बेमेतरा : छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले के धनगांव गांव के कुम्हार (Potters of Bemetara Dhangaon) वर्षों से अपने पूर्वजों की विरासत को संजोकर मिट्टी के बर्तन, खिलौने और मूर्तियां बनाने के काम कर रहे हैं. गांव में 50 से अधिक कुम्हारों के जीविका का साधन सिर्फ मिट्टी की कारीगरी करना ही (condition of the potters in Bemetaras dhangaon) है. लेकिन आधुनिकता की आंधी ने किसानों की इस कला को चौपट करना शुरु कर दिया है.चाक चलाने वाले हाथ अब मशीनों से तेज नहीं चलते लिहाजा कुम्हारों का परिवार अब आर्थिक तंगी से जूझ रहा है.
मिट्टी की जगह स्टील ने जमाया कब्जा : एक समय था जब कुम्हारों के हाथ चाक चलाते नहीं रुकते थे.लेकिन वक्त बदला लोगों ने अपनी निर्भरता प्लास्टिक डिस्पोजल और स्टील के बर्तनों के तरफ कर ली.जिसका बड़ा असर कुम्हारों पर पड़ा.अब के समय में सिर्फ दीवाली या गर्मियों के सीजन में ही इनके बनाए उत्पादों की पूछ परख होती है.बाकी पूरा साल किसी त्यौहार के इंतजार में चला जाता (Wages are not coming out of clay workmanship )है.
बर्तन और मूर्ति से मजदूरी निकालना मुश्किल : इन दिनों गणेश की मूर्तियां बना रहे कुम्हारों ने बताया कि ''50 वर्षों से उनका परिवार मिट्टी के बर्तन और मूर्तियां बना रहा है. आज भी उनकी यह परंपरा जारी है. हर साल गणेश और दुर्गा की मूर्तियां बनाते हैं. इस वर्ष गणेश की मूर्तियां बना रहे हैं. लेकिन बढ़ती महंगाई के कारण उन्हें उनकी मेहनताना का उचित दाम नहीं मिलता है. जिससे उनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ते जा रही हैं.''
रंग और पेंट के दाम बढ़े लेकिन कमाई हुई कम : कुम्हारों ने बताया कि ''बढ़ती महंगाई के कारण रंग पेंट एवं अन्य कलाकृति की सामग्रियों के दाम बढ़ गए हैं. जिससे जिससे उन्हें उनकी सामग्रियों के उचित दाम नहीं मिल पा रहे हैं. एक तरफ उनका परिवार जहां संकट से गुजर रहा है वहीं सदियों पुरानी इस कला को बचाने के लिए सरकार के पास कोई भी कारगार योजना नहीं है. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा बीच-बीच में मिट्टी के पात्रों के भेजने के लिए नियम बनाए जाते हैं. लेकिन कुछ ही दिनों में सब नियम बंद हो जाते (condition of the potters in Bemetaras dhangaon is pathetic) हैं.''