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छत्तीसगढ़ की पटवा भाजी बन रही प्लास्टिक का विकल्प

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Published : Apr 13, 2022, 2:24 PM IST

Updated : Apr 13, 2022, 4:46 PM IST

attractive items from fiber of Patwa Bhaji: रायपुर की महिलाएं पटवा भाजी के रेशे से आकर्षक सामान बना कर ना सिर्फ आत्मनिर्भर बन रहीं हैं बल्कि पर्यावरण को प्लास्टिक मुक्त बनाने की दिशा में भी काम कर रहीं हैं.

attractive items from fiber of Patwa Bhaji
पटवा भाजी के रेशे से बना सामान

रायपुर: पर्यावरण को प्रदूषित करने में प्लास्टिक एक अहम कारक है. प्लाटिक के विकल्प और इसे प्रतिबंधित करने के लिए लगातार कई NGO और समाजसेवी आवाज उठाते रहते हैं. इसके अलावा प्लास्टिक के नए-नए विकल्प भी खोजे जा रहे हैं. छत्तीसगढ़ की महिला स्वसहायता समूह की महिलाओं ने भी प्लास्टिक का नया विकल्प खोज लिया है. खास बात ये है कि इनसे आकर्षक सजावटी सामान भी बनाए जा रहे हैं. प्लास्टिक के नए विकल्प के तौर पर छत्तीसगढ़ के रायपुर की महिलाएं भाजी का इस्तेमाल कर रहीं हैं. सुनकर आपको भी हैरानी हो रही होगी. लेकिन ये सच है. (attractive items from fiber of Patwa Bhaji )

पटवा भाजी के रेशे से बना सामान

छत्तीसगढ़ को भाजियों का प्रदेश कहा जाता है. बताया जाता है कि यहां इसके नाम के ही मुताबिक 36 तरह की भाजी मिलती है. इन्हीं में से एक है पटवा भाजी. ये भाजी इन दिनों प्लास्टिक का विकल्प बनकर सामने आ रही है. पटवा भाजी के रेशे से घरों में इस्तेमाल होने वाली चीजों का निर्माण किया जा रहा है. महिलाएं पटवा भाजी के रेशे से थैला, बैग ,पर्स, पायदान, खिलौने और घरों में उपयोग में आने वाले कई सजावटी सामान बना रहीं हैं. (Patwa Bhaji became an alternative to plastic in Raipur)


ऐसे तैयार होता है भाजी से रेशा: महिला स्वसहायता समूह की कल्पना यादव ने बताया कि 'पटवा भाजी का पौधा जब छोटा होता है तब उसे साग बना कर खाया जाता है. जब यह बड़ा होता है तो उसके तने और छाल की कटाई कर उसे पानी में 10 से 15 दिनों तक रखकर गलाया जाता है. इसके बाद रेशा निकलता है. इस रेशे को पटवा डोरी कहा जाता है. पटवा डोरी को गूथ कर अलग-अलग चीजें बनाई जाती है'.

छत्तीसगढ़ की बोहार भाजी जो चिकन-मटन से भी महंगी, जानें क्या है इसकी खासियत


रायपुर में पटवा भाजी से कमाई कर रही महिलाएं: महिला स्वसहायता समूह से जुड़ी योगिता राजपूत ने बताया कि 'पिछले कई सालों से समूह के साथ जुड़ी हूं. पटवा भाजी के रेशे से सामान बनाने की ट्रेनिंग दी गई थी. इन सामानों में सजावटी समान के अलावा पर्स, बैग, जैसे कई सामान हैं. यह प्लाटिक को रिप्लेस कर सकता है. हमने सोचा कि इसमें काम किया जाए. क्योंकि आने वाले दिनों में इकोफ्रेंडली और प्लास्टिक फ्री चीजों को अच्छा रिस्पॉन्स मिलेगा तो इसी दिशा में काम कर रहे हैं'.

महिला स्वसहायता समूह की अध्यक्ष कविता यादव ने बताया कि 'आज के समय में बहुत से घरेलू आइटम प्लास्टिक के बने आते हैं. हम प्लाटिक के विकल्प के रूप में पटवा डोरी से इकोफ्रेंडली प्रोडक्ट जैसे बैग, डेकोरेशन के आयटम, खिलौने, गुड़िया, किचन में उपयोग होने वाले बहुत से सामान बनाते हैं. हमारे साथ महिलाएं जुड़ रहीं हैं. महिलाओं को ट्रेनिंग दी जाती है ताकि वे भी आत्मनिर्भर बन सकें और उन्हें काम मिल सके. पटवा भाजी के रेशे से तैयार इन सामानों को बाजारों में भी पसंद किया जा रहा है.'


