भिलाई : रक्षाबंधन का त्यौहार भाई बहन के प्यार का प्रतीक है. इस दिन बहनें अपनी भाईयों की कलाई में राखी बांधती हैं. इस बार बाजार में हैंडमेड राखियों का चलन जोरों पर है.भिलाई नगर निगम क्षेत्र में भी खास डिजाइन वाली राखियां बिक रही है.इन राखियों को महिला स्व-सहायता समूह की महिलाओं ने बनाया है.जिसमें धान की बाली से बनीं राखी लोगों की पहली पसंद बनती जा रही है.
हैंड मेड राखी की बढ़ी डिमांड : भारतीय बाजारों में कुछ साल पहले तक चाइनीज राखियों का कब्जा था. लेकिन अब मेड इन इंडिया और लोकल विथ वोकल अभियान ने देश के बाजारों की तस्वीर बदली है. बात यदि छत्तीसगढ़ की करें तो यहां की भूपेश सरकार ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया है. स्व सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं प्रदेश में आने वाले हर त्यौहार के लिए कुछ ना कुछ अपने हाथों से तैयार करती हैं.
कैसे बनाई गई है राखी ? : धान और गोबर की राखी को तैयार करने वाली संस्था की अध्यक्ष तबस्सुम ने बताया कि उन्होंने पहले धान और चावल को छोटे-छोटे अलग-अलग आकार में बेस बनाकर रखा. फिर इसे सूखाकर रंगीन किया गया है. डिमांड के हिसाब से स्टोन,मोती से सजाकर उसे मौली धागे में चिपका दिया जाता है. कुछ ही मिनट में यह राखी बनकर तैयार हो जाती है. संस्था की ओर से मुहैया कराए गए ट्रेनिंग में हमने राखी बनाने का काम सीखा.
'बस स्टैंड के सामने मदर्स मार्केट है.इसी में हमारी दुकान है. हमने और महिला समूह से जुड़ी महिलाओं ने ये राखी बनाई है.अभी इसका अच्छा लुक आया है.जिसमें हम धान की राखी बना रहे हैं.' तबस्सुम परवीन, अध्यक्ष, खुशनुमा महिला स्व सहायता समूह
इस बार दुर्ग और भिलाई के बाजारों में धान की बालियों और गोबर से बनीं राखी बिक रही है.धान से राखी बनाने वाली महिलाओं की माने तो हाथों से बनी राखी जब भाई की कलाई में सजेगी तो उस राखी से प्रेम का अलग ही एहसास होगा.
''महिला स्वसहायता समूह से जुड़ी हूं.हम लोग इस बार धान की मदद से राखी बना रहे हैं.जिसमें हमारी सरकार काफी मदद कर रही है.बाजार के रेट से हमारी राखियों की कीमत कम है.'' सुनीता टेट, सदस्य, खुशनुमा महिला स्व सहायता समूह
हिंदू संस्कृति के हिसाब से तैयार की गई है राखी : हिन्दू संस्कृति में धान और चावल को शुभ माना जाता है.ऐसे में गोबर के बेस से बनी यह राखी जब कलाई में बंधेगी तो यह आकर्षक दिखेगी. साथ ही यदि राखी टूटकर गिर भी जाए तो पर्यावरण को नुकसान नहीं होगा.क्योंकि इसमें प्लास्टिक का बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं किया गया है. फिलहाल जो भी ऑर्डर आ रहे हैं वे उसी के आधार पर राखियां तैयार कर रही हैं. क्योंकि इस वैदिक राखी को वही खरीदेगा जो इसके महत्व को समझेगा. बहरहाल धान राखी की डिमांड अब धीरे-धीरे बढ़ रही है.