दुर्ग: लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होने के बाद अब प्रत्याशियों के नाम पर मंथन शुरू हो गया है. कांग्रेस के लिए दुर्ग लोकसभा सीट सबसे अहम है क्योंकि साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान प्रचंड मोदी लहर के बावजूद दुर्ग ही प्रदेश की एकमात्र ऐसी सीट थी, जिस पर कांग्रेस ने विजय पाई थी.
ताम्रध्वज साहू को मिली थी जीत
पिछले कई दशक से भाजपा ने दुर्ग लोकसभा में अपना आधिपत्य रखा था, लेकिन साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के ताम्रध्वज साहू ने भाजपा की सरोज पांडेय को शिकस्त देकर बीजेपी के किले में सेंध लगा दी. अब फिर चुनाव की रणभेरी बज चुकी है. ऐसे में टिकट के लिए नेताओं के रिश्तेदारों से लेकर आम कार्यकर्ता तक जुगत लगाने में जुटे हैं.
लॉबिंग में जुटे दिग्गजों के बेटे
कांग्रेस के कई दिग्गज अपने बेटे-बेटी के लिए लॉबिंग कर रहे हैं. वर्तमान सांसद और सूबे के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू अपने बड़े बेटे जितेंद्र साहू के लिए गोटी फिट करने में जुटे हैं, तो वहीं दुर्ग कांग्रेस के चाणक्य कहे जाने वाले स्व. दाऊ वासुदेव चंद्राकर की बेटी और पूर्व विधायक प्रतिमा चंद्राकर भी ताल ठोंक रही हैं. इसके साथ ही राजेंद्र साहू और तुलसी साहू भी खुद को कांग्रेस का सच्चा सिपाही बताते हुए लोकसभा के टिकट पर अपना हक जाता रहे हैं.
सीएम के करीबी माने जाते हैं राजेंद्र
बता दें की राजेंद्र साहू ने आम कार्यकर्ता के तौर पर राजनीति की शुरूआत की थी, लेकिन आज उनकी गिनती सीएम के करीबियों में की जाती है. इसके साथ ही बतौर महिला प्रत्याशी दावेदारी पेश कर चुकी तुलसी साहू का नाम भी मुख्यमंत्री की की गुड बुक में शुमार रहता है.
वोरा और वर्मा के नाम की भी चर्चा
जरा ठहरिएगा, अभी दावेदारों की लिस्ट खत्म नहीं हुई है. प्रदीप चौबे और वर्तमान विधायक अरुण वोरा और दुर्ग कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व महापौर आरएन वर्मा का नाम भी चर्चा में है. ये चारों दावेदार इन दिनों राजनीति की फिजा में छाए हुए हैं. पहला नाम जितेंद्र साहू का है, जो वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस में मीडिया को-ऑर्डिनेटर का पद संभाल रहे हैं. जितेंद्र साहू सूबे के गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू के बेटे हैं और कांग्रेस में अच्छी खासी पैठ रखते हैं. इनकी दावेदारी को साहू समाज के प्रतिनिधि को तौर पर देखा जा रहा है.
प्रतिभा भी ठोंक रही ताल
दिग्गजों के बेटे-बेटी में दूसरा नाम प्रतिमा चन्द्राकर का है. प्रतिमा लंबे समय तक दुर्ग कांग्रेस के अध्यक्ष और विधायक रहे स्व दाऊ वासुदेव चन्द्राकर की बेटी हैं. प्रतिमा भी लंबे समय राजनीति में सक्रिय हैं और विधायक रहने के साथ-साथ पार्टी को मजबूत करने का काम करती रहीं. आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी ने पहले दुर्ग ग्रामीण से उन्हें प्रत्याशी बनाया था, लेकिन आखिरी वक्त में बी फार्म दिए जाने के बाद उनका नाम काटते हुए ताम्रध्वज साहू को प्रत्यशी बनाया गया. टिकट कट जाने के बाद प्रतिमा कुछ दिनों तक तो सक्रिय राजनीतिक से बाहर रहीं, लेकिन पार्टी के रीति-नीति और कांग्रेस परिवार के होने के नाते प्रतिमा ने दुर्ग ग्रामीण सहित दूसरे विधनासभा में भी कांग्रेस प्रत्याशी को जीताने में अहम भूमिका निभाई. वो मानती हैं कि, उनका परिवार कांग्रेस का वफादार रहा है. उनके लिए टिकट कोई मायने नहीं रखता.
