बिलासपुर:पूरा देश "आजादी का अमृत मोहत्सव" मना रहा है. पिछले साल से शुरू हुआ "आजादी का अमृत महोत्सव" का इस साल समापन है. इस मौके पर ईटीवी भारत आपको देश की आजादी से जुड़ी अनोखी जानकारियां देने जा रहा है. जब साल 1933 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी बिलासपुर पहुंचे थे, उस समय बिलासपुर में बापू का भव्य स्वागत किया गया था. महात्मा गांधी का बिलासपुर से खास नाता था.
साल 1933 में बिलासपुर आए थे बापू: बापू बिलासपुर में आजादी के दीवानों को साल 1933 में संबोधित करने आए थे. बिलासपुर के शनिचरी बाजार के मैदान में गांधीजी ने जनसभा को संबोधित किया था. यहां उनकी यादों को आज भी सहेज कर रखा गया है. उस समय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आजादी के लिए देशभर में आमसभा कर लोगों से आजादी की लड़ाई के लिए सहयोग मांग रहे थे, इसी कड़ी में बापू बिलासपुर भी आए थे.
हफ्ते भर पहले से लोगों ने डाला डेरा: 25 नवम्बर 1933 को सड़क मार्ग से बापू बिलासपुर पहुंचे. बापू के बिलासपुर आने की सूचना पाकर बिलासपुर और आसपास के लोगों में उनकी एक झलक पानेके लिए हफ्ते भर पहले से ही बिलासपुर में अपना डेरा जमा लिया था. पहली बार शहरी क्षेत्र में दूर-दूर से पहुंचे लोगों का रेला दिख रहा था. उन दिनों शहर में लोग साइकिल, बैलगाड़ी के माध्यम से कहीं जाया करते थे. गांधी जी का शहर आने से पहले रायपुर रोड में जगह-जगह भव्य स्वागत किया गया था. रायपुर-बिलासपुर मार्ग में लोगों की दीवानगी गांधी जी के प्रति इस कदर थी कि लोग गांधी जी के स्वागत में फूल और सिक्के लुटा रहे थे.
बिलासा नगरी हुई धन्य: शिवदुलारे मिश्रा के पोते शिवा मिश्रा ने बताया कि, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर लोगों को देश की आजादी के लिए एकजुट किया था. बापू का छत्तीसगढ़ कनेक्शन भी इतिहास के अमिट स्मृतियों में दर्ज है. पहली बार जब गांधी हरिजन आंदोलन के लिए रायपुर पहुंचे थे, तब उन्होंने रायपुर में कई आमसभा की थी. लेकिन उनका बिलासपुर का कोई प्रोग्राम नहीं था. हालांकि बिलासपुर वासियों के आग्रह पर उन्होंने जल्द बिलासपुर आने का वादा किया. साल 1933 में गांधीजी बिलासपुर आए. बिलासा नगरी बापू के कदम पड़ते ही धन्य हो गई."
बिलासपुर में निशानी के तौर पर जयस्तंभ: गांधी जी के बिलासपुर आने की कुछ यादें आज भी जीवित है. बिलासपुर के शनिचरी बाजार में जब वे आए तो उनका भव्य स्वागत हुआ. वो जिस मैदान में आमसभा को संबोधित किए थे, वहां उनके जाने के बाद कुंज बिहारी लाल अग्निहोत्री ने एक जय स्तंभ बनवाया था. आज भी महात्मा गांधी के बिलासपुर आने की निशानी के तौर पर वो जयस्तंभ है.
महिलाओं ने आजादी के लिए दिए जेवरात: बिलासपुर का जरहाभाठा चौक के पास ठाकुर छेदीलाल के नेतृत्व में उनका भव्य स्वागत हुआ. गांधीजी को विश्राम के लिए कुंजबिहारी अग्निहोत्री के निवास पर भेजा गया, जहां लोगों की भीड़ बेकाबू हो रही थी. महात्मा गांधी ने घर के झरोखे से ही बाहर मौजूद जनसमूह का अभिवादन किया. इसी दिन शहर के कंपनी गार्डन (विवेकानंद उद्यान) में महिलाओं की सभा आयोजित की गई. गांधीजी इस सभा में पहुंचे और उन्हें देशहित के लिए महिलाओं ने 1000 रुपए से भरी एक थैली भेंट की. हालांकि गांधीजी ने आजादी के सहयोग के तौर पर उस राशि को कम माना. जिसके बाद महिलाओं ने बापू को तुरंत अपने जेवरात भेंट कर दिए.
जनसभा में उमड़ा था जनसैलाब: गांधी जी की जनसभा दो जगह हुई थी. उसी दिन शहर के शनिचरी बाजार क्षेत्र में गांधी जी की जनसभा होनेवाली थी. जनसभा में लाखों की भीड़ आ गई, जिसे संभाल पाना मुश्किल हो रहा था. सभा में मौजूद डॉ. शिवदुलारे मिश्रा, बैरिस्टर छेदीलाल के अलावा अन्य गणमान्य लोगों ने भरसक कोशिश की थी कि माहौल को नियंत्रित किया जाए, लेकिन वे असफल रहे. फिर बापू ने खुद मोर्चा संभाला और हाथ हिलाकर लोगों को शांत रहने की अपील की. सब शांत हो गए और मन्त्रमुग्ध होकर बापू को सुनने लगे. इस सभा में मूलरूप से दलित और हरिजन उत्थान के विषय को उठाया गया था. गांधी के प्रति आदर और श्रद्धा का भाव इस कदर था कि सभा खत्म होने के बाद वहां मौजूद लोग सभास्थल से मिट्टी उठाकर अपने साथ ले गए.