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बसंत पंचमी 2022: मां दंतेश्वरी की पूजा के साथ फाल्गुन मनाई का आगाज, 600 साल से त्रिशूल स्थापना की परंपरा - मां दंतेश्वरी के छत्र की पूजा

Worship on Basant Panchami in Dantewada : दंतेवाड़ा में बसंत पंचमी के दिन मां दंतेश्वरी मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की गई. बसंत पंचमी के दिन आम के फूल से मां दंतेश्वरी की पूजा की जाती है. इसी दिन से फाल्गुन मनाई का आगाज होता है.

Worship on Basant Panchami in Dantewada
मां दंतेश्वरी की पूजा के साथ फाल्गुन मनाई का आगाज
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Published : Feb 5, 2022, 7:54 PM IST

दंतेवाड़ा: 52 शक्तिपीठों में 1 पीठ मां दंतेश्वरी का माना जाता है. बसंत पंचमी के अवसर पर बेलपत्र और आम के फूल से मां दंतेश्वरी की पूजा की गई. इसके बाद मंदिर प्रांगण में त्रिशूल की पूजा कर उसे स्थापित किया गया. यह परंपरा 600 वर्षों से चली आ रही है.

स्तंभ में रोज शिवरात्रि तक जलता है दीपक
मंदिर के उप पुजारी वीरेन्द्र नाथ जीया ने बताया कि सबसे पहले मां दंतेश्वरी की पूजा-अर्चना कर त्रिशूल स्तंभ की स्थापना की जाती है. स्तंभ में प्रतिदिन शिवरात्रि तक दीपक जलाया जाता है. महाशिवरात्रि के बाद से मेला-मड़ई का आगाज हो जाता है. इस मेले में 365 गांव के देवी-देवता को आमंत्रित किया जाता है. 9 दिनों तक मेला चलता है. दसवें दिन विधि-विधान से होलिका दहन किया जाता है. जिसके बाद दूरदराज से आए देवी-देवताओं को सम्मान भेंट कर विदाई दी जाती है.

त्रिशूल स्थापना के बाद शाम को मां दंतेश्वरी का छत्र नगर भ्रमण के लिए निकाला गया. मां दंतेश्वरी के छत्र की पूजा-अर्चना कर श्रद्धालुओं ने आशीर्वाद लिया. जिसके बाद माई जी के छत्र को पुलिस जवानों द्वारा सलामी दी जाती है. इसके बाद मां दंतेश्वरी का छत्र वापस दंतेश्वरी मंदिर लाया गया. बसंत पंचमी के दिन आम के बौर का विशेष महत्व होता है. इस बार भी आम के बौर से मां दंतेश्वरी का अभिषेक किया गया है.

दंतेवाड़ा: 52 शक्तिपीठों में 1 पीठ मां दंतेश्वरी का माना जाता है. बसंत पंचमी के अवसर पर बेलपत्र और आम के फूल से मां दंतेश्वरी की पूजा की गई. इसके बाद मंदिर प्रांगण में त्रिशूल की पूजा कर उसे स्थापित किया गया. यह परंपरा 600 वर्षों से चली आ रही है.

स्तंभ में रोज शिवरात्रि तक जलता है दीपक
मंदिर के उप पुजारी वीरेन्द्र नाथ जीया ने बताया कि सबसे पहले मां दंतेश्वरी की पूजा-अर्चना कर त्रिशूल स्तंभ की स्थापना की जाती है. स्तंभ में प्रतिदिन शिवरात्रि तक दीपक जलाया जाता है. महाशिवरात्रि के बाद से मेला-मड़ई का आगाज हो जाता है. इस मेले में 365 गांव के देवी-देवता को आमंत्रित किया जाता है. 9 दिनों तक मेला चलता है. दसवें दिन विधि-विधान से होलिका दहन किया जाता है. जिसके बाद दूरदराज से आए देवी-देवताओं को सम्मान भेंट कर विदाई दी जाती है.

त्रिशूल स्थापना के बाद शाम को मां दंतेश्वरी का छत्र नगर भ्रमण के लिए निकाला गया. मां दंतेश्वरी के छत्र की पूजा-अर्चना कर श्रद्धालुओं ने आशीर्वाद लिया. जिसके बाद माई जी के छत्र को पुलिस जवानों द्वारा सलामी दी जाती है. इसके बाद मां दंतेश्वरी का छत्र वापस दंतेश्वरी मंदिर लाया गया. बसंत पंचमी के दिन आम के बौर का विशेष महत्व होता है. इस बार भी आम के बौर से मां दंतेश्वरी का अभिषेक किया गया है.

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