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गरीबों की रोटी से अमीरों की डाइट में शामिल होने वाले रागी के गुण जान चौंक जाएंगे आप

छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के लोग इन दिनों एक फसल रागी जिसे मड़िया भी कहते हैं उगाकर मालामाल हो रहे हैं. मड़िया के स्वाद और पैष्टिकता को देख अमीर लोग अब इसे अपने डाइट में शामिल कर रहे हैं. इसे खाने वाले लोग स्वस्थ हो रहे हैं. वहीं बेहद कम खर्चे में ज्यादा उत्पादन से इसे उगाने वाले किसान भी मालामाल हो रहे हैं.

Ragi is the crop that gives the most benefit at a lower cost
कम खर्चे में सबसे ज्यादा फायदा देने वाली फसल रागी
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Published : Apr 10, 2021, 3:46 PM IST

Updated : Apr 10, 2021, 7:25 PM IST

धमतरी: कभी गरीबों का भोजन बनने वाला रागी आज अमीरों की डाइट में शामिल हो गया है. इससे न केवल रागी का महत्व बढ़ा है बल्कि इसे उगाने वाले आर्थिक रूप से समृद्ध भी हो रहे हैं. छत्तीसगढ़ में रागी को मड़िया और भारते के कुछ अन्य राज्यों में इसे मड़ुआ भी कहा जाता है.

कम खर्चे में सबसे ज्यादा फायदा देने वाली फसल रागी

आमतौर इसे मोटा अनाज भी कहा जाता है. जंगल में उगने वाले घास के किस्म की फसल है. जिसे वर्षों पहले गरीबों का अनाज कहा जाता था, लेकिन आज ये अपनी पौष्टिकता और गुणों के कारण यह अमीरों के भोजन में शामिल हो गया है.

पौष्टिकता और स्वाद से भरपूर

पौष्टिकता और स्वाद से भरपूर होने के कारण इसका इस्तेमाल रोटी, ब्रेड, खीर, इडली में किया जाता है. धमतरी के नगरी, मगरलोड के डुबान क्षेत्र में महिला समूह और किसान कृषि सुधार विस्तार आत्मा योजना के सहयोग से करीब 55 एकड़ में रागी फसल लगाई गई है. इसके पहले जिले के किसानों ने खरीफ सीजन में 150 एकड़ में इसे लगाया था. जिससे किसानों और महिला समूह को काफी फायदा हुआ था. महज 3 महीने में तैयार होने वाली इस फसल में अब प्रदेश के बाकी किसान भी रुचि लेने लगे हैं.

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कम खर्चे में तैयार हो जाती है रागी

किसानों के मुताबिक इस फसल में बाकी फसलों के मुताबिक खर्च बहुत कम आता है. रागी की फसल को पानी की आवश्यकता भी कम होती है. प्रति एकड़ में महज 1 क्विंटल जैविक खाद में ही फसल लहलहा उठती है और इसका उत्पादन दर भी बाकी फसलों से बेहतर है. प्रति एक एकड़ करीब 10 से 15 क्विंटल तक रागी का उत्पादन हो जाता है.

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बाकी फसलों से 5 हजार रुपये ज्यादा मुनाफा

महिला समूहों से जुड़ी महिला किसानों ने बताया, पहले घर के काम के आलावा खेती किसानी का काम करती थी, जिसमें ज्यादा फायदी नहीं मिल रहा था. अब रागी का कम खर्चे में ज्यादा उत्पादन हो रहा है. इससे उन्हें काभी मुनाफा मिल रही है. समूह की महिलाएं बताती हैं, रागी फसल से प्रति क्विंटल 5 हजार रुपये तक का उन्हें मुनाफा हो जाता है. समूह की महिलाएं बड़े पैमाने पर रागी फसल की पैदावरी लेने की बात कह रही हैं. महिलाएं दिगर के किसानों को भी यह फसल लेने की अपील कर रही हैं.

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मधुमेह, ब्लड प्रेशर, हड्डी के रोग के लिए फायदेमंद

जिले के कृषि अधिकारियों के मुताबिक रागी हाई वैल्यू क्रॉप है. इसकी फसल कोदो, कुटकी, सावा की ही तरह है, लेकिन ये फसल बहुत गुणकारी है. रागी स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयुक्त खाद्य पदार्थ में से एक है. इसमें बहुत अधिक मात्रा में फाइबर होता है. मोटापा और डायबिटीज के लिए रामबाण इलाज है. इसके अलावा इसमें आयरन, फोलिक एसिड, कैल्शियम, जिंक, प्रोटीन भी पाई जाती है. साथ ही ये रागी मधुमेह, ब्लड प्रेशर, हड्डी के रोग, पाचन क्रिया संबंधित रोगों के लाभकारी होता है. इसके अलावा रागी कुपोषण दूर करने में बेहद ही मददगार साबित हो सकती है.

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दुनिया भर में मिलता है रागी

रागी, मड़िया या मड़ुआ अफ्रीका और एशिया के सूखे क्षेत्रों में उगाया जाने वाला एक मोटा अनाज है. यह फसल अलग-अलग जगहों में अलग-अलग समय में तैयार होता है. छत्तीसगढ़ में ये फसल महज 3 से 4 महीने में तैयार हो जाती है. वहीं अफ्रीकन देशों में ये फसल एक साल में पक कर तैयार होती है. रागी मूल रूप से इथियोपिया के ऊंचे क्षेत्रों में होता है, जिसे भारत में आज से करीब चार हजार साल पहले लाया गया था. पहाड़ी और कम पानी वाले क्षेत्रों में ये फसल उगाई जाती है.

