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छत्तीसगढ़ का सबसे महंगा चावल जीराफूल, जिसकी महक देश से विदेश तक पहुंची

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Published : Jun 28, 2021, 7:30 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

सरगुजा में धान की उन्नत किस्म जीराफूल (Jeeraphool Rice of Chhattisgarh) की ज्यादा खेती होती है. जीराफूल की खास बात ये हैं कि इसकी खेती में रासायनिक खाद का उपयोग नहीं किया जाता है. सिर्फ जैविक खाद और गहरी जमीन में इसकी खेती होती है.

jeeraphool rice
जीराफूल चावल

सरगुजा: छत्तीसगढ़ में धान की ज्यादा पैदावार के साथ ही धान की कई किस्मों के कारण इसे धान का कटोरा (rice bowl) कहा जाता है. ऐसा ही एक धान है, जीरा फूल (Jeeraphool Rice of Chhattisgarh) जो सिर्फ सरगुजा में ही पैदा होता है. सरगुजा को इस धान का GI टैग (jeeraphool rice gi tag) भी मिल चुका है. जीरा फूल जैसा नाम वैसी ही इसकी क्वॉलिटी है. इसकी सुगंध ही लोगों का मन मोह लेती है.

जीराफूल चावल की बढ़ी डिमांड

जीरा फूल धान बेहद पतला और छोटा होता है. इस धान के चावल की खुशबू और मिठास की तो बात ही निराली है. अगर किसी घर में जीराफूल चावल को पकाया जा रहा है तो उसके आसपास के घरों तक इसकी खुशबू पहुंच जाती है. खुशबू के साथ ही जीराफूल चावल का स्वाद काफी लाजवाब होता है.

जैविक खाद की अनिवार्यता

जानकर बताते हैं की ये चावल अन्य चावलों की तुलना में जल्दी और आसानी से पचता है. इसलिए यह स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है. इसके साथ ही इस धान की पैदावार ऑर्गेनिक ही होती है. इसमें सिर्फ जैविक खाद डाला जाता है. रासायनिक खाद का उपयोग नहीं किया जाता है. माना जाता है कि जीराफूल के धान में रासायनिक खाद का इस्तेमाल करने पर इसकी सुगंध और स्वाद दोनों बदल जाती है. रासायनिक खाद का उपयोग करने के बाद नाइट्रोजन से धान को बेहद नुकसान पहुंचता है. जिससे इस चावल की मुख्य पहचान ही इसमें नहीं रह पाती है. लिहाजा जीराफूल की खेती जैविक खाद से ही की जा सकती है. तभी तो जीराफूल चावल की डिमांड ना सिर्फ देश में है बल्कि विदेश से भी इसकी मांग की जाती है.

सबसे लंबी अवधि का धान

कृषि वैज्ञानिक बताते हैं की जीराफूल धान की खेती 120 से 130 दिन में तैयार होती है. ये सबसे अधिक अवधि में तैयार होने वाला धान है. इस धान की खेती के लिए पानी भी काफी ज्यादा लगता है. इसलिए इसे गहरे खेत में लगाया जाता है. जहां पानी अधिक स्टोर हो सके.

मिट्टी को भी फायदा

कृषि वैज्ञानिक संदीप बताते हैं कि सभी को जीराफूल या उन्नत नस्ल का अन्य धान लगाना चाहिए. हाइब्रिड धान लगाने से बचना चाहिए. क्योंकि अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में हाइब्रिड धान लगाने से खेत की मिट्टी की उर्वरकता धीरे-धीरे खत्म होने लगती है. जबकि लोकल वरायटी या उन्नत नस्ल के धान बीज से मिट्टी की क्षमता में कोई फर्क नहीं पड़ता है. जैविक संसाधनों से मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहती है.

जीराफूल चावल है सबसे महंगा

छत्तीसगढ़ में पैदा होने वाले धान में यह नस्ल सबसे अधिक महंगी है. ओरिजनल जीराफूल धान का चावल बाजार में 70 से 80 रुपये किलो की दर से मिलता है. जबकि कृषि विज्ञान केंद्र आदिवासी महिलाओं के समूह के माध्यम से इस चावल की पैदावार कराकर उसे 120 रुपये प्रति किलो तक बेच रहे हैं. NRLM की बिहान महिला समूह इस चावल को 75 रुपये प्रति किलो में बेच कर अच्छा मुनाफा कमा रही हैं. कृषि विज्ञान के केंद्र की तरफ से ग्रामीणों को खेती की वैज्ञानिक विधि का प्रशिक्षण भी लगातार दिया जा रहा है. धान से चावल बनने और उसकी बिक्री के लिए सारे संसाधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं. कृषि विज्ञान केंद्र ने मिनी राइसमिल, फिल्टर मशीन, पैकिंग मशीन भी समूहों को दिया है.

