जगदलपुर: बस्तर में अपने खास अंदाज में मनाए जाने वाले गोंचा पर्व में रथ यात्रा के साथ बांस से बनी तुपकी 'बंदूक' की आवाज यात्रा के आंनद को दोगुना कर देती है. पूरे भारत मे तुपकी चलाने की पंरपरा जगदलपुर के अलावा और कहीं देखने को नहीं मिलती. भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र के रथारूढ़ होने पर तुपकी बांस से बनी बंदूक से सलामी गार्ड ऑफ ऑनर दी जाती है.
बस्तर के ग्रामीण पोले बांस की नली से तुपकी तैयार करते हैं, जिसमें एक जंगली मालकांगिनी के फल को बांस की नली में डालकर फायर किया जाता है, जिससे गोली चलने की आवाज आती है. तुपकी शब्द मूलत: तुपक से बना है जो तोप का ही अपभ्रंस माना जाता है.
600 साल से मनाया जा रहा गोंचा पर्व
लोगों का कहना है कि, 'बस्तर मे गोंचा पर्व के दौरान तुपकी का चलन वर्षों से चला आ रहा है, जो केवल बस्तर में ही देखने को मिलता है'. बस्तर में 600 वर्षों से मनाए जाने वाले गोंचा पर्व में तुपकी खास आर्कषण का केंद्र होती है, यही वजह है कि ग्रामीण इन तुपकियों को रंग-बिरंगी पन्नियों से सजाकर इसे और भी आकर्षक बनाते है.
तुपकी से दी जाती है भगवान को सलामी
गोंचा पर्व के दौरान बस्तर के अंचलों से पंहुचे ग्रामीणों को पर्व के दौरान तुपकी बेचकर एक अच्छी आय भी होती है. तुपकी चालन को भले ही आदिवासी अपने लिए एक खेल सा मानते हो, लेकिन पर्व के विधान से जुड़े लोगों का मानना है कि, 'भगवान जगन्नाथ की यात्रा के दौरान उन्हें दिए जाने वाले सम्मान में इसे सलामी की तरह देखा जाता है'.