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बिलासपुर में अरबों खर्च होने के बाद भी सीवरेज प्रोजेक्ट का बुरा हाल, लोगों ने उठाए सवाल

bad condition of bilaspur sewerage project बिलासपुर का सीवरेज परियोजना सफेद हाथी बन चुका है. लगातार इस प्रोजेक्ट में अरबो रुपये खर्च हो गए. bilaspur latest news लेकिन अब तक इस परियोजना का कोई फायदा नहीं मिला. न तो खराब पानी को साफ किया जा रहा है. न ही साफ सफाई का मकसद पूरा हो पा रहा है.People angry with sewerage project

Bad condition of sewerage project
बिलासपुर में सीवरेज प्रोजेक्ट का बुरा हाल
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Published : Nov 18, 2022, 11:48 PM IST

बिलासपुर:bilaspur latest news बिलासपुर में 14 साल से चल रही अंडर ग्राउंड सीवरेज परियोजना का काम अभी भी पूरा नहीं हुआ है. 2008 से शुरू हुई इस योजना को पूरा काने की 24 महीने की मियाद थी. 14 साल बीतने के बाद भी परियोजना अब भी अधूरा है. कई मौत और सैकड़ों को सांस की बीमारी और हजारो दुर्घटनाओं का जिम्मेदार सीवरेज परियोजना सफेद हांथी बनकर रह गया है. 4 अरब रुपए से भी ज्यादा खर्च होने के बाद अब यह परियोजना दम तोड़ती नजर आ रही है. bad condition of bilaspur sewerage project

बिलासपुर में सीवरेज प्रोजेक्ट का बुरा हाल

ये था योजना का लक्ष्य: शहर में बढ़ते मच्छरों के प्रकोप और नालियों में मल फेंकने से निजात दिलाने के लिए पूर्व नगरीय प्रशासन मंत्री अमर अग्रवाल ने अपने विधानसभा क्षेत्र बिलासपुर में अंडरग्राउंड सीवरेज परियोजना की शुरुआत की थी. इसमें घरों के सेप्टिक टैंक की पाइप लाइन को जोड़ना था. जिसे एक स्थान पर पम्पिंग स्टेशन में ले जाकर पानी को साफ कर दोबारा इस्तेमाल करने के लायक बनाना था. सीवरेज परियोजना में नालियों में मल नहीं जाने की वजह से मच्छरों का खात्मा भी हो जाता और पानी व्यर्थ होने की बजाए इस्तेमाल में लाया जा सकता था.

कब हुई शुरुआत और कितना होना था खर्च: सीवरेज परियोजना की शुरुआत पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने 2008 में की थी. शुरुआती दौर पर परियोजना में 180 करोड़ की लागत से 24 महीने में तैयार करना था. लगभग 4 सौ करोड रुपए से ज्यादा अब तक खर्च हो चुके हैं. 14 सालों में यह परियोजना पूरा नहीं हो पाई है. अभी इसके 20% से भी ज्यादा काम बाकी है. परियोजना में सड़कों पर 30 फीट गड्ढे कर पाइपलाइन डाला गया था. घरों से उसे कनेक्शन करने थे. लेकिन कार्य पूरा नहीं होने की वजह से पूरी परियोजना ठंडे बस्ते में चला गया है.



किसको मिला टेंडर और अब क्या है स्थिति: सीवरेज परियोजना भाजपा शासनकाल में शुरू किया गया था. इसके लिए कोलकाता की कंपनी सिंपलेक्स इंफ्रास्ट्रक्चर को टेंडर मिला और वर्क आर्डर जारी हुआ. कंपनी एक साथ शहर के कई मुख्य मार्गों पर खुदाई का काम शुरू कर दी थी और लेवल मिलाने के लिए कहीं 20 फीट तो कहीं 30 फीट गहराई तक गड्ढा खोदकर 1 फीट चौड़े पाइप डाले थे. लगातार यह काम चलता रहा. लेकिन बाद में कंपनी को घाटा होने लगा. लंबे समय तक काम चलने और लोकल स्तर पर छोटे-छोटे खर्चों की वजह से कंपनी काम छोड़ कर भाग गई थी. बाद में राज्य शासन ने उसे दोबारा लेकर आया. कंपनी ने कुछ काम तो किया लेकिन लगभग 3 बार कंपनी काम छोड़ कर भाग चुकी है. अभी स्थिति यह है कि ना तो पूर्वर्ती सरकार के जिम्मेदार मंत्री रहे नेता इस काम की सुध ले रहे हैं और ना ही वर्तमान सरकार इसे पूरा करने में दिलचस्पी दिखा रही है. सीवरेज के लिए किए गए काम धरे के धरे रह गए. करोड़ों रुपए खर्च कर पंपिंग स्टेशन भी तैयार किया गया था, लेकिन काम अब भी अधूरा ही है.