सरगुजा: छत्तीसगढ़ में धान की ज्यादा पैदावार के साथ ही धान की कई किस्मों के कारण इसे धान का कटोरा (rice bowl) कहा जाता है. ऐसा ही एक धान है, जीरा फूल (Jeeraphool Rice of Chhattisgarh) जो सिर्फ सरगुजा में ही पैदा होता है. सरगुजा को इस धान का GI टैग (jeeraphool rice gi tag) भी मिल चुका है. जीरा फूल जैसा नाम वैसी ही इसकी क्वॉलिटी है. इसकी सुगंध ही लोगों का मन मोह लेती है.

जीराफूल चावल की बढ़ी डिमांड

जीरा फूल धान बेहद पतला और छोटा होता है. इस धान के चावल की खुशबू और मिठास की तो बात ही निराली है. अगर किसी घर में जीराफूल चावल को पकाया जा रहा है तो उसके आसपास के घरों तक इसकी खुशबू पहुंच जाती है. खुशबू के साथ ही जीराफूल चावल का स्वाद काफी लाजवाब होता है.

जैविक खाद की अनिवार्यता

जानकर बताते हैं की ये चावल अन्य चावलों की तुलना में जल्दी और आसानी से पचता है. इसलिए यह स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है. इसके साथ ही इस धान की पैदावार ऑर्गेनिक ही होती है. इसमें सिर्फ जैविक खाद डाला जाता है. रासायनिक खाद का उपयोग नहीं किया जाता है. माना जाता है कि जीराफूल के धान में रासायनिक खाद का इस्तेमाल करने पर इसकी सुगंध और स्वाद दोनों बदल जाती है. रासायनिक खाद का उपयोग करने के बाद नाइट्रोजन से धान को बेहद नुकसान पहुंचता है. जिससे इस चावल की मुख्य पहचान ही इसमें नहीं रह पाती है. लिहाजा जीराफूल की खेती जैविक खाद से ही की जा सकती है. तभी तो जीराफूल चावल की डिमांड ना सिर्फ देश में है बल्कि विदेश से भी इसकी मांग की जाती है.

सबसे लंबी अवधि का धान

कृषि वैज्ञानिक बताते हैं की जीराफूल धान की खेती 120 से 130 दिन में तैयार होती है. ये सबसे अधिक अवधि में तैयार होने वाला धान है. इस धान की खेती के लिए पानी भी काफी ज्यादा लगता है. इसलिए इसे गहरे खेत में लगाया जाता है. जहां पानी अधिक स्टोर हो सके.

मिट्टी को भी फायदा

कृषि वैज्ञानिक संदीप बताते हैं कि सभी को जीराफूल या उन्नत नस्ल का अन्य धान लगाना चाहिए. हाइब्रिड धान लगाने से बचना चाहिए. क्योंकि अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में हाइब्रिड धान लगाने से खेत की मिट्टी की उर्वरकता धीरे-धीरे खत्म होने लगती है. जबकि लोकल वरायटी या उन्नत नस्ल के धान बीज से मिट्टी की क्षमता में कोई फर्क नहीं पड़ता है. जैविक संसाधनों से मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहती है.

जीराफूल चावल है सबसे महंगा

छत्तीसगढ़ में पैदा होने वाले धान में यह नस्ल सबसे अधिक महंगी है. ओरिजनल जीराफूल धान का चावल बाजार में 70 से 80 रुपये किलो की दर से मिलता है. जबकि कृषि विज्ञान केंद्र आदिवासी महिलाओं के समूह के माध्यम से इस चावल की पैदावार कराकर उसे 120 रुपये प्रति किलो तक बेच रहे हैं. NRLM की बिहान महिला समूह इस चावल को 75 रुपये प्रति किलो में बेच कर अच्छा मुनाफा कमा रही हैं. कृषि विज्ञान के केंद्र की तरफ से ग्रामीणों को खेती की वैज्ञानिक विधि का प्रशिक्षण भी लगातार दिया जा रहा है. धान से चावल बनने और उसकी बिक्री के लिए सारे संसाधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं. कृषि विज्ञान केंद्र ने मिनी राइसमिल, फिल्टर मशीन, पैकिंग मशीन भी समूहों को दिया है.

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST
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