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बलौदाबाजार: मांग बढ़ने के बाद भी क्यों परेशान हैं 'देसी फ्रिज' के विक्रेता - जूस

गर्मी के बढ़ते ही देसी फ्रीज कहे जाने वाले मटके की मांग तो बढ़ी, लेकिन इसे बनाने और बेचने वालों को इसका सही दाम नहीं मिल रहा है.

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Published : May 24, 2019, 7:53 PM IST

Updated : May 24, 2019, 9:08 PM IST

बलौदाबाजार: गर्मी और तपिश बढ़ने के साथ ही इलाके में देसी फ्रीज के नाम से मशहूर मटके की बिक्री में अच्छी खासी तेजी देखी जा रही है. शहर के साप्ताहिक बाजार में मटकों की बंपर बिक्री हो रही है.

कुम्हारों को नहीं मिल रहा मटकों का सही दाम


जगह-जगह पर बिक रहे मटके
मटके का पानी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है. घड़े का पानी शरीर को शीतलता देता है. आलम यह है कि शहर में कई जगह आपको मटके बिकते मिल जाएंगे.


दूर-दूर तक है मटकों की मांग
यहां के कुम्हारों की ओर से बनाए गए मटकों की मांग दूर-दूर तक रहती है. कुम्हारों का कहना है कि 'मटकी लेने के लिए आसपास से लोग उनके पास भारी मात्रा में आते जरूर हैं लेकिन उन्हें अपनी मेहनत का सही दाम नहीं मिलता है.


तीन महीने पहले से शुरू कर देते हैं काम
गाताडीह के रहने वाले कुम्हार धरमलाल का कहना है कि 'गर्मी का मौसम आने से तीन महीने पहले ही मटकी बनाने का काम शुरू कर देते हैं. मटकी बनाने से लेकर उसे बाजार में पहुंचाने तक जो मेहनत लगती है उसकी तुलना में इसे बेचने पर जो कीमत मिलती है वो बेहद कम है'.


समय और मेहनत दोनों लगती है
कुम्हारों का कहना है कि 'मिट्टी चालना, उसका गिलाव बनाना, चाक में मिट्टी को मटके का आकार देने से लेकर उसे पकाने में काफी समय और मेहनत लगती है. मटका तैयार होने के बाद उसे कंधे पर या टोकरी के ऊपर रखकर बाजार में लाना पड़ता है, क्योंकि वाहन से लाने पर इसके टूटने का खतरा बना रहता है'.


इस दाम में बिक रहे मटके
बता दें कि इस साल मटकों की कीमत में थोड़ा इजाफा हुआ है. छोटे आकर के मटके 30 से 40 रूपए और बड़े मटके 50 से 60 रूपये में बिक रहा है. सुराही की कीमत इससे भी ज्यादा है, एक सुराही की कीमत 70-90 रूपये में बिक रही है.


गर्मी में इसका सहारा
सूरज ने प्रचंड रूप दिखाना शुरू कर दिया है. दिन की धूप अब लोगों को बर्शाश्त नहीं हो रही है. दिन में घर से बाहर निकलते ही गर्मी और पसीने से लोग परेशान हो रहे है. वहीं घर में बिना कुलर और पंखा से काम नहीं चल रहा है. घर से बाहर निकलने पर गला सूखने या प्यास लगने पर लोग गन्ने या कोल्डड्रिंक का सहारा ले रहे हैं. शहर में कई जगह पर गन्ना के जूस की अस्थाई दुकानें भी लग गई है. गर्मी में शीतल पेय पदार्थो की मांग कई गुना बढ़ जाती है.

बलौदाबाजार: गर्मी और तपिश बढ़ने के साथ ही इलाके में देसी फ्रीज के नाम से मशहूर मटके की बिक्री में अच्छी खासी तेजी देखी जा रही है. शहर के साप्ताहिक बाजार में मटकों की बंपर बिक्री हो रही है.

कुम्हारों को नहीं मिल रहा मटकों का सही दाम


जगह-जगह पर बिक रहे मटके
मटके का पानी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है. घड़े का पानी शरीर को शीतलता देता है. आलम यह है कि शहर में कई जगह आपको मटके बिकते मिल जाएंगे.


दूर-दूर तक है मटकों की मांग
यहां के कुम्हारों की ओर से बनाए गए मटकों की मांग दूर-दूर तक रहती है. कुम्हारों का कहना है कि 'मटकी लेने के लिए आसपास से लोग उनके पास भारी मात्रा में आते जरूर हैं लेकिन उन्हें अपनी मेहनत का सही दाम नहीं मिलता है.


