बालोद: छत्तीसगढ़ मे हरतालिका तीज का विशेष महत्व है. राज्य में इसे तीजा कहा जाता है. इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. इस बार 21 अगस्त को महिलाएं तीज का व्रत रखेंगी. कोरोना काल ने सभी त्योहारों का रंग फीका कर दिया. वहीं इस बार महिलाएं तीजा मनाने अपने मायके नहीं जा पाईं. तीजा के एक दिन पहले 'करू भात' खाने की खास परंपरा है.
छत्तीसगढ़ी बोली में कड़वा मतलब 'करू' होता है और पके हुए चावल को 'भात' कहा जाता है. तीजा पर्व के एक दिन पहले करेले का विशेष महत्व है. तीज के दिन व्रत रखने वाली महिलाएं एक दिन पहले करेले की सब्जी और चावल खाती हैं. जिसके बाद कुछ भी नहीं खाती हैं. इस दिन छत्तीसगढ़ के हर घर में करेले की सब्जी खासतौर पर बनाई जाती है.
100 रुपए प्रति किलो बिक रहा करेला
बाजारों में इस दिन करेले की सर्वाधिक मांग होती है. यही वजह है कि करेले का भाव भी बढ़ जाता है. बालोद में करेला 100 रुपए प्रति किलो की दर से बेचा जा रहा है. महंगा होने के बावजूद लोग इसे खरीद रहे हैं, क्योंकि करू-भात के रिवाज के बिना व्रत अधूरा माना जाता है.
करू भात रिवाज के पीछे की मान्यता
महिलाएं बताती हैं कि तीज व्रत के एक दिन पहले करेला इसलिए खाया जाता है, क्योंकि करेला खाने से कम प्यास लगती है. हरतालिका तीज का उपवास महिलाएं निर्जल होकर करती है. इस दिन करेला खाने का दूसरा कारण ये भी है कि मन की शुद्धता के लिए करेले की कड़वाहट जरूरी है, जिससे मन शांत हो जाता है.
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छत्तीसगढ़ में इस पर्व की शुरुआत उसी दिन से हो जाती है. जिस दिन बेटियों को उनके ससुराल से मायके लाया जाता है. महिलाएं मायके आकर तीजा व्रत रखती हैं. तीजा के अगले दिन चतुर्थी को पूजन सामग्री और भगवान शिव की बनाई गई मिट्टी की प्रतिमा को नदी या तालाब में विसर्जित किया जाता है. इसके बाद महिलाएं घर लौटकर बहुत ही सुंदर तरीके से श्रृंगार करती हैं.
कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए इस बार शहरों और गांवों में मुनादी करा दी गई थी, कि कोई भी महिला अपने मायके नहीं जाएगी. जो जहां है वहीं रहेगा. जिससे संक्रमण से बचा जा सकता है. कोरोना से बचने की सावधानियों को देखते हुए इस बार महिलाएं ससुराल में रहकर ही तीज का व्रत रखेंगी.
ऐसी है मान्यता
हिन्दू मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने सर्वप्रथम यह व्रत रखा था और भगवान शिव को प्राप्त किया था. दरअसल शिवजी का रहन-सहन और उनकी वेशभूषा राजा हिमाचल को बिल्कुल भी पसंद नहीं था. राजा हिमाचल ने इस बात की चर्चा नारद जी से की. इस पर उन्होंने उमा का विवाह भगवान विष्णु से करने की सलाह दी. वहीं, माता पार्वती भगवान शिव को पहले ही अपने मन में अपना पति मान लिया था. ऐसे में उन्होंने विष्णु जी से विवाह करने से इंकार कर दिया. फिर माता पार्वती की सखियों ने इस विवाह को रोकने की योजना बनाई. माता पार्वती की सखियां उनका अपहरण करते जंगल ले गईं जिससे उनका विवाह विष्णुजी से न हो पाए. सखियों के माता पार्वती का हरण करने पर ही इस व्रत का हरतालिका तीज पड़ गया. शिव को पति के रूप में पाने के लिए माता पार्वती ने जंगल में तप किया और फिर शिवजी ने उन्हें दर्शन दिए और माता पार्वती को उन्होंने पत्नी के रूप में अपना लिया.