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Braille Day: छत्तीसगढ़ का इकलौता प्रेस, जहां दृष्टिबाधित लोगों के लिए किताबें छपती हैं

ब्रेल लिपि दिवस दुनिया में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जा रहा है. हम आपको प्रदेश के पहले ब्रेल लिपि प्रेस में लेकर चलेंगे और आपको बताएंगे कि ब्रेल लिपि की पुस्तकों की छपाई कैसे होती है.

Special Story on Braille Script Day
ब्रेल लिपि प्रेस
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Published : Jan 4, 2020, 3:26 PM IST

Updated : Jan 4, 2020, 6:45 PM IST

बिलासपुर: 19वीं शताब्दी में फ्रांस में दृष्टिहीनों में एक ऐसा असामान्य व्यक्ति पैदा हुआ, जिसने एक अनोखा आविष्कार कर अंधेपन के शिकार लोगों की जिंदगी बदलकर रख दी.

वरदान से कम नहीं है यह प्रेस
इस अनोखे शख्स का नाम था लुई ब्रेल और आज इसी महान वैज्ञानिक की जयंती है, जिसे पूरा विश्व ब्रेल लिपि दिवस के तौर पर मना रहा है. सन 1821 में आज ही के दिन फ्रांसीसी मूल के लुई ब्रेल ने महज 12 साल की उम्र में ब्रेल लिपि को इजाद दिया था.

आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के तिफरा प्रदेश का एकमात्र ब्रेल प्रेस मौजूद है. यह प्रेस पूरी तरह से कम्प्यूटरीकृत है और यहां ब्रेल पद्धति से तैयार तमाम तरह की पुस्तकें तैयार होती हैं. यह ब्रेल प्रेस जनवरी 1985 में स्थापित हुआ था और तब से अब तक लगातार दृष्टिबाधितों के लिए यह जरूरी किताबें छाप रहा है.

जरूरतमंदों को दी जाती हैं किताबें
इस ब्रेल प्रेस में अत्याधुनिक मशीनें लगी हैं, जिसमें दर्जनों कर्मचारी अपनी सेवा दे रहे हैं. इस प्रेस से प्रमुख रूप से पहली से बारहवीं तक की पाठ्यपुस्तकों की छपाई होती है. जिन्हें जरूरतमंद बच्चों को उपलब्ध कराया जाता है.

कई तरह की छापी जाती हैं किताबें
इसके अलावा यहां कहानी आधारित पुस्तक, धार्मिक पुस्तकें और व्याकरण की किताबों की छपाई भी ब्रेल लिपि में होती है. एक आंकड़े के मुताबिक प्रदेश में इनदिनों 200 से 250 ऐसे दृष्टि से दिव्यांग शिक्षक हैं, जो ब्रेल पद्धति के माध्यम से सामान्य छात्रों को पढ़ाई करा रहे हैं.

वरदान से कम नहीं है यह प्रेस
निश्चित रूप से बिलासपुर में मौजूद प्रदेश का एकमात्र ब्रेल प्रेस दृष्टिबाधितों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है और यह सभ्य समाज को एक अनूठा संदेश भी देता है कि, दृष्टिबाधित भी इस समाज के ही अंग है और उन्हें हमारे प्यार की जरूरत है.

बिलासपुर: 19वीं शताब्दी में फ्रांस में दृष्टिहीनों में एक ऐसा असामान्य व्यक्ति पैदा हुआ, जिसने एक अनोखा आविष्कार कर अंधेपन के शिकार लोगों की जिंदगी बदलकर रख दी.

वरदान से कम नहीं है यह प्रेस
इस अनोखे शख्स का नाम था लुई ब्रेल और आज इसी महान वैज्ञानिक की जयंती है, जिसे पूरा विश्व ब्रेल लिपि दिवस के तौर पर मना रहा है. सन 1821 में आज ही के दिन फ्रांसीसी मूल के लुई ब्रेल ने महज 12 साल की उम्र में ब्रेल लिपि को इजाद दिया था.

आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के तिफरा प्रदेश का एकमात्र ब्रेल प्रेस मौजूद है. यह प्रेस पूरी तरह से कम्प्यूटरीकृत है और यहां ब्रेल पद्धति से तैयार तमाम तरह की पुस्तकें तैयार होती हैं. यह ब्रेल प्रेस जनवरी 1985 में स्थापित हुआ था और तब से अब तक लगातार दृष्टिबाधितों के लिए यह जरूरी किताबें छाप रहा है.

