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Sankranti bath tradition : बिलासपुर में खत्म हो रही संक्रांति स्नान की परंपरा - मकर संक्रांति

मकर संक्रांति में नदियों में स्नान की सदियों से परम्परा रही है. मकर संक्रांति की सुबह हिन्दू धर्म के अनुयायी तालाब या नदी में जाकर घाट पर मकर संक्रांति स्नान करते हैं. बिलासपुर में अब यह मान्यता भूली बिसरी होने लगी है. शहर में अब कही ऐसी जगह नहीं बची जहां लोग घाट में जाकर स्नान करें. इसलिए अब लोग अपने घरों में ही मकर स्नान कर रहे हैं. मान्यता के अनुसार मकर संक्रांति की सुबह तालाब, नदी में जाकर रीति रिवाज के साथ स्नान के बाद पूजा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है.

Sankranti bath tradition
बिलासपुर में खत्म हो रही संक्रांति स्नान की परंपरा
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Published : Jan 14, 2023, 5:27 PM IST

बिलासपुर: सूर्य के मकर राशि पर प्रवेश करने के दिन भारत में 14 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है. इसमें कई अलग-अलग तरह की पूजा पाठ, विशेष सामग्री और रीति रिवाज है. बिलासपुर में मकर संक्रांति के दौरान लोग अपने घरों से निकलकर सुबह नदी के घाट पहुंचकर मकर स्नान करते थे. यह मान्यता गांव में अभी भी जारी है. लेकिन शहरी क्षेत्र में तालाबों पर हुए अतिक्रमण की वजह से तालाबों का अस्तित्व खत्म हो गया है.

मकर संक्रांति पर खत्म हो रही परंपरा

वहीं नदी में अब घाट ही नहीं बचा. जहां लोग जाकर संक्रांति के दिन स्नान करें. शहर से बहने वाली अरपा नदी में कई घाट हुआ करते थे.लेकिन समय के साथ आधुनिकता और बेजा कब्जा से घाट खत्म हो गए. शहर के अंदर नदी में मात्र एक ही घाट बचा था वह भी नही रहा. शनिचरी बाजार के करीब बने पथरीघाट को तोड़ दिया गया है. यहां बैराज का निर्माण कराया जा रहा है.



अब घरों में ही हो रहा स्नान : शहर से बहने वाली जीवन दायिनी अरपा नदी भी अब अपने जीवन को तरस रही है. अरपा नदी में अब पानी नहीं रहा.जिस जगह पानी है वहां अब घाट हीं नहीं है. घाट नहीं होने की वजह से लोग अब इस मान्यता को पूरा करने अपने घरों में ही संक्रांति स्नान कर रहे हैं. अरपा नदी में शनिचरी बाजार के करीब पचरीघाट था. जिसमें लोग मकर संक्रांति के दिन सुबह पहुंचकर संक्रांति स्नान करते थे. लेकिन वर्तमान में वहां बैराज निर्माण की वजह से घाट को तोड़ दिया गया है.जिसके कारण अब लोगों को मजबूरन घरों में ही संक्रांति स्नान करना पड़ेगा.



संक्रांति स्नान का क्या है महत्व : सूर्य देवता के मकर राशि में प्रवेश करने के दिन भारतीय हिंदू धर्म के अनुयाई मकर संक्रांति का पर्व मनाते हैं. इस दिन हिंदू धर्म के मानने वाले नदी और तालाबों के घाट पर पहुंचकर तिल का तेल शरीर में लगाकर सूर्य देवता को अर्ध्य देते हुए स्नान करते हैं. स्नान के बाद फिर रीति रिवाज के साथ तिलगुड़ और तिल के तेल के साथ ही लड्डुओं की पूजा करते हैं. हिंदू धर्म में मकर संक्रांति के दिन तिल का तेल शरीर में लगाकर स्नान करने पर पुण्य की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि इस दिन से ही दिन तिल के दाने जैसे थोड़ा-थोड़ा कर बढ़ता है.

