बलरामपुर: जिले में सरस्वती पूजा की तैयारियां शुरू (Saraswati Puja Prepration ) हो चुकी है. मूर्तिकारों का पूरा परिवार मूर्तियों को तैयार करने में जुटा हुआ है. इस बार 5 फरवरी को बसंत पंचमी यानी कि सरस्वती पूजा है. लेकिन मूर्ति बनने से पहले ही एक बार फिर कोरोना के नए वेरिएंट ओमीक्रोन के बढ़ते प्रकोप ने मूर्तिकारों के चेहरे पर उदासी ला दी (Sculptor business collapsed due to corona) है.
पिछले दो वर्षों से कोरोना महामारी के कारण त्यौहारी सीजन में लोगों का उत्साह कम हुआ है. जिस कारण मूर्तिकार कम मूर्तियां बना रहे हैं. ऐसे में मूर्तिकारों का पैतृक व्यवसाय चौपट होने की कगार पर पहुंच गया है. बलरामपुर में मूर्तिकारों के ऐसे कई परिवार हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी मूर्तियों को बनाने का व्यवसाय कर रहे हैं.
कोरोना काल में मूर्तिकारों का कारोबार चौपट
कोरोना संक्रमण ने मूर्तिकारों के कारोबार को चौपट कर दिया है. आमतौर पर सरस्वती पूजा का आयोजन शैक्षणिक संस्थानों में होता है. स्कूल, महाविद्यालय और कोचिंग संस्थान में छात्र-छात्राएं प्रतिमा की स्थापना कर पूजा-अर्चना करते हैं. लेकिन मौजूदा समय में शैक्षणिक संस्थान ही बंद हैं. जिसके कारण मूर्तियों का निर्माण भी कम किया जा रहा है. फिलहाल कोरोना के प्रसार के कारण अब शैक्षणिक संस्थानों में मूर्तियां स्थापित करने का प्रचलन सीमित हो गया है. अभी लोग बड़ी मूर्ति के बदले छोटी मूर्ति को ही लेना पसंद कर रहे हैं. कोरोनाकाल से पहले करीब 1 लाख रुपए तक का कारोबार होता था, जो कि अब सिमट कर 20 से 25 हजार हो गया है.
ऑर्डर मिलने पर ही बन रही बड़ी मूर्तियां
बलरामपुर के केरवाशीला गांव में रहने वाले युवा मूर्तिकार प्रीतम सरकार कहते हैं कि, पहले उनके दादा मूर्तियां बनाते थे. अपने दादा से मूर्तिकला सीखकर वह मूर्तियां बना रहे हैं. फिलहाल पहले की तरह मूर्तियों का ऑर्डर नहीं मिल रहा है. उनके साथ उनकी मां बहन और दादी सहित पूरा परिवार मूर्तियां बनाने में जुट चुका है. पिछले वर्ष उन्होंने 60-70 मूर्तियां बनाई थी, लेकिन इस वर्ष 40-50 मूर्तियां ही बना रहे हैं. ज्यादातर छोटी मूर्तियां ही बन रही है. कोरोना गाइडलाइन के कारण बड़ी मूर्तियों की मांग कम हो गई है. ऑर्डर मिलने पर ही बड़ी मूर्तियां बनाई जा रही है. इन मूर्तियों की कीमत 700 रूपए से शुरू होकर 2000 रूपए तक रखी गई है.
मूर्तियों के बिकने की गारंटी नहीं
केरवाशीला गांव की रहने वाली महिला मूर्तिकार संगीता सरकार कहती हैं कि पिछले दो माह से वो मूर्तियां बनाने के काम में जुटी हुई हैं. मूर्तियां बनाने में बहुत मेहनत करनी पड़ती है. मूर्ति निर्माण के लिए अच्छी मिट्टी खरीदी जाती है. साथ ही अन्य जरूरतों के सामान खरीदते हैं. लेकिन निर्माण के अनुसार कीमत नहीं मुहैया हो पाती है. हमारा पूरा परिवार मूर्तियां बनाने में जुट जाता है. इस वर्ष मूर्तियां बिकेगी की नहीं... इसकी कोई गारंटी नहीं है.
बांग्लादेश से आया है मूर्तिकारों का परिवार
रामानुजगंज और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में बांग्लादेश स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान शरणार्थी के रूप में बांग्लादेश से आए मूर्तिकार का परिवार पिछले कई पीढ़ियों से मूर्तियां बनाकर बेचने का व्यवसाय कर रहा है. पांच दशकों से यहां इनका परिवार इस कारोबार को कर रहा है.
मूर्तियों की सजावट के सामान हुए महंगे
मूर्तियों को सजाने के लिए साज-सज्जा के सामानों के दाम बढ़ गए हैं. मूर्तिकारों का कहना है कि मूर्तियों को सजाने के लिए सामान कोलकाता से आता है. ट्रांसपोर्टेशन चार्ज भी अधिक लगता है. मूर्तियों की बिक्री कम होने से कमाई बहुत कम हो गई है. प्रतिमाओं की कीमत में कोई खास वृद्धि नहीं हुई है, लेकिन सजावटी सामानों के दाम पहले की तुलना में काफी बढ़ गए हैं.
प्लास्टर ऑफ पेरिस के बदले बन रही मिट्टी की मूर्तियां
मूर्तिकार प्लास्टर ऑफ पेरिस की जगह मिट्टी की मूर्तियां बना रहे हैं. प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियों के निर्माण एवं विसर्जन से पर्यावरण को नुकसान होता है. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के माध्यम से मूर्तिकारों को मिट्टी की मूर्तियां बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. मूर्ति निर्माण के लिए तालाब के किनारे मिलने वाली चिकनी मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है. मिट्टी से बनी हुई मूर्तियों के विसर्जन से किसी तरह का प्रदूषण नहीं होता. साथ ही इससे पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं होता है.