बिलासपुर: कोरोना वैक्सीनेशन की प्रक्रिया तेज होने के बाद अब लोगों की जिंदगी फिर से पटरी पर लौटने लगी है. कोरोनाकाल में जहां हर क्षेत्र प्रभावित हुआ. वहीं स्कूली बच्चों को भी बड़ी जहमत उठानी पड़ी. कई महीनों से बच्चे स्कूल नहीं गए और चारदीवारी के भीतर ही उनका समय बीता. ऐसे में उनके स्वभाव में भी बदलाव देखने को मिले और उनकी दिनचर्या भी पूरी तरह बदल गई.
अब जब स्कूल खुलने की प्रक्रिया फिर से शुरू होने वाली है, ऐसे माहौल में बच्चों के गार्जियन और स्कूल प्रबंधन के लिए दोबारा यह चुनौती सामने आ गई है कि किस तरह बच्चों को फिर से स्कूली जीवन के लिए प्रेरित करें. पेश है ETV भारत की एक खास रिपोर्ट.
बच्चों की बदली जीवन शैली
ETV भारत की टीम ने अभिभावकों और शिक्षकों से बातचीत की. शिक्षकों का मानना है कि लंबे समय तक जब बच्चे स्कूली गतिविधियों से दूर रहे. ऐसे में उनकी जीवनशैली पूरी तरह बदल गई है. उनके ऊपर स्कूल जाने का दवाब नहीं रहा, जिससे उनकी दिनचर्या पूरी तरह बदल गई है. सुबह जल्दी उठने और अपनी डेली लाइफ को जीने के प्रबंधन में बदलाव देखा गया है. बच्चे कुछ हद तक मोबाइल एडिक्ट हुए हैं और पढ़ाई के अलावा अन्य गतिविधियों से भी जुड़े हैं. इसलिए अब जब नए सिरे से दोबारा बच्चों को स्कूल की ओर रुख करना होगा तो बच्चों के पैरेंट्स और शिक्षकों की भूमिका अहम हो जाएगी. बच्चों के माता-पिता को अब चाहिए कि वे अपने बच्चों को स्कूल जाने से पहले उन्हें पुराने लाइफ स्टाइल के लिए मानसिक तौर पर तैयार करें.
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दिनचर्या में वापस आने के लिए लगेगा टाइम
अभिभावकों का भी मानना है कि इस बीच उनके बच्चों के रहन-सहन में बड़ा बदलाव आया है. यह उनके लिए भी किसी चैलेंज से कम नहीं है कि बच्चों को स्कूल खुलते ही नए माहौल में जल्द से जल्द ढालें. स्कूल छूटने का गैप लंबा था. बच्चे पुराने ढांचे में ढलने में टाइम लगाएंगे. बच्चों को स्कूली जीवन में अनुकूलित होने में समय लगेगा. इस बीच गार्जियन की भूमिका अहम हो जाएगी.
बाहरी दुनिया से दूर हुए बच्चे
कोरोनाकाल में बच्चों का बाल मन किस तरह प्रभावित हुआ है. इस बीच वे किन चीजों को मिस किए और उनके आचरण में क्या कुछ परिवर्तन आया. यह जानने के लिए हमने कुछ बच्चों से भी बातचीत की. उनका कहना है कि इस बीच वे घर में बैठे-बैठे पूरी तरह से बोर हो गए थे और वो बाहर निकलने के लिए तरस रहे थे. जब वे स्कूल जाते थे तो उनका मन दोस्तों के बीच ज्यादा लगता था. वे एक दूसरे से मिलते-जुलते थे, तो उनका मन लगता था.
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बच्चों में चिड़चिड़ेपन की शिकायत
हमने मनोचिकित्सक डॉ. आशुतोष तिवारी से भी बातचीत की. उन्होंने बताया कि इस दौरान उनके बीच आने वाली शिकायतों की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि इस बीच बच्चों में होने वाले चिड़चिड़ेपन की शिकायत भी खूब आई. कई बच्चों में मोरोनिक साइलेंस जैसी शिकायत भी देखने को मिल रही है.
बच्चों के स्वभाव में दिखा परिवर्तन दिखा
मनोचिकित्सक डॉ. आशुतोष तिवारी बतातें हैं कि दोस्तों से कम मिलने की वजह से और घर में अधिक पढ़ाई की उम्मीदों ने बच्चों के स्वभाव में परिवर्तन ला दिया है. मनोचिकित्सक की मानें तो हर उम्र में आदमी अपने हम उम्र की तलाश करता है. ऐसा करके वो अपने इमोशन को भी शेयर करता है. इस वजह से भी बच्चों के स्वभाव में परिवर्तन दिखा है. उन्होंने बताया कि अब जब स्कूल जाने का सिलसिला फिर से शुरू होगा तो बच्चों का विकास चक्र फिर से चलने लगेगा.
बहरहाल जरूरत इस बात की है कि स्कूल खुलने के बाद एक बार फिर से बच्चों को स्कूली जीवन में ढालने के लिए हम सबको प्रयास करना होगा. एक सामूहिक कोशिश करनी होगी ताकि हमारे बच्चे दोबारा अपनी पुरानी डेली लाइफ के लिए अनुकूलित हो जाएं.