ये भी पढ़ें- मकर संक्रांति स्नान के लिए गंगासागर पहुंचे लाखों श्रद्धालु

गांवों में अब भी जीवित है संक्रांति स्नान की परंपरा शहरी क्षेत्रों में आधुनिकता और लोगों की सोच में परिवर्तन ने मकर संक्रांति के दिन स्नान करने की परंपरा को खत्म कर रही है. अब ऐसी मान्यताओं पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता. इस दिन को भी सामान्य दिनों की तरह मानने लगे है, लेकिन गांव में अब भी यह परंपरा जीवित है. लोग मकर संक्रांति की सुबह संक्रांति स्नान कर पूजा पाठ करते हैं और तिल के लड्डू बांटकर एक दूसरे को संक्रांति की बधाई देते हैं. हिंदू मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन सुखमय होता है.

बिलासपुर: सूर्य के मकर राशि पर प्रवेश करने के दिन भारत में 14 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है. इसमें कई अलग-अलग तरह की पूजा पाठ, विशेष सामग्री और रीति रिवाज है. बिलासपुर में मकर संक्रांति के दौरान लोग अपने घरों से निकलकर सुबह नदी के घाट पहुंचकर मकर स्नान करते थे. यह मान्यता गांव में अभी भी जारी है. लेकिन शहरी क्षेत्र में तालाबों पर हुए अतिक्रमण की वजह से तालाबों का अस्तित्व खत्म हो गया है.

मकर संक्रांति पर खत्म हो रही परंपरा

वहीं नदी में अब घाट ही नहीं बचा. जहां लोग जाकर संक्रांति के दिन स्नान करें. शहर से बहने वाली अरपा नदी में कई घाट हुआ करते थे.लेकिन समय के साथ आधुनिकता और बेजा कब्जा से घाट खत्म हो गए. शहर के अंदर नदी में मात्र एक ही घाट बचा था वह भी नही रहा. शनिचरी बाजार के करीब बने पथरीघाट को तोड़ दिया गया है. यहां बैराज का निर्माण कराया जा रहा है.



अब घरों में ही हो रहा स्नान : शहर से बहने वाली जीवन दायिनी अरपा नदी भी अब अपने जीवन को तरस रही है. अरपा नदी में अब पानी नहीं रहा.जिस जगह पानी है वहां अब घाट हीं नहीं है. घाट नहीं होने की वजह से लोग अब इस मान्यता को पूरा करने अपने घरों में ही संक्रांति स्नान कर रहे हैं. अरपा नदी में शनिचरी बाजार के करीब पचरीघाट था. जिसमें लोग मकर संक्रांति के दिन सुबह पहुंचकर संक्रांति स्नान करते थे. लेकिन वर्तमान में वहां बैराज निर्माण की वजह से घाट को तोड़ दिया गया है.जिसके कारण अब लोगों को मजबूरन घरों में ही संक्रांति स्नान करना पड़ेगा.



संक्रांति स्नान का क्या है महत्व : सूर्य देवता के मकर राशि में प्रवेश करने के दिन भारतीय हिंदू धर्म के अनुयाई मकर संक्रांति का पर्व मनाते हैं. इस दिन हिंदू धर्म के मानने वाले नदी और तालाबों के घाट पर पहुंचकर तिल का तेल शरीर में लगाकर सूर्य देवता को अर्ध्य देते हुए स्नान करते हैं. स्नान के बाद फिर रीति रिवाज के साथ तिलगुड़ और तिल के तेल के साथ ही लड्डुओं की पूजा करते हैं. हिंदू धर्म में मकर संक्रांति के दिन तिल का तेल शरीर में लगाकर स्नान करने पर पुण्य की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि इस दिन से ही दिन तिल के दाने जैसे थोड़ा-थोड़ा कर बढ़ता है.

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गांवों में अब भी जीवित है संक्रांति स्नान की परंपरा शहरी क्षेत्रों में आधुनिकता और लोगों की सोच में परिवर्तन ने मकर संक्रांति के दिन स्नान करने की परंपरा को खत्म कर रही है. अब ऐसी मान्यताओं पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता. इस दिन को भी सामान्य दिनों की तरह मानने लगे है, लेकिन गांव में अब भी यह परंपरा जीवित है. लोग मकर संक्रांति की सुबह संक्रांति स्नान कर पूजा पाठ करते हैं और तिल के लड्डू बांटकर एक दूसरे को संक्रांति की बधाई देते हैं. हिंदू मान्यताओं के अनुसार ऐसा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन सुखमय होता है.

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