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हर हर महादेव: अद्भुत है इस शिवलिंग की कथा, इस तरह चढ़ाने से नीला होता है दूध - bheema koteshwar mahadev shivling

धमतरी जिले के सिहावा के दंडक वन के बीचों बीच कोटेश्वर धाम बना हुआ है. यहां एक चबूतरा है, जिसके बीच में भीमा कोटेश्वर महादेव का शिवलिंग मौजूद है. युगों पुराने करीब साढ़े चार फीट की इस शिवलिंग की सबसे बड़ी खासियत ये है कि जमीन से निकला हुआ यह स्वयंभू शिवलिंग है. ऐसा माना जाता है कि भीमा कोटेश्वर शिवलिंग पर दूध डालने से दूध का रंग नीला हो जाता है.

कोटेश्वर धाम के शिवलिंग पर दूध डालने से हो जाता है इसका रंग नीला
कोटेश्वर धाम के शिवलिंग पर दूध डालने से हो जाता है इसका रंग नीला
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Published : Feb 20, 2020, 10:18 PM IST

Updated : Feb 20, 2020, 11:00 PM IST

धमतरी: भगवान शिव का यूं तो न जाने कितने नाम हैं, लेकिन भोले भक्तों को उनका नीलकंठ नाम ज्यादा पसंद है. ETV भारत महाशिवरात्रि के मौके पर आपको भगवान शिव का नाम नीलकंठ क्यों पड़ा ये बताने जा रहा है. इसके साथ ही ETV भारत की छत्तीसगढ़ में भोलेनाथ के नीलकंठ रूप के भी दर्शन कराएगी. ऐसा कहा जाता है कि सागर मंथन के समय जब हलाहल विष की उत्पति हुई थी तब इस विष से सृष्टि का विनाश होने लगा था, उस समय भगवान शिव ने उस विष को अपने कंठ में रोक लिया था. तब से शिव को नीलकंठ कहा जाने लगा.

कोटेश्वर धाम के शिवलिंग पर दूध डालने से हो जाता है इसका रंग नीला

जमीन से निकला है शिवलिंग

सिहावा के दंडक वन के बीचों बीच कोटेश्वर धाम है. धाम में बड़ा सा टिन का शेड है और यहां एक चबूतरा भी है. भीमा कोटेश्वर महादेव का शिवलिंग चबूतरे के बीच मौजूद है. वर्षों पुराने और साढ़े चार फीट की इस शिवलिंग की सबसे बड़ी खासियत ये है कि जमीन से निकला यह स्वयंभू शिवलिंग है. इस शिवलिंग को पत्थर या चट्टान को काटकर या तराश कर नहीं बनाया गया है.

शिवलिंग पर चढ़ाते ही नीला हो जाता है दूध

कोटेश्वर धाम के पुजारी बताते हैं कि भीमा कोटेश्वर शिवलिंग में शिव का नीलकंठ रूप आज भी मौजूद है. जब भी शिवलिंग का दूध से अभिषेक किया जाता है तो शिवलिंग पर दूध गिरने के साथ ही दूध नीला हो जाता है और यह आज से नहीं सदियों से होता आ रहा है. सामान्य किसी भी शिवलिंग पर दूध का अभिषेक करने पर दूध का रंग नीला नहीं होता है, लेकिन पूरे श्रद्धा, भक्ति, नियम और सिद्धांतों के साथ पूजा करने पर यह होता है. पुजारी बताते हैं कि पूरे नियम सिद्धान्तों को मानते हुए गर्भगृह में प्रवेश करने से चमत्कार दिखाई देता है और गर्भगृह के अंदर पारंपरिक वेशभूषा में ही शिव की आराधना करनी होती है.

सबसे पहले रावण के दादा पुलत्स्य ऋषि ने की थी पूजा

पुजारी ने ये भी बताया कि भीमा कोटेश्वर शिवलिंग की पूजा करने खुद रावण और उनके पूर्वज आते हैं. इस शिवलिंग की सबसे पहली पूजा लंकापति रावण के दादा पुलत्स्य ऋषि ने की थी. उस समय दंडक वन का ये जंगल पुलत्स्य ऋषि की तपोभूमि था और उस वक्त से ही पुलत्स्य ऋषि हर मध्यरात्रि को इस शिवलिंग की पूजा करने आते हैं. धाम के लोग कई बार दस सिरोंवाले एक व्यक्ति को इस शिवलिंग के सामने तप करते हुए बैठने का दावा करते हैं.

