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एक गलती के लिए दो बार सजा नहीं दी जा सकती: HC - सहायक लेखाधिकारी

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक मामले में दो बार सजा देने वाली याचिका पर सुनवाई की. जिसमें कोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ जारी किए गए आदेश को निरस्त कर दिया है.

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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
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Published : May 13, 2021, 5:23 PM IST

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने माना कि एक गलती के लिए दो बार सजा नहीं दी जा सकती. जस्टिस पी. सैम कोशी की सिंगल बेंच ने दो बार सजा दिए जाने वाली याचिका पर सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता के लिए जारी किए गए डिमोशन के आदेश को निरस्त कर दिया है.

चावल रवाना करने का था मामला

जानकारी के मुताबिक दंतेवाड़ा में पदस्थ रहे सहायक लेखाधिकारी आनंद कुमार एक्का के पास नागरिक आपूर्ति निगम का भी प्रभार था. जिन्होंने साल 2008 में धमतरी और महासमुंद जिले के लिए चावल रवाना किया था, लेकिन चावल नहीं पहुंचने पर उनके खिलाफ जांच के आदेश दिए गए थे. साल 2010 में जांच रिपोर्ट मिलने पर पाया गया कि याचिकाकर्ता ने चावल रवाना करने की जानकारी देरी से दी थी.

छत्तीसगढ़ HC ने आयुष यूनिवर्सिटी की बीडीएस और एमडीएस परीक्षा पर 7 जून तक लगाई रोक

याचिकाकर्ता को दूसरी बार मिली सजा

इस गलती के लिए याचिकाकर्ता को तीन महीने की वेतन वृद्धि रोकने की सजा दी गई थी. मार्च 2021 में याचिकाकर्ता का एक बार फिर पुरानी गलती के लिए डिमोशन कर दिया गया. इस आदेश को याचिकाकर्ता ने अधिवक्ता टीके झा के जरिए हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. सिंगल बेंच ने मामले की सुनवाई के बाद माना कि एक गलती के लिए दो बार सजा नहीं दी जा सकती. इसे देखते हुए हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की दूसरी सजा पर रोक लगा दी गई है.

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने माना कि एक गलती के लिए दो बार सजा नहीं दी जा सकती. जस्टिस पी. सैम कोशी की सिंगल बेंच ने दो बार सजा दिए जाने वाली याचिका पर सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता के लिए जारी किए गए डिमोशन के आदेश को निरस्त कर दिया है.

चावल रवाना करने का था मामला

जानकारी के मुताबिक दंतेवाड़ा में पदस्थ रहे सहायक लेखाधिकारी आनंद कुमार एक्का के पास नागरिक आपूर्ति निगम का भी प्रभार था. जिन्होंने साल 2008 में धमतरी और महासमुंद जिले के लिए चावल रवाना किया था, लेकिन चावल नहीं पहुंचने पर उनके खिलाफ जांच के आदेश दिए गए थे. साल 2010 में जांच रिपोर्ट मिलने पर पाया गया कि याचिकाकर्ता ने चावल रवाना करने की जानकारी देरी से दी थी.

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इस गलती के लिए याचिकाकर्ता को तीन महीने की वेतन वृद्धि रोकने की सजा दी गई थी. मार्च 2021 में याचिकाकर्ता का एक बार फिर पुरानी गलती के लिए डिमोशन कर दिया गया. इस आदेश को याचिकाकर्ता ने अधिवक्ता टीके झा के जरिए हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. सिंगल बेंच ने मामले की सुनवाई के बाद माना कि एक गलती के लिए दो बार सजा नहीं दी जा सकती. इसे देखते हुए हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की दूसरी सजा पर रोक लगा दी गई है.

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