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बिलासपुर में नए जमाने के पोस्टमैन इस अंदाज में घर-घर पहुंचा रहे सरकारी कागजात - postman of bilaspur

एक दौर था जब लोग डाकिए का इंतजार चिट्ठी के लिए बेसब्री से किया करते थे. हालांकि तकनीकी यंत्रों के कारण चिट्ठियां धीरे-धीरे विलुप्त होती चली गई. साथ ही डाकिया भी पहले के तरह दिखने बंद हो गए. हालांकि बिलासपुर में नए जमाने के पोस्टमैन अलग अंदाज में में लोगों के घर सरकारी कागजातों को पहुंचा रहे हैं.

postman of  bilaspur
बिलासपुर के पोस्टमैन
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Published : Jun 29, 2022, 8:36 PM IST

बिलासपुर: बिलासपुर में चिट्ठियों के माध्यम से खुशियों बांटने वाले डाकिये अब धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रहे हैं. नए जमाने के ईमेल, जीमेल और सोशल मीडिया ने अब पोस्टमैन की डयूटी और जिम्मेदारियों को ही खत्म कर दिया है. किसी जमाने में पोस्टमैन का लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. नौकरी, रिश्तेदारी, खुशखबरी और परिवार के सदस्यों के बाहर रहने पर उनके हालचाल जानने का सहारा पहले चिट्ठी ही हुआ करती थी.

आधुनिकता और तकनीक के कारण चिट्ठी की प्रथा ही खत्म हो चुकी है. जिसके कारण पोस्टमैन भी इन चिट्ठियों के साथ विलुप्त होते गए. हालांकि बिलासपुर में नए जमाने के पोस्टमैन अब सरकारी कागजातों को घर-घर पहुंचाने का काम कर रहे हैं. अब डाकिया भी मॉडर्न हो गए हैं. साइकल छोड़ बाइक या फिर स्कूटी से ये डाकिया लोगों के घर सरकारी कागजातों को पहुंचा रहे हैं.

बिलासपुर में नए जमाने के पोस्टमैन

कभी चिट्ठियों से खुशियां बांटा करते थे डाकिए: पहले सायकल में सवार बैग लटकाए एक व्यक्ति गांव-गांव, गली-गली घूमकर चिट्ठियां बाटता था, जिसे डाकिया के नाम से जाना जाता था. डाकिया लोगों में चिट्ठी के माध्यम से खुशियां बाटता था. वह लोगों के रिश्तेदारों और परिवार से दूर रहने वालों की खबर चिट्टी के जरिये पहुंचता था. डाकिये का लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता था. कुछ चिट्ठियों में दु:ख की खबर तो कुछ में खुशियों की खबर रहती थी. खबर के बाद डाकिये का मुंह भी मीठा कराया जाता था और इनाम भी दिया जाता था. डाकिये को लोग अपने घर की खुशियों में शामिल करते, उन्हें न्योता भी दिया करते थे.

ऐसे घर-घर पहुंचते थे डाकिए: करीब चार दशक पहले तक गांवों में डाकिया पैदल घूम कर डाक बांटते थे. फिर 90 की दशक में डाकिया साइकिल पर सवार होकर गांवों में चिट्ठियां बांटते थे. देखते ही देखते बाइक का दौर भी आ गया, लेकिन अब मोबाइल के कारण डाक और चिट्ठी की प्रथा ही खत्म हो गई. बदलते दौर के साथ चिट्ठी प्रथा भी खत्म हो गई. अब अपनों की खबर लेने देने वाली चिट्ठी नहीं आती, सिर्फ जरूरी डाक ही लोगों के घर आती है. फोन, ईमेल से लेकर सोशल मीडिया के माध्यम से संदेशों का आदान-प्रदान किया जाता है. यही वजह है कि डाकिए का काम बदल गया है.

नए दौर के डाकिए का बदला काम: बदलते दौर के साथ डाकियों का काम भी बदल गया है. पहले चिट्ठियों में लोग अपने सुख-दुख की खबरें लिखकर अपनो को भेजा करते थे. ये खबर दिलों को सुकून पहुंचाया करती थी. लेकिन नए जमाने में डाकिये सरकारी कागजात और चिट्ठियां पहुंचा रहे हैं. डाकिये पेन कार्ड, आधार कार्ड, सरकारी दस्तावेज और कई शासकीय संदेश पहुंचा रहे हैं, जिनके देर होने पर भी लोगों को इनकी चिंता नहीं रहती. डाकिये भी अब नए जमाने के हो गए हैं. साइकिल छोड़ ये डाकिए बाइक और स्कूटी पर सवारी कर कागजात लोगों के घर पहुंचा रहे हैं.

यह भी पढ़ें: टपकती छत से दिखता है आसमान, जर्जर स्कूल भवनों से कैसे पूरे होंगे अरमान !

