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International rural women's day: डिजिटल रहीं ग्रामीण महिलाएं, घर-घर पहुंचा रहीं ऑनलाइन बैंकिंग सेवा

अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस (International rural women's day) के मौके पर ईटीवी भारत सरगुजा (Sarguja) गांव (Village) में जाकर जब वहां की महिला (Woman) से रू-ब-रू हुए तो पता चला कि यहां कि महिलाएं डिजिटल (Women digital) हो रही हैं. दरअसल, यहां कि महिला घर-घर जाकर ऑनलाइन बैंकिंग सेवा (Online banking service) दे रही है. बताया जा रहा है कि बैंक सखी (Bank sakhee)के माध्यम से ये महिलाएं लोगों की न सिर्फ हर संभव मदद कर रही हैं, बल्कि अपने पैरों पर खड़ी है. साथ ही अन्य महिलाओं को भी आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रही है.

rural women going digital
डिजिटल रही ग्रामीण महिलाएं
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Published : Oct 14, 2021, 2:53 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

सरगुजाः महिला (Woman) को समाज का अहम हिस्सा माना गया है. महिला ना हो तो समाज का निर्माण ही अधूरा है. यही कारण है कि महिला को निमात्री यानी कि निर्माण करने वाली का नाम दिया गया है. आधुनिकता के इस दौर में महिला वर्ग के लिए भले ही कोई चीज मुश्किल न हो, लेकिन ग्रामीण महिलाओं के लिए आज के समय में भी हर काम मुश्किल है. घर से बाहर कदम रखना और आगे बढ़ने की सोचने से पहले उन्हें कई अग्निपरीक्ष देनी होती है. ऐसे में सरगुजा (Sarguja) की ग्रामीण महिला इन सब मामलों में काफी आगे निकल गई है.

अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस

साधारण नहीं है सरगुजा की महिला

अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस(International rural women's day) के मौके पर ईटीवी भारत ने सरगुजा (Sarguja) गांव (Village) में जाकर महिलाओं (Woman) की स्थिति देखी, तो यह जाना की शहर से हटकर गांव में महिलाओं का जीवन काफी बेहतर है. आम तौर पर ग्रामीण महिला का नाम सुनते ही जहन में चूल्हे में खाना बनाती, पनघट से पानी भरती हुई और सहमी हुई महिलाओं का चित्र ही सामने आता है. लेकिन ऐसा नही है. पहनावा भले ही सरगुजा की ग्रामीण महिलाओं का साधारण है, लेकिन इनके कारनामे साधारण नही हैं.

बड़े काम का गोबर: गौठानों में अब Humic Acid एसिड के साथ बनेंगे कागज के बैग

2016 से शुरु हुई अंतर्राष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस

अंतर्राष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस प्रत्येक वर्ष 15 अक्टूबर को विश्व स्तर पर मनाया जाता है. यह दिन ग्रामीण परिवारों और समुदायों की स्थिरता सुनिश्चित करने, ग्रामीण आजीविका और समग्र कल्याण में सुधार करने में महिलाओं और लड़कियों की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानने के उद्देश्य से मनाया जाता है. भारत में, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, कृषि के क्षेत्र में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी बढ़ाने के लिए 2016 से राष्ट्रीय महिला किसान दिवस के रूप में मनाता है.

डिजिटल हो रही महिलाएं

जी हां, यहां कि महिलाएं डिजिटल (Women digital) होती जा रही हैं. यहां गांव की महिलाएं डिजिटल पेमेंट कर रही हैं. घर-घर जाकर लोगों को बैंक की सुविधाएं प्रदान करा रही हैं. अपने लिये थोड़ा सा इंसेंटिव कमाने के साथ ही वृद्ध लोगों तक घर बैठे पेंशन तक की सुविधायें ये महिलाएं पहुंचा रही है. आलम यह है की सरगुज़ा में बैंक सखी योजना से जुड़ी 106 महिलायें लैपटॉप, इंटरनेट व फिंगरप्रिंट डिवाइस अपने बैग में लेकर चलती हैं. साथ ही कहीं भी ऑनलाइन बैंकिंग (Online banking service) सहित अन्य ऑनलाइन सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं.

मिशाल पेश कर रही ये महिलाएं

बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें ऑनलाइन ट्रांजक्शन की सही जानकारी नही है. लेकिन सरगुजा के गांव की इन महिलाओं ने मिशाल पेश की है. अब तक जिले में बैंक सखी (Bank sakhee) के माध्यम से 73 करोड़ रुपये का ट्रांजेक्शन किया गया है. जिसमे से 27 करोड़ का ट्रांजेक्शन सिफ लॉकडाउन अवधी में किया गया है. यानी कि भले ही बैंक बंद हो लेकिन लॉकडाउन अवधि में ये महिलाएं लोगों के खाते के पैसे उन्हें निकालकर देती थी, ताकि लोग देश बंदी के दौरान तकलीफ न झेले.

