धमतरी: महर्षि श्रृंगी आश्रम के पास कर्णेश्वर धाम स्थित है. मंदिर में सोमवंशी राजाओं का शिलालेख आज भी मौजूद है. शिलालेख संस्कृत भाषा के देवनागरी लिपि में है. सोलह पंक्तियों की आयताकार भीतर शिलालेख है. जिसे कांकेर के सोमवंशी राजा कर्णराज के शासनकाल में शक संवत 1114 में उत्कीर्ण कराया था. शिलालेख से पता चलता है कि महराज कर्णराज ने अपने वंश की कीर्ति को अमर बनाने के लिए कर्णेश्वर देवहद में छह मंदिरों का निर्माण करवाया था. पहला अपने निसंतान भाई कृष्णराज के नाम, दूसरा मंदिर प्रिय पद्यी भोपालादेवी के नाम निर्मित कराया था.
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मंदिर का खासियत: भगवान शिव की आराधना कर उसकी प्रतिष्ठा की. कर्णराज द्वारा निर्मित मंदिरों में शिव के अलावा मर्यादा पुरुषोत्तम राम और जानकी का मंदिर प्रमुख है. भगवान शिव को बीस वर्ग फुट आयताकार गर्भगृह में प्रतिष्ठित किया गया है. गर्भगृह का शीर्ष भाग कलश युक्त है. मंदिर का अग्रभाग मंडप शैली में बना है, जिसकी छत आठ कोणीय प्रस्तर स्तंभों पर टिकी है. मंदिर का पूरा भाग पत्थर से निर्मित है.
जानिए क्या है कहानी: कहते है कि कांकेर के सोमवंशी राजाओं के पूर्वज जगन्नाथपुरी ओडिशा के मूल निवासी थे. सोमवंशी राजाओं ने पहले पहल नगरी में अपनी राजधानी बनाई. कर्णेश्वर धाम मे एक प्राचीन अमृतकुंड भी है. किवदंती है कि इस कुंड के जल के स्नान से कुष्ठ जैसे असाध्य रोग ठीक हो जाता था.सोमवंशी राजाओं ने इसे मिट्टी से भर दिया. अमृतकुंड से लगा हुआ छोटा सरोवर राजा के दो पुत्रियां सोनई-रूपई नाम से जाना जाता है. माघ पूर्णिमा के अवसर पर श्रध्दालु स्नानादि के बाद पूजा अर्चना पश्चात, अमृतकुंड का दर्शन कर उनका जल अपने साथ ले जाते है.
सिहावा में विशाल मेले का आयोजन: सिहावा स्थित कर्णेश्वर धाम में माघी पूर्णिमा के अवसर पर शाही स्नान के साथ मेला शुरू होता है जो 4 दिनों तक चलता है. माघपूर्णिमा पर हजारों श्रद्धालु बालका और महानदी के संगम में आस्था की डुबकी लगाते है. माघी पूर्णिमा मेला के अवसर यह विशाल मेले का आयोजन किया जाता है. इस क्षेत्र के सबसे बड़े मेले में दूर दराज से संत और श्रद्धालु पहुंचते है. मनोरंजन के लिए झूले और तरह-तरह के स्टाल सजाए जाते है. कर्णेश्वर धाम को मेले के लिए आकर्षक रोशनी से सजाया जाता है. इस मेले में नगरी सिहावा क्षेत्र के 50 से अधिक गावों के लोग शामिल होते हैं.