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कहां 50 साल के "बुड्ढे" फिर से हो गए "जवान" ! - new technology

ठाकुर छेदीलाल बैरिस्टर कृषि विज्ञान केंद्र के उद्यानिकी विज्ञानिकों ने रिसर्च के मामले में नया कीर्तिमान रच दिया है. 40 से 50 साल पुराने बूढ़े पेड़ों में नई जान फूंक दी है. आम के जिन पेड़ों ने तकरीबन फल देना बंद कर दिया था, वे पेड़ भी इस सीजन में फलों से लद गए थे.

Old mango trees become young with new technology
नई तकनीक से जवान हो गए आम के पेड़
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Published : Sep 25, 2021, 1:25 PM IST

बिलासपुर : एक बार कोई बूढ़ा (Old) हुआ तो फिर कभी जवान (young) नहीं हो सकता. प्रकृति ने अभी तक ऐसे नियम और कोई तकनीक ही नहीं बनाई, जिससे कोई जवानी के बाद बुढ़ापे में पहुंचकर फिर से जवान हो पाए. लेकिन प्रकृति के इस नियम को बदल दिया है बिलासपुर के कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने. उद्यानिकी वैज्ञानिकों (Scientists at Krishi Vigyan Kendra Bilaspur) ने यहां बूढ़े (50 वर्ष से अधिक की उम्र) के हो चुके आम के पेड़ को एक बार फिर से "जवान" (फल देने लायक) बना दिया है. अब उन बूढ़े हो चले आम के पेड़ों में एक बार फिर से मनमाने फल भी आने शुरू हो गए हैं. इस तकनीक की ईजाद के बाद से जहां एक ओर यह केंद्र चर्चा का विषय बना हुआ है, वहीं इसे उद्यानिकी वैज्ञानिक फल उत्पादन के नजरिये से एक क्रांति का होना भी मान रहे हैं.

नई तकनीक से जवान हो गए आम के पेड़

ठाकुर छेदीलाल बैरिस्टर कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने रचा कीर्तिमान

ठाकुर छेदीलाल बैरिस्टर कृषि विज्ञान केंद्र के उद्यानिकी विज्ञानिकों ने रिसर्च के मामले में नया कीर्तिमान रच दिया है. 40 से 50 साल पुराने बूढ़े पेड़ों में नई जान फूंक दी है. आम के जिन पेड़ों ने तकरीबन फल देना बंद कर दिया था, वे पेड़ भी इस सीजन में फलों से लद गए थे. कृषि महाविद्यालय के आम के बगीचे करीब 100 से 150 पेड़ ऐसे थे, जो अपने जीवन की आखिरी सांस ले रहे थे. उन पर फल तो दूर पत्ते भी नहीं के बराबर हो गए थे, जिन्हें प्रयोग के तौर पर विज्ञानिकों ने जमीन से करीब 5 फीट ऊपर से कटवा दिया था. लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व यह प्रक्रिया की गई थी.

एक बार फिर से 50 साल बढ़ गई पेड़ों की उम्र

इस प्रक्रिया को वैज्ञानिक भाषा में रिजोवनेट कहा जाता है. इस पद्धति से पेड़ों की कटाई के बाद इसका वैज्ञानिक ट्रीटमेंट किया गया और दवा का प्रयोग किया जा रहा था. वैज्ञानिकों के इस प्रयास के डेढ़ वर्ष बाद उन्हें उनकी मेहनत का परिणाम मिला और वह सफल भी रहा. जिन पेड़ों का रिजोवनेट तकनीक से ट्रीटमेंट किया गया था, वे फलों से लद गए थे. अब उन पेड़ों की उम्र एक बार फिर 40 से 50 साल बढ़ गई है. आम के इन पेड़ों में दशहरी, लंगड़ा, अलफांजो, क्रीपिंग, पुरके, रानी रमन्ना, सुंदरजा, रानी पसंद और बंगलुरु जैसे अति विशिष्ट प्रजाति के आम के पेड़ को विकसित किया गया है. वैज्ञानिकों का दावा है कि जिन पेड़ों की उम्र अधिक हो जाने से उनमें फल कम होने लगते हैं, वह रिजोवनेट तकनीक के उपयोग से दोबारा पहले जैसे ही फल देने लगते हैं.



5 साल बाद भरपूर उत्पादन देने लगेंगी नई शाखाएं

इस तकनीक के बारे में कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि जीर्णोद्धार के तकरीबन 5 साल बाद नई शाखाएं भरपूर उत्पादन देना शुरू कर देंगी. तब नई शाखाओं में 40 वर्ष तक इसी रफ्तार से उत्पादन होगा और 40 वर्ष बाद उत्पादन घटना शुरू होगा. इस समय ठाकुर छेदीलाल बैरिस्टर कृषि विज्ञान केंद्र में करीब 67 प्रजाति के आम के पेड़ हैं, जिनमें इस पद्धति का प्रयोग किया गया था. इस तकनीकी में वैज्ञानिकों ने पेड़ों को जमीन से करीब 5 फीट ऊपर से कटवा दिया था.

पेड़ों की बराबर कटाई के लिए चैनसॉ मशीन का प्रयोग

इसके लिए चैनसॉ मशीन का उपयोग किया गया. पेड़ों को बराबर और गोलाई में काटा गया. पेड़ों को काटने के बाद गोलाई वाले हिस्से को फफूंद से बचाने के लिए फंगीसाइड दवाओं का लेप किया गया. लेप के बाद पेड़ों की सतत निगरानी की जाती रही और अब इसका परिणाम भी दिखने लगा है. पेड़ों में फल लगने लगे हैं और वैज्ञानिक प्रयोग सफल हो गया है. यह एक तरह से करिश्मा ही है जो बुड्ढों को फिर "जवान" कर दिया है.