नगर को बनाया गया था निर्माण एजेंसी: शहर में शुरू हुए सीवरेज परियोजना का निर्माण एजेंसी नगर निगम को बनाया गया था. नगर निगम इसमें लगातार मॉनिटरिंग तो कर रही थी लेकिन काम की गुणवत्ता और समय सीमा का अधिकारियों ने ध्यान नहीं दिया. अधिकारियों ने पूरी परियोजना को तैयार करने सिंपलेक्स कंपनी के अधिकारियों के जिम्मे में डाल दिया और मॉनिटरिंग करना भी छोड़ दिया था. यही कारण है कि यह योजना अब फेल हो गई है, और इसका अस्तित्व ही जमीन के अंदर दब कर रह गया है.


सिंपलेक्स कंपनी द्वारा शहर में किए गए सीवरेज के काम में 4 अरब से भी ज्यादा रुपए खर्च हो गए हैं. इस बात को लेकर शहरवासी और नेताओं में काफी आक्रोश है. शहरवासियों का कहना है कि शहर के अंदर सिंपलेक्स कंपनी के द्वारा किए गए सीवरेज के कार्य में घोर लापरवाही बरती गई. ना तो लेवल मिलाया गया और ना ही पाइपलाइन सही ढंग से मिठाई गई. यदि सीवरेज परियोजना शुरू भी हो जाएगी तो सक्सेस नहीं होगी. इसके अलावा लोगों का यह भी कहना है कि जमीन के अंदर साढ़े 4 सौ करोड़ रुपए से भी ज्यादा पैसे से काम कराया गया, यदि इतने पैसे से शहर के विकास और सौंदर्यीकरण कराए जाते तो शहर की स्थिति काफी बेहतर होती और मेट्रो सिटी की तर्ज पर शहर का विकास होता, लेकिन पूर्वर्ती सरकार के जिम्मेदार मंत्री और अफसर इस काम को भ्रष्टाचार करने के लिए शुरू किए थे. नेता और आम जनता सीवरेज परियोजना को लेकर काफी आक्रोश में तो है, लेकिन इसके लिए वो कुछ कर नहीं सकते.

बिलासपुर:bilaspur latest news बिलासपुर में 14 साल से चल रही अंडर ग्राउंड सीवरेज परियोजना का काम अभी भी पूरा नहीं हुआ है. 2008 से शुरू हुई इस योजना को पूरा काने की 24 महीने की मियाद थी. 14 साल बीतने के बाद भी परियोजना अब भी अधूरा है. कई मौत और सैकड़ों को सांस की बीमारी और हजारो दुर्घटनाओं का जिम्मेदार सीवरेज परियोजना सफेद हांथी बनकर रह गया है. 4 अरब रुपए से भी ज्यादा खर्च होने के बाद अब यह परियोजना दम तोड़ती नजर आ रही है. bad condition of bilaspur sewerage project

बिलासपुर में सीवरेज प्रोजेक्ट का बुरा हाल

ये था योजना का लक्ष्य: शहर में बढ़ते मच्छरों के प्रकोप और नालियों में मल फेंकने से निजात दिलाने के लिए पूर्व नगरीय प्रशासन मंत्री अमर अग्रवाल ने अपने विधानसभा क्षेत्र बिलासपुर में अंडरग्राउंड सीवरेज परियोजना की शुरुआत की थी. इसमें घरों के सेप्टिक टैंक की पाइप लाइन को जोड़ना था. जिसे एक स्थान पर पम्पिंग स्टेशन में ले जाकर पानी को साफ कर दोबारा इस्तेमाल करने के लायक बनाना था. सीवरेज परियोजना में नालियों में मल नहीं जाने की वजह से मच्छरों का खात्मा भी हो जाता और पानी व्यर्थ होने की बजाए इस्तेमाल में लाया जा सकता था.

