बिलासपुर : कुम्हारों को संबल देने के लिए रेलवे ने कुल्हड़ में चाय उपलब्ध कराने की योजना शुरु की.लेकिन अब ये योजना फ्लॉप होती नजर आ रही है. क्योंकि अब सभी रेलवे स्टेशनों में कुल्हड़ में चाय देना महज शो पीस के अलावा कुछ नहीं.स्टॉल मालिक कम खर्चे में ज्यादा कमाई के चक्कर में डिस्पोजल कप में ही चाय सर्व कर रहे हैं.इस वजह से स्थानीय कुम्हारों को इस योजना का लाभ नहीं मिल रहा है. वहीं इस मामले में रेलवे प्रबंधन कुछ भी कहने के लिए तैयार नही है. ऐसे में कुम्हारों की स्थिति सुधरने की बजाए बदतर होती जा रही है.
कब शुरू की गई थी योजना : केंद्र की यूपीए सरकार में जब लालू प्रसाद यादव रेलमंत्री थे. तो उन्होंने 16 साल पहले वर्ष 2004 में रेलवे स्टेशनों पर 'कुल्हड़' में चाय परोसने की शुरुआत की थी. इस योजना के तहत स्टेशनों में संचालित टी स्टालों में यात्रियों को कुल्हड़ में चाय पिलाने की योजना थी. कुछ समय तो रेलवे ने इस नियम का सख्ती से पालन भी किया. स्टालों के माध्यम से कुल्हड़ में चाय दी जा रही थी. लेकिन जैसे ही केंद्र में यूपीए की सरकार बदली और एनडीए की सरकार आई. तब से रेलवे स्टेशनों से कुल्हड़ गायब होने लगे.एक बार फिर डिस्पोजल कप में स्टेशनों और पेंट्री कार में चाय बिकने लगी.
अधिक कमाई के लालच में कुल्हड़ से दूरी : यूपीए की सरकार ने कुम्हारों के खराब होती आर्थिक स्थिति को सुधारने और प्लास्टिक से पर्यावरण नुकसान को देखते हुए कुल्हड़ में चाय बेचने को मंजूरी दी थी.लेकिन अब स्टॉल मालिक अधिक कमाई करने की लालच में स्टाल संचालक डिस्पोजल कप में चाय परोस रहे हैं.वहीं रेलवे ने 10 रुपए चाय की कीमत निर्धारित की है.ऐसे में दो से तीन रुपए कुल्हड़ में खर्च होंगे.
कुम्हार भी झेल रहे आर्थिक तंगी : कुल्हड़ बनाने वाले कुम्हार चंद्र शेखर प्रजापति ने कहा कि '' परेशानी तो है क्योंकि कुम्हार का पूरा धंधा मार खा गया है. मिट्टी के बर्तनों से हमारी रोजी रोटी चलती थी. अभी इतना काम ज्यादा है ही नहीं कि परिवार चल सके. रोजी कम होने की वजह से परिवार की आर्थिक स्थिति भी कमजोर होती जाती है. जो मटेरियल हमको मिलता है उसकी कीमत अधिक होती है. इसलिए डिस्पोजल के मुकाबले कुल्हड़ थोड़ा महंगा पड़ता है. शुरू में योजना के तहत उनसे कुल्हड़ खरीदी की जाती थी. लेकिन अब धीरे-धीरे बंद कर दिया गया. स्टेशन और ट्रेन में चाय बेचने वाले कागज और प्लास्टिक के डिस्पोजल का उपयोग करते हैं. वह उन्हें सस्ता पड़ता है. इसलिए उनसे वह कुल्हड़ नहीं खरीदते.''
रेल प्रबंधन पर टिकी निगाहें : रेल प्रबंधन भी कुम्हारों की स्थिति की सुध नही लेता और टी स्टॉल के मालिकों की अधिक कमाई को लेकर कोई कदम नहीं उठाता है. ये भी अंदेशा है कि रेलवे के अधिकारी टी स्टाल संचालकों से शायद कमीशन लेते हो इसीलिए नियमों का पालन नहीं करवाते. जिसकी वजह से कुम्हारों के आर्थिक स्थिति बद से बदतर होती जा रही है. यदि रेल अधिकारी चाहे तो फिर से कुम्हारों की आर्थिक स्थिति में सुधार आ सकती है. क्योंकि उनके बिना मर्जी के कोई भी प्लेटफार्म या ट्रेन में सामान नहीं भेज सकता.
कुल्हड़ है ईको फ्रेंडली : कुल्हड़ का निर्माण कर उसे स्टेशन में सप्लाई करने वाले राकेश प्रजापति ने बताया कि ''कुम्हारों की स्थिति तो पहले से ही खराब चल रही थी. तब ही इस योजना की शुरुआत की गई. योजना की शुरुआत में काम ठीक ठाक मिलता रहा, फिर बंद हो गया. अभी स्थिति पहले जैसी बदतर होती जा रही है. रेलवे भी कुल्हड़ की जगह डिस्पोजल प्लास्टिक और कागज कप चला रही है. इसकी वजह से अब कुल्हड़ का निर्माण भी करना बंद कर दिए हैं. वहीं कुम्हार उत्तम प्रजापति ने कहा कि '' रेलवे के डिमांड के मुताबिक कुल्हड़ तैयार किया जाता था. उन्हें वहां देकर पैसे ले लिए जाते थे, लेकिन अब कुल्हड़ की डिमांड नहीं के बराबर हो गई है." कुम्हार चंद्रशेखर की पत्नी अनिता कहती है कि ''घर में बैठकर काम करने वाले कुम्हारों को अब रोजी मजदूरी के लिए कुछ और करना पड़ेगा.कुम्हार के काम में अब पहले जैसी कमाई नहीं रही, इसलिए परिवार चलाने दूसरे काम में जाना पड़ता है.''
रेलवे सुधार सकता है कुम्हारों की स्थिति : प्लेटफार्म में टी स्टॉल संचालकों की अधिक कमाई और रेल प्रशासन की अभिज्ञता के कारण कुम्हारों की स्थिति खराब होती जा रही है. उनके पास पहले ही मिट्टी खरीदने और इससे बने सामानों को बाजार में बिक्री के लिए पहले ही समस्या सामने खड़ी है. कुम्हारों को मिट्टी बाहर से खरीदी कर लाना पड़ता है, जिसमें ट्रांसपोर्टेशन के साथ ही जमीन मालिक से मिट्टी खरीदने में पैसे ज्यादा चले जाते हैं. फिर भी वह अपने पुश्तैनी व्यवसाय को बचाए रखने और परिवार का पेट पालने इस काम को कर रहे हैं. रेलवे में जब कुल्हड़ लिया जाता था तो उनकी कमाई अधिक होती थी, लेकिन टी स्टॉल संचालकों की अधिक कमाई की लालच में कुल्लड़ की खरीदी पूरी तरह से बंद हो गई है. जिसका असर कहीं ना कहीं कुम्हारों पर पड़ा है.