तीन महीने पहले से शुरू कर देते हैं काम
गाताडीह के रहने वाले कुम्हार धरमलाल का कहना है कि 'गर्मी का मौसम आने से तीन महीने पहले ही मटकी बनाने का काम शुरू कर देते हैं. मटकी बनाने से लेकर उसे बाजार में पहुंचाने तक जो मेहनत लगती है उसकी तुलना में इसे बेचने पर जो कीमत मिलती है वो बेहद कम है'.


समय और मेहनत दोनों लगती है
कुम्हारों का कहना है कि 'मिट्टी चालना, उसका गिलाव बनाना, चाक में मिट्टी को मटके का आकार देने से लेकर उसे पकाने में काफी समय और मेहनत लगती है. मटका तैयार होने के बाद उसे कंधे पर या टोकरी के ऊपर रखकर बाजार में लाना पड़ता है, क्योंकि वाहन से लाने पर इसके टूटने का खतरा बना रहता है'.


इस दाम में बिक रहे मटके
बता दें कि इस साल मटकों की कीमत में थोड़ा इजाफा हुआ है. छोटे आकर के मटके 30 से 40 रूपए और बड़े मटके 50 से 60 रूपये में बिक रहा है. सुराही की कीमत इससे भी ज्यादा है, एक सुराही की कीमत 70-90 रूपये में बिक रही है.


गर्मी में इसका सहारा
सूरज ने प्रचंड रूप दिखाना शुरू कर दिया है. दिन की धूप अब लोगों को बर्शाश्त नहीं हो रही है. दिन में घर से बाहर निकलते ही गर्मी और पसीने से लोग परेशान हो रहे है. वहीं घर में बिना कुलर और पंखा से काम नहीं चल रहा है. घर से बाहर निकलने पर गला सूखने या प्यास लगने पर लोग गन्ने या कोल्डड्रिंक का सहारा ले रहे हैं. शहर में कई जगह पर गन्ना के जूस की अस्थाई दुकानें भी लग गई है. गर्मी में शीतल पेय पदार्थो की मांग कई गुना बढ़ जाती है.

Intro:लोकेशन - बिलाईगढ़

स्लग :- देशी फ्रिज के मांग बढ़ने के बाद भी मेहनत के हिसाब से नहीं मिल पा रहा है कुम्हारों को दाम.

एंकर - इन दिनों गर्मी का तपिश बढने के साथ ही यंहा देशी फ्रीज के नाम से मशहुर घड़े का बिक्री जोर-शोर से शुरू हो गया है। नगर के साप्ताहिक बाजार में तेज गर्मी पडऩे की वजह से देशी फीज की मांग बढ़ गई है। भीषण गर्मी में मांग बढऩे के कारण बाजार में मटकियो की बिक्री में तेजी आ गई है। मटके का पानी सेहत के लिए लाभदायक माना जाता है। मटके का पानी शरीर को शीतलता प्रदान करता है। ऐसे में गर्मी में देशी फ्रीज मटकी विक्रेता मटकी को बाजार में लाना शुरू कर दिया है।


वीओ :- स्थानीय कुम्हारों द्वारा बनाई गई मटकियों की मांग दूर-दूर तक रहती है। कुम्हारों का कहना है कि मटकी को लेने के लिए आसपास स्थानीय कुम्हार मटकी खरीदने पहुंचते है। लेकिन उनको मटके की मेहनत के हिसाब से कमाई नही मिलता है.


वीओ 02 :- मटकी की लागत मूल्य के हिसाब से नहीं मिलती है कीमत ।

गौरतलब हो कि फ्रीज के पानी की तुलना में मटके का पानी ज्यादा सेहतमंद होता है। यह हमें बाजार में कम कीमतों पर उलब्ध हो जाता है। ग्राम गाताडीह निवासी कुम्हार धरमलाल का कहना है कि गर्मी लगने के तीन माह पहले से ही मटकी बनाने का काम शुरू कर देते है। मटकी बनाने से लेकर उसे बाजार में पहुंचाने तक जो मेहनत लगती है उसकी तुलना में कीमत महंगाई के इस दौर में कुछ भी नहीं है। मिट्टी चालना, उसका गिलाव बनाना, चाक में मिट्टी को मटके का आकार देना, उसे पकाना आदि कार्यो में काफी समय व मेहनत लगता है। मटका तैयार होने के बाद उसे कंधे पर या टोकरी के ऊपर रखकर बाजार में लाना पड़ता है क्योंकि वाहन से लाने पर फूटने का खरा रहता है।


इस वर्ष मटकों की कीमत में थोड़ी से वृद्धि हुई है। छोटे आकर के मटके 30-40 रूपये में तथा उससे थोड़ा मटका को 50-60 रूपये में बिक रहा है। सुराही की कीमत इससे भी ज्यादा है एक सुराही की कीमत 70-90 रूपये में बिक रहा है।