जंगल में आज भी विचरण करते हैं पुलत्स्य ऋषि

धाम के पुजारियों का कहना है कि मध्यरात्रि को होनेवाली इस पूजा के साथ दंडकारण्य के इस जंगल में पुलत्स्य ऋषि आज भी विचरण करते हैं. यहीं वजह है कि यहां श्रावण मास हो या शिवरात्रि या फिर दिगर पर्व यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. क्षेत्र के श्रद्धालु सहित दूसरे जिले से मन्नतधारी कोटेश्वर महादेव के दरबार में आते हैं.

धमतरी: भगवान शिव का यूं तो न जाने कितने नाम हैं, लेकिन भोले भक्तों को उनका नीलकंठ नाम ज्यादा पसंद है. ETV भारत महाशिवरात्रि के मौके पर आपको भगवान शिव का नाम नीलकंठ क्यों पड़ा ये बताने जा रहा है. इसके साथ ही ETV भारत की छत्तीसगढ़ में भोलेनाथ के नीलकंठ रूप के भी दर्शन कराएगी. ऐसा कहा जाता है कि सागर मंथन के समय जब हलाहल विष की उत्पति हुई थी तब इस विष से सृष्टि का विनाश होने लगा था, उस समय भगवान शिव ने उस विष को अपने कंठ में रोक लिया था. तब से शिव को नीलकंठ कहा जाने लगा.

कोटेश्वर धाम के शिवलिंग पर दूध डालने से हो जाता है इसका रंग नीला

जमीन से निकला है शिवलिंग

सिहावा के दंडक वन के बीचों बीच कोटेश्वर धाम है. धाम में बड़ा सा टिन का शेड है और यहां एक चबूतरा भी है. भीमा कोटेश्वर महादेव का शिवलिंग चबूतरे के बीच मौजूद है. वर्षों पुराने और साढ़े चार फीट की इस शिवलिंग की सबसे बड़ी खासियत ये है कि जमीन से निकला यह स्वयंभू शिवलिंग है. इस शिवलिंग को पत्थर या चट्टान को काटकर या तराश कर नहीं बनाया गया है.

शिवलिंग पर चढ़ाते ही नीला हो जाता है दूध

कोटेश्वर धाम के पुजारी बताते हैं कि भीमा कोटेश्वर शिवलिंग में शिव का नीलकंठ रूप आज भी मौजूद है. जब भी शिवलिंग का दूध से अभिषेक किया जाता है तो शिवलिंग पर दूध गिरने के साथ ही दूध नीला हो जाता है और यह आज से नहीं सदियों से होता आ रहा है. सामान्य किसी भी शिवलिंग पर दूध का अभिषेक करने पर दूध का रंग नीला नहीं होता है, लेकिन पूरे श्रद्धा, भक्ति, नियम और सिद्धांतों के साथ पूजा करने पर यह होता है. पुजारी बताते हैं कि पूरे नियम सिद्धान्तों को मानते हुए गर्भगृह में प्रवेश करने से चमत्कार दिखाई देता है और गर्भगृह के अंदर पारंपरिक वेशभूषा में ही शिव की आराधना करनी होती है.

सबसे पहले रावण के दादा पुलत्स्य ऋषि ने की थी पूजा

पुजारी ने ये भी बताया कि भीमा कोटेश्वर शिवलिंग की पूजा करने खुद रावण और उनके पूर्वज आते हैं. इस शिवलिंग की सबसे पहली पूजा लंकापति रावण के दादा पुलत्स्य ऋषि ने की थी. उस समय दंडक वन का ये जंगल पुलत्स्य ऋषि की तपोभूमि था और उस वक्त से ही पुलत्स्य ऋषि हर मध्यरात्रि को इस शिवलिंग की पूजा करने आते हैं. धाम के लोग कई बार दस सिरोंवाले एक व्यक्ति को इस शिवलिंग के सामने तप करते हुए बैठने का दावा करते हैं.

जंगल में आज भी विचरण करते हैं पुलत्स्य ऋषि

धाम के पुजारियों का कहना है कि मध्यरात्रि को होनेवाली इस पूजा के साथ दंडकारण्य के इस जंगल में पुलत्स्य ऋषि आज भी विचरण करते हैं. यहीं वजह है कि यहां श्रावण मास हो या शिवरात्रि या फिर दिगर पर्व यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. क्षेत्र के श्रद्धालु सहित दूसरे जिले से मन्नतधारी कोटेश्वर महादेव के दरबार में आते हैं.

Last Updated : Feb 20, 2020, 11:00 PM IST
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