रायपुर: पर्यावरण को प्रदूषित करने में प्लास्टिक एक अहम कारक है. प्लाटिक के विकल्प और इसे प्रतिबंधित करने के लिए लगातार कई NGO और समाजसेवी आवाज उठाते रहते हैं. इसके अलावा प्लास्टिक के नए-नए विकल्प भी खोजे जा रहे हैं. छत्तीसगढ़ की महिला स्वसहायता समूह की महिलाओं ने भी प्लास्टिक का नया विकल्प खोज लिया है. खास बात ये है कि इनसे आकर्षक सजावटी सामान भी बनाए जा रहे हैं. प्लास्टिक के नए विकल्प के तौर पर छत्तीसगढ़ के रायपुर की महिलाएं भाजी का इस्तेमाल कर रहीं हैं. सुनकर आपको भी हैरानी हो रही होगी. लेकिन ये सच है. (attractive items from fiber of Patwa Bhaji )

पटवा भाजी के रेशे से बना सामान

छत्तीसगढ़ को भाजियों का प्रदेश कहा जाता है. बताया जाता है कि यहां इसके नाम के ही मुताबिक 36 तरह की भाजी मिलती है. इन्हीं में से एक है पटवा भाजी. ये भाजी इन दिनों प्लास्टिक का विकल्प बनकर सामने आ रही है. पटवा भाजी के रेशे से घरों में इस्तेमाल होने वाली चीजों का निर्माण किया जा रहा है. महिलाएं पटवा भाजी के रेशे से थैला, बैग ,पर्स, पायदान, खिलौने और घरों में उपयोग में आने वाले कई सजावटी सामान बना रहीं हैं. (Patwa Bhaji became an alternative to plastic in Raipur)


ऐसे तैयार होता है भाजी से रेशा: महिला स्वसहायता समूह की कल्पना यादव ने बताया कि 'पटवा भाजी का पौधा जब छोटा होता है तब उसे साग बना कर खाया जाता है. जब यह बड़ा होता है तो उसके तने और छाल की कटाई कर उसे पानी में 10 से 15 दिनों तक रखकर गलाया जाता है. इसके बाद रेशा निकलता है. इस रेशे को पटवा डोरी कहा जाता है. पटवा डोरी को गूथ कर अलग-अलग चीजें बनाई जाती है'.

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रायपुर में पटवा भाजी से कमाई कर रही महिलाएं: महिला स्वसहायता समूह से जुड़ी योगिता राजपूत ने बताया कि 'पिछले कई सालों से समूह के साथ जुड़ी हूं. पटवा भाजी के रेशे से सामान बनाने की ट्रेनिंग दी गई थी. इन सामानों में सजावटी समान के अलावा पर्स, बैग, जैसे कई सामान हैं. यह प्लाटिक को रिप्लेस कर सकता है. हमने सोचा कि इसमें काम किया जाए. क्योंकि आने वाले दिनों में इकोफ्रेंडली और प्लास्टिक फ्री चीजों को अच्छा रिस्पॉन्स मिलेगा तो इसी दिशा में काम कर रहे हैं'.

महिला स्वसहायता समूह की अध्यक्ष कविता यादव ने बताया कि 'आज के समय में बहुत से घरेलू आइटम प्लास्टिक के बने आते हैं. हम प्लाटिक के विकल्प के रूप में पटवा डोरी से इकोफ्रेंडली प्रोडक्ट जैसे बैग, डेकोरेशन के आयटम, खिलौने, गुड़िया, किचन में उपयोग होने वाले बहुत से सामान बनाते हैं. हमारे साथ महिलाएं जुड़ रहीं हैं. महिलाओं को ट्रेनिंग दी जाती है ताकि वे भी आत्मनिर्भर बन सकें और उन्हें काम मिल सके. पटवा भाजी के रेशे से तैयार इन सामानों को बाजारों में भी पसंद किया जा रहा है.'


Last Updated : Apr 13, 2022, 4:46 PM IST

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