वीओ 03 :- गर्मी का पारा चढ़ा 44 के पार

सूरज ने प्रचंड रूप दिखाना शुरू कर दिया है। दिन की धूप अब लोगों को बर्शाश्त नहीं हो रही है। दिन में घर से बाहर निकलते जलन व पसीने से लोग परेशान हो रहे है। वही घर में बिना कुलर, व पंखा से काम नहीं चल रहा है। घर से बाहर निकलने पर गला सूखने या प्यास लगने पर लोग गन्ने या कोल्ड्रींग का सहारा ले रहे है। नगर के कई स्थानों पर गन्ने जूस की अस्थाई दुकानें भी लग गई है। गर्मी में शीतल पेय पदार्थो की मांग कई गुना बढ़ जाती है।

बाईट - धरमलाल - कुम्हारBody:लोकेशन - बिलाईगढ़

स्लग :- देशी फ्रिज के मांग बढ़ने के बाद भी मेहनत के हिसाब से नहीं मिल पा रहा है कुम्हारों को दाम.

एंकर - इन दिनों गर्मी का तपिश बढने के साथ ही यंहा देशी फ्रीज के नाम से मशहुर घड़े का बिक्री जोर-शोर से शुरू हो गया है। नगर के साप्ताहिक बाजार में तेज गर्मी पडऩे की वजह से देशी फीज की मांग बढ़ गई है। भीषण गर्मी में मांग बढऩे के कारण बाजार में मटकियो की बिक्री में तेजी आ गई है। मटके का पानी सेहत के लिए लाभदायक माना जाता है। मटके का पानी शरीर को शीतलता प्रदान करता है। ऐसे में गर्मी में देशी फ्रीज मटकी विक्रेता मटकी को बाजार में लाना शुरू कर दिया है।


वीओ :- स्थानीय कुम्हारों द्वारा बनाई गई मटकियों की मांग दूर-दूर तक रहती है। कुम्हारों का कहना है कि मटकी को लेने के लिए आसपास स्थानीय कुम्हार मटकी खरीदने पहुंचते है। लेकिन उनको मटके की मेहनत के हिसाब से कमाई नही मिलता है.


वीओ 02 :- मटकी की लागत मूल्य के हिसाब से नहीं मिलती है कीमत ।

गौरतलब हो कि फ्रीज के पानी की तुलना में मटके का पानी ज्यादा सेहतमंद होता है। यह हमें बाजार में कम कीमतों पर उलब्ध हो जाता है। ग्राम गाताडीह निवासी कुम्हार धरमलाल का कहना है कि गर्मी लगने के तीन माह पहले से ही मटकी बनाने का काम शुरू कर देते है। मटकी बनाने से लेकर उसे बाजार में पहुंचाने तक जो मेहनत लगती है उसकी तुलना में कीमत महंगाई के इस दौर में कुछ भी नहीं है। मिट्टी चालना, उसका गिलाव बनाना, चाक में मिट्टी को मटके का आकार देना, उसे पकाना आदि कार्यो में काफी समय व मेहनत लगता है। मटका तैयार होने के बाद उसे कंधे पर या टोकरी के ऊपर रखकर बाजार में लाना पड़ता है क्योंकि वाहन से लाने पर फूटने का खरा रहता है।


इस वर्ष मटकों की कीमत में थोड़ी से वृद्धि हुई है। छोटे आकर के मटके 30-40 रूपये में तथा उससे थोड़ा मटका को 50-60 रूपये में बिक रहा है। सुराही की कीमत इससे भी ज्यादा है एक सुराही की कीमत 70-90 रूपये में बिक रहा है।


वीओ 03 :- गर्मी का पारा चढ़ा 44 के पार

सूरज ने प्रचंड रूप दिखाना शुरू कर दिया है। दिन की धूप अब लोगों को बर्शाश्त नहीं हो रही है। दिन में घर से बाहर निकलते जलन व पसीने से लोग परेशान हो रहे है। वही घर में बिना कुलर, व पंखा से काम नहीं चल रहा है। घर से बाहर निकलने पर गला सूखने या प्यास लगने पर लोग गन्ने या कोल्ड्रींग का सहारा ले रहे है। नगर के कई स्थानों पर गन्ने जूस की अस्थाई दुकानें भी लग गई है। गर्मी में शीतल पेय पदार्थो की मांग कई गुना बढ़ जाती है।

बाईट - धरमलाल - कुम्हारConclusion:
Last Updated : May 24, 2019, 9:08 PM IST
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