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गोंचा पर्व में तुपकी का है विशेष महत्व, भगवान को दी जाती है सलामी

बस्तर में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा शुरू होने से पहले तुपकी चलाई जाती है, इससे गोली चलने जैसी आवाज आती है, जिसे भगवान को सलामी देने के रूप में देखा जाता है.

गोंचा पर्व में तुपकी का है विशेष महत्व
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Published : Jul 4, 2019, 7:04 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST

जगदलपुर: बस्तर में अपने खास अंदाज में मनाए जाने वाले गोंचा पर्व में रथ यात्रा के साथ बांस से बनी तुपकी 'बंदूक' की आवाज यात्रा के आंनद को दोगुना कर देती है. पूरे भारत मे तुपकी चलाने की पंरपरा जगदलपुर के अलावा और कहीं देखने को नहीं मिलती. भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र के रथारूढ़ होने पर तुपकी बांस से बनी बंदूक से सलामी गार्ड ऑफ ऑनर दी जाती है.

गोंचा पर्व में तुपकी का है विशेष महत्व, भगवान को दी जाती है सलामी

बस्तर के ग्रामीण पोले बांस की नली से तुपकी तैयार करते हैं, जिसमें एक जंगली मालकांगिनी के फल को बांस की नली में डालकर फायर किया जाता है, जिससे गोली चलने की आवाज आती है. तुपकी शब्द मूलत: तुपक से बना है जो तोप का ही अपभ्रंस माना जाता है.

600 साल से मनाया जा रहा गोंचा पर्व
लोगों का कहना है कि, 'बस्तर मे गोंचा पर्व के दौरान तुपकी का चलन वर्षों से चला आ रहा है, जो केवल बस्तर में ही देखने को मिलता है'. बस्तर में 600 वर्षों से मनाए जाने वाले गोंचा पर्व में तुपकी खास आर्कषण का केंद्र होती है, यही वजह है कि ग्रामीण इन तुपकियों को रंग-बिरंगी पन्नियों से सजाकर इसे और भी आकर्षक बनाते है.

तुपकी से दी जाती है भगवान को सलामी
गोंचा पर्व के दौरान बस्तर के अंचलों से पंहुचे ग्रामीणों को पर्व के दौरान तुपकी बेचकर एक अच्छी आय भी होती है. तुपकी चालन को भले ही आदिवासी अपने लिए एक खेल सा मानते हो, लेकिन पर्व के विधान से जुड़े लोगों का मानना है कि, 'भगवान जगन्नाथ की यात्रा के दौरान उन्हें दिए जाने वाले सम्मान में इसे सलामी की तरह देखा जाता है'.

जगदलपुर: बस्तर में अपने खास अंदाज में मनाए जाने वाले गोंचा पर्व में रथ यात्रा के साथ बांस से बनी तुपकी 'बंदूक' की आवाज यात्रा के आंनद को दोगुना कर देती है. पूरे भारत मे तुपकी चलाने की पंरपरा जगदलपुर के अलावा और कहीं देखने को नहीं मिलती. भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र के रथारूढ़ होने पर तुपकी बांस से बनी बंदूक से सलामी गार्ड ऑफ ऑनर दी जाती है.

गोंचा पर्व में तुपकी का है विशेष महत्व, भगवान को दी जाती है सलामी

बस्तर के ग्रामीण पोले बांस की नली से तुपकी तैयार करते हैं, जिसमें एक जंगली मालकांगिनी के फल को बांस की नली में डालकर फायर किया जाता है, जिससे गोली चलने की आवाज आती है. तुपकी शब्द मूलत: तुपक से बना है जो तोप का ही अपभ्रंस माना जाता है.

600 साल से मनाया जा रहा गोंचा पर्व
लोगों का कहना है कि, 'बस्तर मे गोंचा पर्व के दौरान तुपकी का चलन वर्षों से चला आ रहा है, जो केवल बस्तर में ही देखने को मिलता है'. बस्तर में 600 वर्षों से मनाए जाने वाले गोंचा पर्व में तुपकी खास आर्कषण का केंद्र होती है, यही वजह है कि ग्रामीण इन तुपकियों को रंग-बिरंगी पन्नियों से सजाकर इसे और भी आकर्षक बनाते है.

तुपकी से दी जाती है भगवान को सलामी
गोंचा पर्व के दौरान बस्तर के अंचलों से पंहुचे ग्रामीणों को पर्व के दौरान तुपकी बेचकर एक अच्छी आय भी होती है. तुपकी चालन को भले ही आदिवासी अपने लिए एक खेल सा मानते हो, लेकिन पर्व के विधान से जुड़े लोगों का मानना है कि, 'भगवान जगन्नाथ की यात्रा के दौरान उन्हें दिए जाने वाले सम्मान में इसे सलामी की तरह देखा जाता है'.

Intro:जगदलपुर। छत्तीसगढ के बस्तर मे अपने खास अंदाज मे मनाए जाने वाली गोंचा पर्व मे रथयात्रा के साथ बांस से बनी तुपकी .बंदूक. की आवाज यात्रा के आंनद को दोगुना कर देती है। पूरे भारत मे तुपकी चालन की पंरपरा जगदलपुर के अलावा और कहीं नही दिखती। भगवान जगन्नाथ , देवी सुभद्रा और बलभद्र के रथारूढ होने पर तुपकी बांस से बनी बंदूक से सलामी गॉड ऑफ ऑनर देने की पंरपरा केवल बस्तर मे है।   ,   


Body:गोंचा पर्व तीन विशालकाय रथ की परिक्रमा जगदलपुर मे भगवान जगन्नाथ को रथ मे विराजने के साथ होती है,पंरपरानुसार बांस से बनी तुपकी से सलामी दी जाती है, बस्तर के ग्रामीण पोले बांस की नली से तुपकी तैयार करते है, प्रयुक्त पेंग को एक जंगली मालकांगिनी के फल को बांस की नली मे डालकर फायर किया जाता है, जिससे गोलियो तरह आवाज निकलती है


Conclusion:लोगो का कहना है कि बस्तर मे गोंचा पर्व के दौरान तुपकी का चलन वर्षो से चला आ रहा है, जो केवल बस्तर मे ही देखने को मिलता है।  बस्तर मे 600 वर्षो से मनाये जाने वाले गोंचा पर्व मे तुपकी खास आर्कषण का केन्द्र होता है, यही वजह है कि ग्रामीण इन तुपकियों मे रंगबिरंगी पन्नी सजाकर इसे औऱ भी आर्कषित बनाते है। गोंचा पर्व के दौरान बस्तर के अंचलो से पंहुचे ग्रामीणो के लिए पर्व के दौरान तुपकी बेचकर एक अच्छी आय भी होती है।    तुपकी चालन को भले ही आदिवासी अपने लिए एक खेल सा मानते हो, पर पर्व के विधान से जुडे लोगो का मानना है कि भगवान जगन्नाथ की यात्रा के दौरान उन्हे दिये जाने वाले सम्मान मे एक तरह की यह सलामी कही जाती है, तुपकी शब्द मुलत तुपक से बना है जो तोप का ही अपभ्रंस माना जाता है, और बस्तरवासी हर वर्ष गोंचा पर्व के दौरान तुपकी का जमकर लुत्फ उठाते है। बाईट1- गजेंद्र पाणिग्राही, पूर्व अध्यक्ष बाईट-दशरू राम, तुपकी विक्रेता बाईट3- हेमंत कश्यप, विशेष जानकर क्लोज़िंग पीटीसी ----अशोक नायडू जगदलपुर
Last Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST
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