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खोए ने दी रघुनाथपुर को पहचान, लोगों को भा रहा रघुनाथपुर का खोआ

अम्बिकापुर से रायगढ़ और रांची जाने वाले नेशनल हाइवे में अम्बिकापुर से 14 किलोमीटर दूर रघुनाथपुर नाम का एक गांव है. इस गांव में एक मिठाई की दुकान है, जिसकी वजह से इस गांव की पहचान है. नेशनल हाइवे के किनारे स्थित इस दुकान में मिलने वाला खोआ बेहद प्रसिद्ध है. आलम यह है कि यहां का खोआ इतना मशहूर है कि लोग इसे खरीदने को 14 किलोमीटर दूर खींचे चले आते हैं.

खोए ने दी रघुनाथपुर को पहचान
खोए ने दी गांव को पहचान
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Published : Aug 12, 2021, 7:32 AM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

सरगुजा: प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर सरगुजा में दर्जनों ऐसी चीजें हैं, जो बेहद प्रसिद्ध हैं. बात अगर खाने की हो तब तो सरगुजा आपको एक बार आना ही चाहिए. इस रास्ते से गुजरने वाला शायद ही कोई शख्स हो, जो इस मिठाई को चखे बिना यहां से गुजर जाए. अगर आप भी सरगुजा की मनोरम वादियों में अपने परिवार के साथ घूमने का मन बना रहे हैं, तो यहां की यहां की प्रसिद्ध मिठाई का लुत्फ उठा सकते हैं. दरअसल, अम्बिकापुर से रायगढ़ और रांची जाने वाले नेशनल हाइवे में अम्बिकापुर से 14 किलोमीटर दूर रघुनाथपुर नाम का एक गांव है. इस गांव में एक मिठाई की दुकान है, जिसकी वजह से इस गांव की पहचान है. हर कोई इस गांव को यहां की इस स्वादिष्ट मिठाई की वजह से पहचानता है. नेशनल हाइवे के किनारे स्थित इस दुकान में मिलने वाला खोआ बेहद प्रसिद्ध है. आलम यह है कि दिल्ली, राजस्थान, रायपुर सहित आसपास के कई शहरों के लोग यहां से खोआ ले जाते हैं. यहां का खोआ इतना मशहूर है कि लोग इसे खरीदने को 14 किलोमीटर दूर खींचे चले आते हैं.

खोए ने दी रघुनाथपुर को पहचान

उल्टी दिशा में घूम कर सही समय बताती है यह घड़ी

खोआ नहीं, इसे तो मिठाई ही कहिए

असल में जिसे हम खोआ कह रहे हैं, वह एक प्रकार की मिठाई है. यह खोआ नहीं है, लेकिन उस क्षेत्र में यह खोआ के नाम से ही मशहूर है. साल 1970 से ही रघुनाथपुर में यह दुकान संचालित है और पीढी दर पीढ़ी जायसवाल परिवार इस स्वाद को बरकरार रखे हुए है. 50 साल से भी अधिक समय बीत गया, लेकिन इस जगह की पहचान नहीं बदली. कभी घनघोर जंगलों में संचालित यह दुकान आज गांव को शहर का स्वरूप देने की वजह बन चुकी है.

3 से 4 घंटे की मेहनत, फिर 320 रुपए किलो की बिक्री

इस मिठाई का निर्माण भैंस के दूध से होता है. लकड़ी की आग में बड़ी कड़ाही में भैंस का दूध उबलने के लिए रख दिया जाता है. दूध को करीब 3 घंटे तक खौलाया जाता है. जब तक दूध जमकर हल्का लाल गाढ़ा जम न जाए तब तक इस दूध को चलाते रहना पड़ता है. इसे बनाने वाले कारीगर ने बताया कि 50 लीटर दूध एक बार में एक कड़ाही में डाला जाता है. 50 लीटर दूध में महज 1 किलो चीनी डाली जाती है, क्योंकि दूध पहले से ही मीठा होता है. लिहाजा एक किलो चीनी पड़ने के बाद यह खाने योग्य मिठाई का रूप ले लेता है. 3 से 4 घंटे की मेहनत के बाद यह दूध एक स्वादिष्ट मिठाई का रूप ले लेता है और फिर यह दुकान के काउंटर में ग्राहकों के लिए रख दिया जाता है. जहां इसे 320 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचा जाता है.