106 बैंक सखी कवर करती है 439 ग्राम पंचायतों को

बताया जा रहा है कि सरगुजा जिले में 106 बैंक सखी 439 ग्राम पंचायतों को कवर करती हैं. 21 मई 2020 से मनरेगा मजदूरी का भुगतान भी मजदूरी स्थल पर शुरू किया गया. यह मजदूरी भुगतान भी बैंक सखी ही करती हैं. अब तक 2 करोड़ 70 लाख रुपये मनरेगा की मजदूरी भुगतान बैंक सखी के माध्यम से हुआ है.

हर माह मिलता है काम के अनुसार मेहनताना

वहीं, इस काम में लगी 106 बैंक सखियों में से 38 का काम ऐसा है कि वो हर महीने 6 हजार से अधिक आमदनी कमा रही हैं. जबकी 57 बैंक सखी ऐसी हैं जो 3 से 6 हजार के बीच का इंसेंटिव कमा रही हैं. बड़ी बात यह है की इन 106 बैंक सखियों में से 89 बैंक सखी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकिंग फाइनेंस की परीक्षा पास कर चुकी हैं. मतलब अब इन्हें अकुशल भी नही कहा जा सकता. कम शिक्षित होने बावजूद बैंक सखी लैपटॉप चलाती हैं, ऑनलाइन ट्रांजैक्सन करती हैं और अब बैंकिंग परीक्षा पास कर इन्होंने यह भी साबित किया है की वो अपने कार्य मे कुशल हैं.

ये महिलाएं लोगों को आगे बढ़ने के लिए करती हैं प्रेरित

वहीं, जब ईटीवीइस पड़ताल में बैंक सखी के पास पहुंचे, तो पता चला कि बकिरमा गांव की असिता जो बैंक सखी का काम करते-करते इतनी लोकप्रिय हो गईं कि लोगों ने इन्हें अपना नेता बना लिया. बताया जाता है कि असिता बैंक सखी का काम करते हुए लगातार लोगों के घर जाती रही उनकी सेवा करती रही, जिसका परिणाम यह हुआ कि 2020 में हुये त्रीस्तरीय पंचायत चुनाव में उन्होंने जनपद सदस्य का चुनाव लड़ा और क्षेत्र के लोगों ने उन्हें अपना जनप्रतिनिधि चुना असिता चुनाव जीत गई और जनपद सदस्य (BDC) बन गईं, लेकिन बड़ी बात यह थी की असिता ने अपना काम नही छोड़ा. आज वो जनप्रतिनिधि हैं. लेकिन बैंक सखी का काम भी करती हैं. असिता आज भी गांव के घर-घर तक जाती हैं और लोगों के पैसों का ट्रांजेक्शन करती हैं. साथ ही असिता ग्रामीण महिलाओ से अपील करती हैं की वो घर की चार दीवारी में कैद ना रहें बल्कि बाहर निकलें और अपना रास्ते खुद बनाये.

सरगुजाः महिला (Woman) को समाज का अहम हिस्सा माना गया है. महिला ना हो तो समाज का निर्माण ही अधूरा है. यही कारण है कि महिला को निमात्री यानी कि निर्माण करने वाली का नाम दिया गया है. आधुनिकता के इस दौर में महिला वर्ग के लिए भले ही कोई चीज मुश्किल न हो, लेकिन ग्रामीण महिलाओं के लिए आज के समय में भी हर काम मुश्किल है. घर से बाहर कदम रखना और आगे बढ़ने की सोचने से पहले उन्हें कई अग्निपरीक्ष देनी होती है. ऐसे में सरगुजा (Sarguja) की ग्रामीण महिला इन सब मामलों में काफी आगे निकल गई है.

अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस

साधारण नहीं है सरगुजा की महिला

अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस(International rural women's day) के मौके पर ईटीवी भारत ने सरगुजा (Sarguja) गांव (Village) में जाकर महिलाओं (Woman) की स्थिति देखी, तो यह जाना की शहर से हटकर गांव में महिलाओं का जीवन काफी बेहतर है. आम तौर पर ग्रामीण महिला का नाम सुनते ही जहन में चूल्हे में खाना बनाती, पनघट से पानी भरती हुई और सहमी हुई महिलाओं का चित्र ही सामने आता है. लेकिन ऐसा नही है. पहनावा भले ही सरगुजा की ग्रामीण महिलाओं का साधारण है, लेकिन इनके कारनामे साधारण नही हैं.

बड़े काम का गोबर: गौठानों में अब Humic Acid एसिड के साथ बनेंगे कागज के बैग

2016 से शुरु हुई अंतर्राष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस

अंतर्राष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस प्रत्येक वर्ष 15 अक्टूबर को विश्व स्तर पर मनाया जाता है. यह दिन ग्रामीण परिवारों और समुदायों की स्थिरता सुनिश्चित करने, ग्रामीण आजीविका और समग्र कल्याण में सुधार करने में महिलाओं और लड़कियों की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानने के उद्देश्य से मनाया जाता है. भारत में, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, कृषि के क्षेत्र में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी बढ़ाने के लिए 2016 से राष्ट्रीय महिला किसान दिवस के रूप में मनाता है.

