बिलासपुर : छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में होली से पहले छत्तीसगढ़ी मिठाइयों का बाजार सज (Chhattisgarhia Mithaiya in Bilaspur market in Holi) चुका है. होली के पहले ही लोगों में मिठाई की काफी डिमांड देखी गई. बिलासपुर के बाजार में सुबह से ही खरीदारों की भीड़ रही. छत्तीसगढ़ी मिठाई बताशा, मोठी सलोनी और अरछा लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं. साथ ही गुजिया की खुश्बू भी लोगों को खूब ललचा रही है.
होली पर मिठाई खिलाने की परंपरा
होली में लोग एक-दूसरे को रंग लगाकर बधाइयां देते हैं. मिठाइयां खिलाते हैं. पूरे देश के साथ इस पर्व को छत्तीसगढ़ में काफी उल्लास के साथ मनाया जाता है. होली में लोग घरों में भी मिठाइयां बनाते हैं. हालांकि पिछले कुछ समय से अब घरों में मिठाई बनाने में लोग कम ही दिलचस्पी दिखाते हैं. बाजार से मिठाई खरीदने में लोगों की दिलचस्पी पिछले कुछ सालों में बढ़ी है. छत्तीसगढ़ी मिठाई कहलाने वाला बताशा, गुजिया, अरछा और मीठी सलोनी इस समय लोगों को काफी भा रही है.
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परंपराओं के अनुसार छत्तीसगढ़ में अलग-अलग मिठाई का चलन
छत्तीसगढ़ की लोक परंपराओं के अनुसार होली और दिवाली में अलग-अलग तरह की मिठाइयों का चलन है. छत्तीसगढ़ की कई त्योहारों में नमकीन और मीठे पकवान त्यौहार के अनुरूप बनाए जाते हैं. जैसे तीजा में ठेठरी, खुरमी का चलन है. वैसे ही दिवाली में शक्करपारा से बने बताशे, मिश्री, इलायची दाना और खोए की मिठाई भी बनाई जाती है. इसी तरह होली में शक्करपारा से बने हार, गुड़ और फल्ली की पापड़ी और चना पापड़ी भी पसंद की जाती है. इसके अलावा लोग अपने घरों में गुजिया, अरछा, अनरसा, मीठी सलोनी, सेव और फरहा जैसे मीठे पकवान भी बनाते हैं.
मौसम के अनुरूप बनाए जाते हैं पकवान
छत्तीसगढ़ में कई मिठाइयां मौसम के हिसाब से भी बनाई जाती हैं. चावल-आटे और गेहूं आटे को मिलाकर अरछा बनाया जाता है. इसके अलावा चावल आटे से चौसेला, सुहारी अनरसा बनाई जाती है. उन्हें बनाने का मुख्य उद्देश्य यह रहता है कि यह हेवी डाइट होती है और यह पेट को ठंडा करने वाला पकवान है. इससे गर्मी के मौसम में खाने के बाद पूरा दिन भूख नहीं लगता. खेतों में काम करने वालों को काम के दौरान भूख न लगे और उसका नुकसान भी नहीं होता बल्कि यह पेट के साथ शरीर को भी ठंडा रखता है. इससे गर्मी का असर शरीर में कम होता है.
क्या कहते हैं जानकार
इस विषय में लोक परंपराओं और मिठाइयों के जानकार अजय शर्मा कहते हैं कि पहले गरीबी और उत्तम व्यवस्था नहीं होती थी. इसलिए लोग दुकानों से मिठाइयां खरीदने के बजाय शुद्ध और ताजा मिठाई घरों में ही बनाया करते थे. महिलाएं इसके लिए लंबे समय तक तैयारी करती थीं. होली पर्व के 1 दिन पहले सारी परंपरागत मिठाइयां महिलाए बनाती थीं, लेकिन अब बहुत कम ही ऐसे लोग बचे हैं जो छत्तीसगढ़ी मिठाइयों को बनाना जानते हैं. अजय शर्मा कहते हैं कि पिछले कुछ सालों से मिठाइयों को बनाने की परंपरा खत्म सी होती जा रही है. छत्तीसगढ़ी मिठाइयां विलुप्ति की कगार पर पहुंच गई हैं. इनकी जगह नए और अन्य प्रदेशों की मिठाइयों ने ले ली है. हालांकि अभी भी कुछ ऐसे लोग बचे हैं, जो इन मिठाइयों को बनाना जानते हैं और इसे खाने के शौकीन भी हैं.