सरगुजा: सिविल बहादुर कोई कैद में रहने वाले हाथियों में से बिल्कुल नहीं था.elephant civil bahadur died in Tamor Pingla Sanctuary वो तो स्वच्छंद जंगलों में विचरण करने का आदी था. झारखंड से इसका दल 1988-89 में सरगुजा में प्रवेश कर गया. कुसमी विकासखंड के सिविल दाग जंगल मे हाथियों ने डेरा जमाया. सिविल बहादुर इतना साहसी था कि उसे पकड़ पाना या काबू करना बेहद मुश्किल था. लेकिन हथिनी रूप कली के प्रेम में सिविल बहादुर पकड़ा गया. his love story and stories of bravery रूप कली और सिविल बहादुर के प्रेम के किस्से सरगुजा में खूब मशहूर हैं.
बांधवगढ़ नेशनल पार्क से बुलाए गए महावत: जब सिविल दाग के जंगल में वन विभाग की टीम हथियों को रोकने पहुंची तो सरगुजा में पहली बार सोलर फेंसिंग करंट के जरिए किसी तरह इन्हें रोका गया. elephant civil bahadur died in Tamor Pingla Sanctuary मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के बांधवगढ़ नेशनल पार्क से प्रशिक्षित हाथी और महावत बुलाये गए. प्रशिक्षित हथियों के दल में दो मादा हाथी थीं. माना जाता है कि हाथी मादा हाथियों पर हमला नहीं करते हैं, इसलिए वन विभाग इन हथियों के लिए गन्ना, गुड़, आटे की बड़ी रोटियां मादा हथियों के जरिए भेजा करते थे.
सिविल बहादुर और रूप कली में ऐसे हुआ प्रेम: सरगुजा के वरिष्ठ पत्रकार अजय नारायण पांडेय तब मौके पर इस पूरी घटना की रिपोर्टिंग कर रहे थे. अजय पांडेय बताते हैं कि मादा हाथी में एक थी रूप कली, जो सोलर फेंसिंग के अंदर खाना लेकर भेजी जाती थी. elephant civil bahadur died in Tamor Pingla Sanctuary धीरे-धीरे सिविल बहादुर से रूप कली की नजदीकियां बढ़ने लगीं. क्योंकि रूप कली एक प्रशिक्षित हाथी थी, उसे पता था कि सोलर फेंसिंग के करंट से कैसे बचकर अंदर जाना है. रूप कली फेंसिंग हटाकर अंदर सिविल बहादुर से मिलने जाने लगी. बाद में इनकी मेटिंग से शावकों ने भी जन्म लिया.
आक्रामकता हुई कम तो महावत ने डाला फंदा: सिविल बहादुर रूप कली के प्रेम में पड़ा तो उसकी आक्रामकता भी कम हो गई. एक दिन महावत नायर ने सिविल बहादुर के लिए रस्सी का फंदा डाला और पेड़ पर चढ़ गया. जैसे ही सिविल बहादुर का पैर फंदे में गया उसने रस्सी खींच दिया, लेकिन सिविल बहादुर की ताकत के आगे रस्सी बार-बार टूट जाती. elephant civil bahadur died in Tamor Pingla Sanctuary नायर ने एक बार रस्सी के स्थान पर जीआई के तार का फंदा डाल दिया. जीआई के फंदे से सिविल बहादुर अपने पैर नहीं छुड़ा पाया, क्योंकि वो जितना ही इससे निकलने का प्रयास करता उतना ही उसका पैर चोटिल हो रहा था.
हाई कोर्ट ने दिया था स्वच्छंद रखने का आदेश: इस घटना के चलते कई साल तक सिविल बहादुर के पैर का जख्म नहीं भर पाया. वन विभाग ने कुछ दिन तक जंजीर डालकर उसे काष्ठागार में रखा. फिर उसे अभयारण्य में छोड़ दिया गया. सिविल बहादुर को कुछ दिनों के लिए बिलासपुर के अचानकमार अभयारण्य में भेजा गया जहां वो अपने साथी सोनू हाथी के साथ रहा करता था. अचानकमार में सोनू और सिविल बहादुर दोनों घायल हुए, तब हाई कोर्ट ने इन्हें खुले में स्वच्छंद रखने का आदेश दिया.
1993 में पैर के जख्मों का किया गया ऑपरेशन: हथियों के इलाज के लिए 1993 में एक जम्बो अभियान चलाया गया. elephant civil bahadur died in Tamor Pingla Sanctuary तब सिविल बहादुर के पैर के जख़्मों का ऑपरेशन कर उसे ठीक किया गया. हालांकि सिविल बहादुर बार-बार किसी ना किसी युद्ध में घायल हो जाता और उसकी पुरानी चोट फिर से हरी हो जाती. घायल होने के बाद भी सिविल बहादुर की बहादुरी के किस्से कभी कम नही हुए.
फिल्म द लास्ट माइग्रेशन का भी रहा है हिस्सा: साल 2013 में अम्बिकापुर शहर से लगे लालमाटी गांव में हथियों ने डेरा जमा लिया था. elephant civil bahadur died in Tamor Pingla Sanctuary तब प्रशक्षित हाथियों के साथ वन विभाग ने 17 हाथियों को पकड़ा था. इस ऑपरेशन में सिविल बहादुर ने भी अपना योगदान दिया था. माइक पांडेय की मशहूर फिल्म द लास्ट माइग्रेशन की शूटिंग उन्होंने इसी स्थान पर की थी. प्रवासी हथियों को भगाने के लिए चलाये गये ऑपरेशन जम्बो पर आधारित यह फ़िल्म सरगुजा में ही बनाई गई, जिसमें सिविल बहादुर भी एक अहम किरदार था. इस फ़िल्म को ग्रीन ऑस्कर अवॉर्ड भी मिला.
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वन अमला ही नहीं सरगुजावासी भी हुए गमगीन: सिविल बहादुर को पिछले 5 साल से रमकोला स्थित एलिफैंट रेस्क्यू सेंटर में रखा गया था. यहां पर वो वनकर्मियों का बेहद चहेता बन चुका था. elephant civil bahadur died in Tamor Pingla Sanctuary वर्षों से सरगुजावासी भी सिविल बहादुर के किस्से सुनते आ रहे हैं. मंगलवार को जब अचानक सिविल बहादुर की मौत की सूचना मिली तो वनअमला समेत आम लोग भी गमगीन हो गए. सिविल बहादुर ने अपने नाम की तरह ही बहादुरी से जीवन जिया. लोगों के जहन में ऐसी छाप छोड़ी कि मौत के बाद भी उसकी चर्चा आम है.