डिजिटल हो रही महिलाएं

जी हां, यहां कि महिलाएं डिजिटल (Women digital) होती जा रही हैं. यहां गांव की महिलाएं डिजिटल पेमेंट कर रही हैं. घर-घर जाकर लोगों को बैंक की सुविधाएं प्रदान करा रही हैं. अपने लिये थोड़ा सा इंसेंटिव कमाने के साथ ही वृद्ध लोगों तक घर बैठे पेंशन तक की सुविधायें ये महिलाएं पहुंचा रही है. आलम यह है की सरगुज़ा में बैंक सखी योजना से जुड़ी 106 महिलायें लैपटॉप, इंटरनेट व फिंगरप्रिंट डिवाइस अपने बैग में लेकर चलती हैं. साथ ही कहीं भी ऑनलाइन बैंकिंग (Online banking service) सहित अन्य ऑनलाइन सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं.

मिशाल पेश कर रही ये महिलाएं

बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें ऑनलाइन ट्रांजक्शन की सही जानकारी नही है. लेकिन सरगुजा के गांव की इन महिलाओं ने मिशाल पेश की है. अब तक जिले में बैंक सखी (Bank sakhee) के माध्यम से 73 करोड़ रुपये का ट्रांजेक्शन किया गया है. जिसमे से 27 करोड़ का ट्रांजेक्शन सिफ लॉकडाउन अवधी में किया गया है. यानी कि भले ही बैंक बंद हो लेकिन लॉकडाउन अवधि में ये महिलाएं लोगों के खाते के पैसे उन्हें निकालकर देती थी, ताकि लोग देश बंदी के दौरान तकलीफ न झेले.

106 बैंक सखी कवर करती है 439 ग्राम पंचायतों को

बताया जा रहा है कि सरगुजा जिले में 106 बैंक सखी 439 ग्राम पंचायतों को कवर करती हैं. 21 मई 2020 से मनरेगा मजदूरी का भुगतान भी मजदूरी स्थल पर शुरू किया गया. यह मजदूरी भुगतान भी बैंक सखी ही करती हैं. अब तक 2 करोड़ 70 लाख रुपये मनरेगा की मजदूरी भुगतान बैंक सखी के माध्यम से हुआ है.

हर माह मिलता है काम के अनुसार मेहनताना

वहीं, इस काम में लगी 106 बैंक सखियों में से 38 का काम ऐसा है कि वो हर महीने 6 हजार से अधिक आमदनी कमा रही हैं. जबकी 57 बैंक सखी ऐसी हैं जो 3 से 6 हजार के बीच का इंसेंटिव कमा रही हैं. बड़ी बात यह है की इन 106 बैंक सखियों में से 89 बैंक सखी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकिंग फाइनेंस की परीक्षा पास कर चुकी हैं. मतलब अब इन्हें अकुशल भी नही कहा जा सकता. कम शिक्षित होने बावजूद बैंक सखी लैपटॉप चलाती हैं, ऑनलाइन ट्रांजैक्सन करती हैं और अब बैंकिंग परीक्षा पास कर इन्होंने यह भी साबित किया है की वो अपने कार्य मे कुशल हैं.

ये महिलाएं लोगों को आगे बढ़ने के लिए करती हैं प्रेरित

वहीं, जब ईटीवीइस पड़ताल में बैंक सखी के पास पहुंचे, तो पता चला कि बकिरमा गांव की असिता जो बैंक सखी का काम करते-करते इतनी लोकप्रिय हो गईं कि लोगों ने इन्हें अपना नेता बना लिया. बताया जाता है कि असिता बैंक सखी का काम करते हुए लगातार लोगों के घर जाती रही उनकी सेवा करती रही, जिसका परिणाम यह हुआ कि 2020 में हुये त्रीस्तरीय पंचायत चुनाव में उन्होंने जनपद सदस्य का चुनाव लड़ा और क्षेत्र के लोगों ने उन्हें अपना जनप्रतिनिधि चुना असिता चुनाव जीत गई और जनपद सदस्य (BDC) बन गईं, लेकिन बड़ी बात यह थी की असिता ने अपना काम नही छोड़ा. आज वो जनप्रतिनिधि हैं. लेकिन बैंक सखी का काम भी करती हैं. असिता आज भी गांव के घर-घर तक जाती हैं और लोगों के पैसों का ट्रांजेक्शन करती हैं. साथ ही असिता ग्रामीण महिलाओ से अपील करती हैं की वो घर की चार दीवारी में कैद ना रहें बल्कि बाहर निकलें और अपना रास्ते खुद बनाये.

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST
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