आज के जमाने जहां लोग आधुनिकता के दौर में खान-पान, जीवनशैली के कारण तरह तरह की बीमारियों से ग्रसित हैं, ऐसे समय में रागी एक बेहतर बिकल्प बन सकता है.

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धमतरी: कभी गरीबों का भोजन बनने वाला रागी आज अमीरों की डाइट में शामिल हो गया है. इससे न केवल रागी का महत्व बढ़ा है बल्कि इसे उगाने वाले आर्थिक रूप से समृद्ध भी हो रहे हैं. छत्तीसगढ़ में रागी को मड़िया और भारते के कुछ अन्य राज्यों में इसे मड़ुआ भी कहा जाता है.

कम खर्चे में सबसे ज्यादा फायदा देने वाली फसल रागी

आमतौर इसे मोटा अनाज भी कहा जाता है. जंगल में उगने वाले घास के किस्म की फसल है. जिसे वर्षों पहले गरीबों का अनाज कहा जाता था, लेकिन आज ये अपनी पौष्टिकता और गुणों के कारण यह अमीरों के भोजन में शामिल हो गया है.

पौष्टिकता और स्वाद से भरपूर

पौष्टिकता और स्वाद से भरपूर होने के कारण इसका इस्तेमाल रोटी, ब्रेड, खीर, इडली में किया जाता है. धमतरी के नगरी, मगरलोड के डुबान क्षेत्र में महिला समूह और किसान कृषि सुधार विस्तार आत्मा योजना के सहयोग से करीब 55 एकड़ में रागी फसल लगाई गई है. इसके पहले जिले के किसानों ने खरीफ सीजन में 150 एकड़ में इसे लगाया था. जिससे किसानों और महिला समूह को काफी फायदा हुआ था. महज 3 महीने में तैयार होने वाली इस फसल में अब प्रदेश के बाकी किसान भी रुचि लेने लगे हैं.

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कम खर्चे में तैयार हो जाती है रागी

किसानों के मुताबिक इस फसल में बाकी फसलों के मुताबिक खर्च बहुत कम आता है. रागी की फसल को पानी की आवश्यकता भी कम होती है. प्रति एकड़ में महज 1 क्विंटल जैविक खाद में ही फसल लहलहा उठती है और इसका उत्पादन दर भी बाकी फसलों से बेहतर है. प्रति एक एकड़ करीब 10 से 15 क्विंटल तक रागी का उत्पादन हो जाता है.

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बाकी फसलों से 5 हजार रुपये ज्यादा मुनाफा

महिला समूहों से जुड़ी महिला किसानों ने बताया, पहले घर के काम के आलावा खेती किसानी का काम करती थी, जिसमें ज्यादा फायदी नहीं मिल रहा था. अब रागी का कम खर्चे में ज्यादा उत्पादन हो रहा है. इससे उन्हें काभी मुनाफा मिल रही है. समूह की महिलाएं बताती हैं, रागी फसल से प्रति क्विंटल 5 हजार रुपये तक का उन्हें मुनाफा हो जाता है. समूह की महिलाएं बड़े पैमाने पर रागी फसल की पैदावरी लेने की बात कह रही हैं. महिलाएं दिगर के किसानों को भी यह फसल लेने की अपील कर रही हैं.

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जिले के कृषि अधिकारियों के मुताबिक रागी हाई वैल्यू क्रॉप है. इसकी फसल कोदो, कुटकी, सावा की ही तरह है, लेकिन ये फसल बहुत गुणकारी है. रागी स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयुक्त खाद्य पदार्थ में से एक है. इसमें बहुत अधिक मात्रा में फाइबर होता है. मोटापा और डायबिटीज के लिए रामबाण इलाज है. इसके अलावा इसमें आयरन, फोलिक एसिड, कैल्शियम, जिंक, प्रोटीन भी पाई जाती है. साथ ही ये रागी मधुमेह, ब्लड प्रेशर, हड्डी के रोग, पाचन क्रिया संबंधित रोगों के लाभकारी होता है. इसके अलावा रागी कुपोषण दूर करने में बेहद ही मददगार साबित हो सकती है.

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रागी, मड़िया या मड़ुआ अफ्रीका और एशिया के सूखे क्षेत्रों में उगाया जाने वाला एक मोटा अनाज है. यह फसल अलग-अलग जगहों में अलग-अलग समय में तैयार होता है. छत्तीसगढ़ में ये फसल महज 3 से 4 महीने में तैयार हो जाती है. वहीं अफ्रीकन देशों में ये फसल एक साल में पक कर तैयार होती है. रागी मूल रूप से इथियोपिया के ऊंचे क्षेत्रों में होता है, जिसे भारत में आज से करीब चार हजार साल पहले लाया गया था. पहाड़ी और कम पानी वाले क्षेत्रों में ये फसल उगाई जाती है.

आज के जमाने जहां लोग आधुनिकता के दौर में खान-पान, जीवनशैली के कारण तरह तरह की बीमारियों से ग्रसित हैं, ऐसे समय में रागी एक बेहतर बिकल्प बन सकता है.

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Last Updated : Apr 10, 2021, 7:25 PM IST
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