गोलियां चलाने के आदेश दे दिए. फिर पुलिस ने अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दी. अचानक अंधाधुंध गोलियां चलने से अफरा-तफरी का माहौल हो गया था. मौके पर ही 16 मजदूर मारे गए और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे.

People still tremble remembering the incident of July 1 1992 at Bhilai Power House Station
भिलाई पावर हाउस स्टेशन

पावर हाउस से लेकर सुपेला तक अंधाधुंध चली गोलियां

मजदूरों के इस प्रदर्शन में हजारों की संख्या में मजदूर थे. जिसमें भिलाई, रायपुर और टेडेसरा समेत विभिन्न इलाकों के मजदूर इस प्रदर्शन में शामिल हुए थे. कुरैशी बताते हैं कि पुलिस ने पावर हाउस से लेकर सुपेला और खुर्सीपार से लेकर पावर हाउस तक मजदूरों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई थी. इस खूनी खेल में सैकड़ों लोग अपंग हो गए थे. पूरी तरह से डर और खौफ का माहौल बना दिया गया था. जिसकी वजह से बहुत से घायल मजदूर अस्पताल में इलाज कराने भी नहीं पहुंचे. प्रशासन की खौफ की वजह से घायल मजदूरों ने अपने स्तर पर ही इलाज कराया था. उन्होंने दावा किया है कि इस गोलीकांड में बहुत से लोग मारे गए थे. जिनकी लाशों को प्रशासन ने BSP के अंदर खाक कर दिया था.

People still tremble remembering the incident of July 1 1992 at Bhilai Power House Station
भिलाई पावर हाउस स्टेशन

नियोगी हत्याकांड के बाद तेज हुआ था आंदोलन

छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के शीर्ष नेता शंकर गुहा नियोगी ने भिलाई में मजदूरों के हक के लिए आवाज बुलंद की थी. उन्होंने जीने लायक वेतन और निकाले गए श्रमिकों को काम पर लेने समेत कई मांगों को लेकर 1991 में प्रदर्शन किया था. इस दौरान मजदूरों के शीर्ष नेता शंकर गुहा नियोगी की 28 सितंबर 1991 की रात अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. इसके बाद देशभर में विरोध के स्वर उठने शुरू हो गए थे. नियोगी जी की हत्या के बाद मजदूरों का आंदोलन और तेज हो गया. सवा महीने से मजदूर अपने परिजनों को छोड़कर आंदोलन कर रहे थे. कुरैशी बताते हैं कि आंदोलन पांच पड़ाव में हुआ था. हर पड़ाव में एक सप्ताह लगा. इसकी शुरुआत जामुल से हुई थी. उसके बाद छावनी, सारदा पारा, खुर्सीपार और सेक्टर 1 मैदान में किया गया था. उसके बाद भी सरकार ने उनकी मांग नहीं सुनी. तत्कालीन मंत्री मुरली मनोहर जोशी उस दौरान रायपुर भी आए थे, लेकिन जिम्मेदारों ने मजदूर नेताओं से नहीं मिलाया. जिसकी वजह से मजदूरों को रेलवे ट्रैक पर आना पड़ा था.

ETV भारत IMPACT: आर्थिक तंगी से जूझ रही ताइक्वांडो खिलाड़ी शिवानी को मिली आर्थिक सहायता

हजारों की संख्या में श्रमिक रेलवे ट्रैक पर बैठे थे

वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह बताते हैं कि छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व में मजदूरों ने एक बड़ा आंदोलन किया था. इसके नेतृत्व कर्ता जनक लाल ठाकुर, भीमराव बागड़े और सुकलाल साहू थे. प्रदर्शनकारी श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी की हत्या के आरोपियों को सजा दिलाने और मजदूरों की लंबित मांगों को लेकर रेलवे ट्रैक पर हजारों की तादाद में बैठ गए थे. सुबह 9 बजे श्रमिकों ने सारनाथ एक्सप्रेस को रोक दिया था. बड़ी तादाद में श्रमिकों के रेलवे ट्रैक पर बैठने की खबर फैलते ही शहर में सनसनी फैल गई. उसके बाद अधिकारी और नेताओं के बीच बातचीत हुई. फिर भी कोई हल नहीं निकला. शाम होते ही पुलिस पर अचानक पथराव शुरू हो गया. कुछ लोग पेट्रोल पंप को आग लगाने की भी कोशिश कर रहे थे. नियंत्रण कर पाना मुश्किल था.