कब हुई शुरुआत और कितना होना था खर्च: सीवरेज परियोजना की शुरुआत पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने 2008 में की थी. शुरुआती दौर पर परियोजना में 180 करोड़ की लागत से 24 महीने में तैयार करना था. लगभग 4 सौ करोड रुपए से ज्यादा अब तक खर्च हो चुके हैं. 14 सालों में यह परियोजना पूरा नहीं हो पाई है. अभी इसके 20% से भी ज्यादा काम बाकी है. परियोजना में सड़कों पर 30 फीट गड्ढे कर पाइपलाइन डाला गया था. घरों से उसे कनेक्शन करने थे. लेकिन कार्य पूरा नहीं होने की वजह से पूरी परियोजना ठंडे बस्ते में चला गया है.



किसको मिला टेंडर और अब क्या है स्थिति: सीवरेज परियोजना भाजपा शासनकाल में शुरू किया गया था. इसके लिए कोलकाता की कंपनी सिंपलेक्स इंफ्रास्ट्रक्चर को टेंडर मिला और वर्क आर्डर जारी हुआ. कंपनी एक साथ शहर के कई मुख्य मार्गों पर खुदाई का काम शुरू कर दी थी और लेवल मिलाने के लिए कहीं 20 फीट तो कहीं 30 फीट गहराई तक गड्ढा खोदकर 1 फीट चौड़े पाइप डाले थे. लगातार यह काम चलता रहा. लेकिन बाद में कंपनी को घाटा होने लगा. लंबे समय तक काम चलने और लोकल स्तर पर छोटे-छोटे खर्चों की वजह से कंपनी काम छोड़ कर भाग गई थी. बाद में राज्य शासन ने उसे दोबारा लेकर आया. कंपनी ने कुछ काम तो किया लेकिन लगभग 3 बार कंपनी काम छोड़ कर भाग चुकी है. अभी स्थिति यह है कि ना तो पूर्वर्ती सरकार के जिम्मेदार मंत्री रहे नेता इस काम की सुध ले रहे हैं और ना ही वर्तमान सरकार इसे पूरा करने में दिलचस्पी दिखा रही है. सीवरेज के लिए किए गए काम धरे के धरे रह गए. करोड़ों रुपए खर्च कर पंपिंग स्टेशन भी तैयार किया गया था, लेकिन काम अब भी अधूरा ही है.



नगर को बनाया गया था निर्माण एजेंसी: शहर में शुरू हुए सीवरेज परियोजना का निर्माण एजेंसी नगर निगम को बनाया गया था. नगर निगम इसमें लगातार मॉनिटरिंग तो कर रही थी लेकिन काम की गुणवत्ता और समय सीमा का अधिकारियों ने ध्यान नहीं दिया. अधिकारियों ने पूरी परियोजना को तैयार करने सिंपलेक्स कंपनी के अधिकारियों के जिम्मे में डाल दिया और मॉनिटरिंग करना भी छोड़ दिया था. यही कारण है कि यह योजना अब फेल हो गई है, और इसका अस्तित्व ही जमीन के अंदर दब कर रह गया है.


सिंपलेक्स कंपनी द्वारा शहर में किए गए सीवरेज के काम में 4 अरब से भी ज्यादा रुपए खर्च हो गए हैं. इस बात को लेकर शहरवासी और नेताओं में काफी आक्रोश है. शहरवासियों का कहना है कि शहर के अंदर सिंपलेक्स कंपनी के द्वारा किए गए सीवरेज के कार्य में घोर लापरवाही बरती गई. ना तो लेवल मिलाया गया और ना ही पाइपलाइन सही ढंग से मिठाई गई. यदि सीवरेज परियोजना शुरू भी हो जाएगी तो सक्सेस नहीं होगी. इसके अलावा लोगों का यह भी कहना है कि जमीन के अंदर साढ़े 4 सौ करोड़ रुपए से भी ज्यादा पैसे से काम कराया गया, यदि इतने पैसे से शहर के विकास और सौंदर्यीकरण कराए जाते तो शहर की स्थिति काफी बेहतर होती और मेट्रो सिटी की तर्ज पर शहर का विकास होता, लेकिन पूर्वर्ती सरकार के जिम्मेदार मंत्री और अफसर इस काम को भ्रष्टाचार करने के लिए शुरू किए थे. नेता और आम जनता सीवरेज परियोजना को लेकर काफी आक्रोश में तो है, लेकिन इसके लिए वो कुछ कर नहीं सकते.

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