सरगुजा: प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर सरगुजा में दर्जनों ऐसी चीजें हैं, जो बेहद प्रसिद्ध हैं. बात अगर खाने की हो तब तो सरगुजा आपको एक बार आना ही चाहिए. इस रास्ते से गुजरने वाला शायद ही कोई शख्स हो, जो इस मिठाई को चखे बिना यहां से गुजर जाए. अगर आप भी सरगुजा की मनोरम वादियों में अपने परिवार के साथ घूमने का मन बना रहे हैं, तो यहां की यहां की प्रसिद्ध मिठाई का लुत्फ उठा सकते हैं. दरअसल, अम्बिकापुर से रायगढ़ और रांची जाने वाले नेशनल हाइवे में अम्बिकापुर से 14 किलोमीटर दूर रघुनाथपुर नाम का एक गांव है. इस गांव में एक मिठाई की दुकान है, जिसकी वजह से इस गांव की पहचान है. हर कोई इस गांव को यहां की इस स्वादिष्ट मिठाई की वजह से पहचानता है. नेशनल हाइवे के किनारे स्थित इस दुकान में मिलने वाला खोआ बेहद प्रसिद्ध है. आलम यह है कि दिल्ली, राजस्थान, रायपुर सहित आसपास के कई शहरों के लोग यहां से खोआ ले जाते हैं. यहां का खोआ इतना मशहूर है कि लोग इसे खरीदने को 14 किलोमीटर दूर खींचे चले आते हैं.

खोए ने दी रघुनाथपुर को पहचान

उल्टी दिशा में घूम कर सही समय बताती है यह घड़ी

खोआ नहीं, इसे तो मिठाई ही कहिए

असल में जिसे हम खोआ कह रहे हैं, वह एक प्रकार की मिठाई है. यह खोआ नहीं है, लेकिन उस क्षेत्र में यह खोआ के नाम से ही मशहूर है. साल 1970 से ही रघुनाथपुर में यह दुकान संचालित है और पीढी दर पीढ़ी जायसवाल परिवार इस स्वाद को बरकरार रखे हुए है. 50 साल से भी अधिक समय बीत गया, लेकिन इस जगह की पहचान नहीं बदली. कभी घनघोर जंगलों में संचालित यह दुकान आज गांव को शहर का स्वरूप देने की वजह बन चुकी है.

3 से 4 घंटे की मेहनत, फिर 320 रुपए किलो की बिक्री

इस मिठाई का निर्माण भैंस के दूध से होता है. लकड़ी की आग में बड़ी कड़ाही में भैंस का दूध उबलने के लिए रख दिया जाता है. दूध को करीब 3 घंटे तक खौलाया जाता है. जब तक दूध जमकर हल्का लाल गाढ़ा जम न जाए तब तक इस दूध को चलाते रहना पड़ता है. इसे बनाने वाले कारीगर ने बताया कि 50 लीटर दूध एक बार में एक कड़ाही में डाला जाता है. 50 लीटर दूध में महज 1 किलो चीनी डाली जाती है, क्योंकि दूध पहले से ही मीठा होता है. लिहाजा एक किलो चीनी पड़ने के बाद यह खाने योग्य मिठाई का रूप ले लेता है. 3 से 4 घंटे की मेहनत के बाद यह दूध एक स्वादिष्ट मिठाई का रूप ले लेता है और फिर यह दुकान के काउंटर में ग्राहकों के लिए रख दिया जाता है. जहां इसे 320 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचा जाता है.

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST
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