जरूरतमंदों को दी जाती हैं किताबें
इस ब्रेल प्रेस में अत्याधुनिक मशीनें लगी हैं, जिसमें दर्जनों कर्मचारी अपनी सेवा दे रहे हैं. इस प्रेस से प्रमुख रूप से पहली से बारहवीं तक की पाठ्यपुस्तकों की छपाई होती है. जिन्हें जरूरतमंद बच्चों को उपलब्ध कराया जाता है.

कई तरह की छापी जाती हैं किताबें
इसके अलावा यहां कहानी आधारित पुस्तक, धार्मिक पुस्तकें और व्याकरण की किताबों की छपाई भी ब्रेल लिपि में होती है. एक आंकड़े के मुताबिक प्रदेश में इनदिनों 200 से 250 ऐसे दृष्टि से दिव्यांग शिक्षक हैं, जो ब्रेल पद्धति के माध्यम से सामान्य छात्रों को पढ़ाई करा रहे हैं.

वरदान से कम नहीं है यह प्रेस
निश्चित रूप से बिलासपुर में मौजूद प्रदेश का एकमात्र ब्रेल प्रेस दृष्टिबाधितों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है और यह सभ्य समाज को एक अनूठा संदेश भी देता है कि, दृष्टिबाधित भी इस समाज के ही अंग है और उन्हें हमारे प्यार की जरूरत है.

Intro:19वीं शताब्दी में फ्रांस में दृष्टिहीनों में एक ऐसा असामान्य व्यक्तित्व पैदा हुआ जिसने एक अनोखे आविष्कार द्वारा अंधत्व के शिकार व्यक्तियों के लिए ज्ञान के द्वार खोल दिये । इस अनोखे व्यक्तित्व का नाम था लुई ब्रेल । आज हम ब्रेल लिपि के आविष्कारक लुई ब्रेल की जयंती मना रहे हैं,तो चलिए हम आपको लिए चलते हैं प्रदेश के एकमात्र ब्रेल प्रेस में जो दृष्टिबाधितों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है ।


Body:बिलासपुर के तिफरा में स्थित प्रदेश का एकमात्र ब्रेल प्रेस पूरी तरह से कम्प्यूटरीकृत है और यहां ब्रेल पद्धति से तैयार तमाम तरह की पुस्तकें तैयार होती है । यह ब्रेल प्रेस जनवरी 1985 में स्थापित हुआ था और स्थापना दिनांक से लगातार दृष्टिबाधितों के लिए यह जरूरी किताबें उपलब्ध करवा रहा है ।


Conclusion:इस ब्रेल प्रेस में अत्याधुनिक मशीनें लगी हैं जिसमें दर्जनों कर्मचारी अपनी सेवा दे रहे हैं । इस प्रेस से प्रमुख रूप से पहली कक्षा से बारहवीं तक की पाठ्यपुस्तकों की छपाई होती है जिन्हें जरूरतमंद बच्चों तक उपलब्ध कराया जाता है । इसके अलावा यहां कहानी आधारित पुस्तक, विभिन्न धार्मिक पुस्तक और व्याकरण के पुस्तकों की छपाई भी ब्रेल लिपि में होती है । एक आंकड़ा के मुताबिक प्रदेश में इनदिनों 200 से ढाई सौ ऐसे दृष्टिबाधित शिक्षक हैं जो ब्रेल पद्धति के माध्यम से सामान्य छात्रों का शिक्षण कर रहे हैं । निश्चित रूप से बिलासपुर का यह प्रदेश का एकमात्र ब्रेल प्रेस दृष्टिबाधितों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है और यह सभ्य समाज को एक अनूठा सन्देश भी देता है कि दृष्टिबाधित भी इस समाज के ही अंग हैं,उन्हें हमारे प्यार की जरूरत है तिरिष्कार की नहीं । बाईट.... आर के पाठक,संस्था हेड(चश्मा पहने हुए) बाईट.... सन्तोष देवांगन...प्रेस कर्मचारी पीटूसी विशाल झा..... बिलासपुर
Last Updated : Jan 4, 2020, 6:45 PM IST
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