कबूतर और राजदूतों के माध्यम से भेजी जाती थी चिट्ठियां: भारत राजा-महाराजाओं का देश रहा है. यहां एक देश से दूसरे देश संदेश देने के लिए राजदूतों का सहारा लिया जाता था, जो अपने राज्य का संदेश चिट्ठी के माध्यम से दूसरे देश भेजते थे. इसके अलावा संदेश देने के लिए कबूतरों का भी सहारा लिया जाता था. पहले कबूतर के पैर में चिट्ठी बांध कर उसे छोड़ दिया जाता था और कबूतर अपने घरौंदे तक पहुंच जाता था. उसके पैर में बंधी चिट्ठी लोगों को मिल जाती थी. लेकिन बड़े संदेश पहुचाने को राजदूतों का सहारा लिया जाता था.

बिलासपुर: बिलासपुर में चिट्ठियों के माध्यम से खुशियों बांटने वाले डाकिये अब धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रहे हैं. नए जमाने के ईमेल, जीमेल और सोशल मीडिया ने अब पोस्टमैन की डयूटी और जिम्मेदारियों को ही खत्म कर दिया है. किसी जमाने में पोस्टमैन का लोग बेसब्री से इंतजार कर रहे थे. नौकरी, रिश्तेदारी, खुशखबरी और परिवार के सदस्यों के बाहर रहने पर उनके हालचाल जानने का सहारा पहले चिट्ठी ही हुआ करती थी.

आधुनिकता और तकनीक के कारण चिट्ठी की प्रथा ही खत्म हो चुकी है. जिसके कारण पोस्टमैन भी इन चिट्ठियों के साथ विलुप्त होते गए. हालांकि बिलासपुर में नए जमाने के पोस्टमैन अब सरकारी कागजातों को घर-घर पहुंचाने का काम कर रहे हैं. अब डाकिया भी मॉडर्न हो गए हैं. साइकल छोड़ बाइक या फिर स्कूटी से ये डाकिया लोगों के घर सरकारी कागजातों को पहुंचा रहे हैं.

बिलासपुर में नए जमाने के पोस्टमैन

कभी चिट्ठियों से खुशियां बांटा करते थे डाकिए: पहले सायकल में सवार बैग लटकाए एक व्यक्ति गांव-गांव, गली-गली घूमकर चिट्ठियां बाटता था, जिसे डाकिया के नाम से जाना जाता था. डाकिया लोगों में चिट्ठी के माध्यम से खुशियां बाटता था. वह लोगों के रिश्तेदारों और परिवार से दूर रहने वालों की खबर चिट्टी के जरिये पहुंचता था. डाकिये का लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता था. कुछ चिट्ठियों में दु:ख की खबर तो कुछ में खुशियों की खबर रहती थी. खबर के बाद डाकिये का मुंह भी मीठा कराया जाता था और इनाम भी दिया जाता था. डाकिये को लोग अपने घर की खुशियों में शामिल करते, उन्हें न्योता भी दिया करते थे.

ऐसे घर-घर पहुंचते थे डाकिए: करीब चार दशक पहले तक गांवों में डाकिया पैदल घूम कर डाक बांटते थे. फिर 90 की दशक में डाकिया साइकिल पर सवार होकर गांवों में चिट्ठियां बांटते थे. देखते ही देखते बाइक का दौर भी आ गया, लेकिन अब मोबाइल के कारण डाक और चिट्ठी की प्रथा ही खत्म हो गई. बदलते दौर के साथ चिट्ठी प्रथा भी खत्म हो गई. अब अपनों की खबर लेने देने वाली चिट्ठी नहीं आती, सिर्फ जरूरी डाक ही लोगों के घर आती है. फोन, ईमेल से लेकर सोशल मीडिया के माध्यम से संदेशों का आदान-प्रदान किया जाता है. यही वजह है कि डाकिए का काम बदल गया है.

नए दौर के डाकिए का बदला काम: बदलते दौर के साथ डाकियों का काम भी बदल गया है. पहले चिट्ठियों में लोग अपने सुख-दुख की खबरें लिखकर अपनो को भेजा करते थे. ये खबर दिलों को सुकून पहुंचाया करती थी. लेकिन नए जमाने में डाकिये सरकारी कागजात और चिट्ठियां पहुंचा रहे हैं. डाकिये पेन कार्ड, आधार कार्ड, सरकारी दस्तावेज और कई शासकीय संदेश पहुंचा रहे हैं, जिनके देर होने पर भी लोगों को इनकी चिंता नहीं रहती. डाकिये भी अब नए जमाने के हो गए हैं. साइकिल छोड़ ये डाकिए बाइक और स्कूटी पर सवारी कर कागजात लोगों के घर पहुंचा रहे हैं.

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कबूतर और राजदूतों के माध्यम से भेजी जाती थी चिट्ठियां: भारत राजा-महाराजाओं का देश रहा है. यहां एक देश से दूसरे देश संदेश देने के लिए राजदूतों का सहारा लिया जाता था, जो अपने राज्य का संदेश चिट्ठी के माध्यम से दूसरे देश भेजते थे. इसके अलावा संदेश देने के लिए कबूतरों का भी सहारा लिया जाता था. पहले कबूतर के पैर में चिट्ठी बांध कर उसे छोड़ दिया जाता था और कबूतर अपने घरौंदे तक पहुंच जाता था. उसके पैर में बंधी चिट्ठी लोगों को मिल जाती थी. लेकिन बड़े संदेश पहुचाने को राजदूतों का सहारा लिया जाता था.

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