लोग शासन-प्रशासन से थे नाराज

आंदोलन के ठीक पहले निगम ने GE रोड के कई अतिक्रमण को हटाए गए थे. इससे भी लोग शासन प्रशासन से नाराज थे. जिसकी वजह से लोगों का भी सपोर्ट श्रमिकों को मिलने लगा था. प्रदर्शन के दौरान अलग अलग क्षेत्रों से पुलिस पर पथराव किये गए. जिसके बाद पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी. इस दौरान नेवई थाने में पदस्थ सब इस्पेक्टर टीके सिंह शहीद हो गए थे. पथराव के दौरान वे दीवार फांदकर भागने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वह नहीं निकल पाए और उन पर लोगों ने पथराव की बौछार कर दी. पुलिस चारों तरफ से घिर गई थी. क्योंकि सेक्टर 1 से भी पथराव शुरू हो गया था. उस समय पुलिस फायरिंग ही अंतिम चारा था. यदि पुलिस फायरिंग नहीं होती तो स्थिति बहुत ही विकट होती. इस दौरान सारनाथ एक्सप्रेस की पूरी बोगियां खाली हो चुकी थी. खाली खड़ी रेल गाड़ी और पुलिस के तमाम जवान ही नजर आ रहे थे.

कोरोना से जिन पुलिसकर्मियों ने गंवाई जान, उनकी याद में बना कोरोना वॉरियर पार्क

फायरिंग से पहले SP, सिटी मजिस्ट्रेट ने पत्रकारों से की थी चर्चा

वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह ने बताया कि उस दिन वरिष्ठ पत्रकार बाबूलाल शर्मा, सत्यप्रकाश, पुखराज जैन, अब्दुल मजीद समेत अनेक पत्रकार पूरे दिन भूखे प्यासे डटे रहे. फायरिंग से पहले तत्कालीन पुलिस अधीक्षक सुरेंद्र सिंह और सिटी मजिस्ट्रेट नासिर अहमद ने पत्रकारों से चर्चा की थी. उन्होंने कहा था कि अब यह अंतिम स्थिति है. आप सभी रेलवे फुटपाथ के ऊपर चढ़ जाएं, ताकि पत्रकारों को पत्थर न लगे. इसके साथ ही हमारी सुरक्षा के लिए कुछ पुलिस जवानों को भी तैनात कर दिया था. फायरिंग जैसे ही बंद हुई. उसके बाद पुलिस अधीक्षक ने पत्रकारों को रेलवे ट्रैक पर जाने दिया. उस दौरान थोड़ा अंधेरा हो गया था. टॉर्च के माध्यम से हम प्रशासन के साथ ट्रैक पर पहुंचे और तस्वीरें ली थी.

गोलीकांड के बाद दो दिन तक रहा कर्फ्यू

भिलाई में 1 जुलाई 1992 को हुए इस गोलीकांड के बाद दो दिन तक कर्फ्यू लगा रहा. अरविंद सिंह कहते हैं कि कर्फ्यू लगने की वजह से सड़कें पूरी तरह से वीरान हो गई थी. चौक चौराहों पर भारी पुलिस बल तैनात कर दिए गए थे, ताकि किसी तरह की कोई अप्रिय घटना न हो. उन्होंने बताया कि इस दौरान पत्रकारों के लिए पास जारी किया गया था. उस समय रायपुर, राजनांदगांव, कवर्धा समेत दुर्ग की पुलिस बल ने मोर्चा संभाला था. इस गोलीकांड के कुछ समय बाद घायल दो श्रमिकों की मौत हो गई. इस तरह कुल 18 श्रमिक और एक पुलिस अफसर शहीद हो गया था.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.