बिलासपुर : एक बार कोई बूढ़ा (Old) हुआ तो फिर कभी जवान (young) नहीं हो सकता. प्रकृति ने अभी तक ऐसे नियम और कोई तकनीक ही नहीं बनाई, जिससे कोई जवानी के बाद बुढ़ापे में पहुंचकर फिर से जवान हो पाए. लेकिन प्रकृति के इस नियम को बदल दिया है बिलासपुर के कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने. उद्यानिकी वैज्ञानिकों (Scientists at Krishi Vigyan Kendra Bilaspur) ने यहां बूढ़े (50 वर्ष से अधिक की उम्र) के हो चुके आम के पेड़ को एक बार फिर से "जवान" (फल देने लायक) बना दिया है. अब उन बूढ़े हो चले आम के पेड़ों में एक बार फिर से मनमाने फल भी आने शुरू हो गए हैं. इस तकनीक की ईजाद के बाद से जहां एक ओर यह केंद्र चर्चा का विषय बना हुआ है, वहीं इसे उद्यानिकी वैज्ञानिक फल उत्पादन के नजरिये से एक क्रांति का होना भी मान रहे हैं.

नई तकनीक से जवान हो गए आम के पेड़

ठाकुर छेदीलाल बैरिस्टर कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने रचा कीर्तिमान

ठाकुर छेदीलाल बैरिस्टर कृषि विज्ञान केंद्र के उद्यानिकी विज्ञानिकों ने रिसर्च के मामले में नया कीर्तिमान रच दिया है. 40 से 50 साल पुराने बूढ़े पेड़ों में नई जान फूंक दी है. आम के जिन पेड़ों ने तकरीबन फल देना बंद कर दिया था, वे पेड़ भी इस सीजन में फलों से लद गए थे. कृषि महाविद्यालय के आम के बगीचे करीब 100 से 150 पेड़ ऐसे थे, जो अपने जीवन की आखिरी सांस ले रहे थे. उन पर फल तो दूर पत्ते भी नहीं के बराबर हो गए थे, जिन्हें प्रयोग के तौर पर विज्ञानिकों ने जमीन से करीब 5 फीट ऊपर से कटवा दिया था. लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व यह प्रक्रिया की गई थी.

एक बार फिर से 50 साल बढ़ गई पेड़ों की उम्र

इस प्रक्रिया को वैज्ञानिक भाषा में रिजोवनेट कहा जाता है. इस पद्धति से पेड़ों की कटाई के बाद इसका वैज्ञानिक ट्रीटमेंट किया गया और दवा का प्रयोग किया जा रहा था. वैज्ञानिकों के इस प्रयास के डेढ़ वर्ष बाद उन्हें उनकी मेहनत का परिणाम मिला और वह सफल भी रहा. जिन पेड़ों का रिजोवनेट तकनीक से ट्रीटमेंट किया गया था, वे फलों से लद गए थे. अब उन पेड़ों की उम्र एक बार फिर 40 से 50 साल बढ़ गई है. आम के इन पेड़ों में दशहरी, लंगड़ा, अलफांजो, क्रीपिंग, पुरके, रानी रमन्ना, सुंदरजा, रानी पसंद और बंगलुरु जैसे अति विशिष्ट प्रजाति के आम के पेड़ को विकसित किया गया है. वैज्ञानिकों का दावा है कि जिन पेड़ों की उम्र अधिक हो जाने से उनमें फल कम होने लगते हैं, वह रिजोवनेट तकनीक के उपयोग से दोबारा पहले जैसे ही फल देने लगते हैं.



5 साल बाद भरपूर उत्पादन देने लगेंगी नई शाखाएं

इस तकनीक के बारे में कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि जीर्णोद्धार के तकरीबन 5 साल बाद नई शाखाएं भरपूर उत्पादन देना शुरू कर देंगी. तब नई शाखाओं में 40 वर्ष तक इसी रफ्तार से उत्पादन होगा और 40 वर्ष बाद उत्पादन घटना शुरू होगा. इस समय ठाकुर छेदीलाल बैरिस्टर कृषि विज्ञान केंद्र में करीब 67 प्रजाति के आम के पेड़ हैं, जिनमें इस पद्धति का प्रयोग किया गया था. इस तकनीकी में वैज्ञानिकों ने पेड़ों को जमीन से करीब 5 फीट ऊपर से कटवा दिया था.

पेड़ों की बराबर कटाई के लिए चैनसॉ मशीन का प्रयोग

इसके लिए चैनसॉ मशीन का उपयोग किया गया. पेड़ों को बराबर और गोलाई में काटा गया. पेड़ों को काटने के बाद गोलाई वाले हिस्से को फफूंद से बचाने के लिए फंगीसाइड दवाओं का लेप किया गया. लेप के बाद पेड़ों की सतत निगरानी की जाती रही और अब इसका परिणाम भी दिखने लगा है. पेड़ों में फल लगने लगे हैं और वैज्ञानिक प्रयोग सफल हो गया है. यह एक तरह से करिश्मा ही है जो बुड्ढों को फिर "जवान" कर दिया है.

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