'पार्टी के लिए करूंगी काम'
प्रतिमा ने लोकसभा के प्रत्याशी के लिए अपनी दावेदारी पेश कर दी है. उनका कहना है कि अगर पार्टी मौका देती है, तो वे दुर्ग लोकसभा सीट को कांग्रेस की झोली में डालने के लिए पूरा प्रयास करेंगी.
लंबी है दावेदारों की लिस्ट
कांग्रेस में दावेदारों की लिस्ट तो लंबी है, लेकिन सामान्य कार्यकर्ता से प्रदेश पदाधिकारी तक संघर्ष कर अपना मुकाम बनाने वाले राजेन्द्र साहू भी प्रमुख दावेदारों में से एक हैं. राजेन्द्र साहू विधनासभा चुनाव के वक्त पाटन विधनासभा में प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल के अनुपस्थिति में मोर्चा संभालते हुए अहम जवाबदारी निभाई थी. उन्होंने पिछले 20 से अधिक साल से कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय हैं. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और राजेंद्र साहू दोनों के राजनीतिक गुरु स्व. दाऊ वासुदेव चन्द्राकर रहे हैं.
महापौर का लड़ चुके हैं चुनाव
राजेन्द्र स्वाभिमान मंच के बैनर तले दुर्ग नगर निगम से महापौर और विधनासभा चुनाव लड़ चुके हैं. इस दौरान वो जीत तो नहीं पाए, लेकिन उन्हें अच्छे खासे वोट मिले थे. हालांकि वे कुछ दिनों तक कांग्रेस से अलग रहे, लेकिन भूपेश बघेल के प्रदेश अध्यक्ष बनते ही दोबारा फिर से कांग्रेस की सक्रिय राजनीति में शामिल हो गए. उनका मानना है कि पार्टी जिसे भी प्रत्याशी बनाती है, वो उसके लिए पूरी ईमानदारी से काम करेंगे.
तुलसी भी मांग रहीं टिकट
अब बात दावेदार तुलसी साहू की करते हैं. तुलसी वर्तमान में कांग्रेस की दुर्ग ग्रामीण जिलाध्यक्ष के पद पर आसीन हैं. इन्ही के नेतृत्व में विधनासभा चुनाव लड़ा गया, जिसका परिणाम सबके सामने है. तुलसी ने पदभार ग्रहण के बाद से ही कांग्रेस में जान फूंकने के लिए दिन-रात मेहनत की. तुलसी साहू जिलाध्यक्ष रहते हुए अलग-अलग ब्लॉक का दौरा कर कार्यकर्ताओं को एकजुट किया और उन्हें हर संभव मदद करने प्रयास करती रहीं.
ऐन वक्त पर कटा था टिकट
उनका नाम विधानसभा चुनाव में वैशालीनगर से लगभग तय हो चुका था, जो अंतिम में वक्त बदला गया. बावजूद तुलसी ने विधनासभा चुनाव के दौरान सक्रिय भूमिका अदा की. वकील होने की वजह से इनकी कानूनी जानकारियों का फायदा भी विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी को बखूबी मिला और यही वजह है कि 'मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल के गुड बुक में तुलसी का नाम शामिल है. तुलसी इस बार लोकसभा के लिए अपनी दावेदारी ठोक दी हैं.
डैमेज कंट्रोल बड़ी चुनौती
फिलहाल प्रदेश में 15 साल का सूखा खत्म करने के बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस के लिए दुर्ग लोकसभा सीट पर एक अनार सौ बीमार वाले हालत बन गए हैं. जहां एक ओर नेता पुत्र-पुत्री टिकट के लिए जुगत भिड़ा रहे हैं वहीं पार्टी के पदाधिकारी भी जैक लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. ऐसे में पार्टी के लिए प्रत्याशी फाइनल करने के साथ-साथ नाम के ऐलान के बाद डैमेज कंट्रोल एक बड़ी चुनौती होगी.