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बेटे ने की पिता पर पीएचडी: पिता रेशमलाल जांगड़े पर बेटे हेमचंद्र जांगड़े ने की पीएचडी

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रेशमलाल जांगड़े पर उनके बेटे हेमचंद्र जांगड़े पीएचडी (Son Hemchandra Jangde did PhD on father Reshamlal Jangde) कर रहे हैं. हमेचंद्र यह पीएचडी रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय से कर रहे हैं. जानिए आखिर हेमचंद्र जांगड़े को अपने पिता पर पीएचडी करने की जरूरत क्यों पड़ी

Chhattisgarh freedom fighter Reshamlal Jangde
पिता रेशमलाल जांगड़े पर बेटे हेमचंद्र जांगड़े ने की पीएचडी
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Published : Apr 7, 2022, 8:38 PM IST

Updated : Apr 7, 2022, 9:02 PM IST

रायपुर: आपने, अब तक विभिन्न विषयों में पीएचडी करने वाले शोधार्थियों के बारे में सुना होगा. आप ऐसे ही पीएचडी होल्डरों के शोध को भी पढ़ा होगा. आप कई पीएचडी करने वालों के शोध पत्र के विषयों को भी जानते होंगे. लेकिन आपने शायद ही सुना होगा कि कोई पुत्र अपने पिता के जीवन पर आधारित शोध कर रहा हो. आज हम आपको एक ऐसे ही शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं. जो अपने पिता के ऊपर पीएचडी कर रहे हैं. हम बात कर रहे हैं राजधानी रायपुर में रहने वाले हेमचंद्र जांगड़े की. हेमचंद्र अपने पिता स्वर्गीय रेशमलाल जांगड़े पर आधारित पीएचडी कर रहे हैं.

बेटे ने की पिता पर पीएचडी

रेशमलाल जांगड़े आजादी के बाद देश की पहली संसद में सांसद चुने गए थे.रेशमलाल जांगड़े ने स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में भी बढ़चढ़कर हिस्सा लिया था. रेशमलाल जी के जीवन के अलग-अलग पहलुओं को लेकर उनके पुत्र हेमचंद्र जांगड़े पीएचडी कर रहे हैं. हेमचंद्र यह पीएचडी प. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय से कर रहे हैं. उनका शोध इस माह पूरा होने वाला है और जल्द ही पीएचडी की उपाधि विश्वविद्यालय द्वारा दे दी जाएगी. ऐसे में ईटीवी भारत ने हेमचंद्र से (Exclusive conversation with Hemchandra Jangde) खास बातचीत की है.


सवाल: आप अपने पिता की जीवन पर पीएचडी कर रहे हैं, यह सब्जेक्ट चुनने का ख्याल आपके मन में कैसे आया?
जवाब: 2014 में जब मेरे बाबूजी का निधन हुआ. उसके पश्चात मेरे मन में उथल-पुथल मचा. फिर मेरे मन में एक भावना जागृत हुई कि मेरे पिता ने समाज के लिए जो काम किया है. प्रदेश के लिए काम किया है. गरीब, पिछड़े, दलित और निम्न वर्ग के लोगों के लिए जो काम किया है. उसे किस प्रकार से मैं जनता के सामने लाऊं. यह निश्चित रूप से मेरे मन में इस बात की भावना थी. मैंने सोचा कि क्यों न मैं खुद अपने बाबूजी पर ही कुछ ऐसा कार्य करूं और उनके कार्यों को जनता तक ले जाऊं.

ताकि लोग यह जाने और समझे कि किस तरह रेशमलाल जांगड़े जी ने अपना पूरा जीवन समाज के लिए और गरीब, दलित, शोषित बच्चों के उत्थान के लिए किया है. वह लोगों तक पहुंच सके. इसलिए मैंने यह विषय को चुना और मैंने यह निर्णय लिया है कि मैं निश्चित रूप से अपने पिता के ऊपर ही पीएचडी करुंगा.


सवाल: कितना समय हो चुका आपको पीएचडी करते, आपकी पीएचडी कब पूरी होगी?
जवाब: 2016 से मैंने इसकी शुरुआत की थी, लेकिन बीच मैं राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग का सदस्य रहा था. राजनीतिक और सामाजिक व्यस्तता की वजह से इस उपाधि में कुछ विलंब हुआ. बाबूजी की लेखन सामग्री दिल्ली के पार्लियामेंट और राज्य विधान सभा सचिवालय की लाइब्रेरी से भी लानी थी. चूंकि उस समय कोरोना कॉल का भी समय था. इस वजह से भी काफी विलंब हुआ. हम दिल्ली गए. कोरोना के चलते पार्लियामेंट की लाइब्रेरी जाने में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा. फिर भी हम किसी प्रकार से वहां की लाइब्रेरी में पहुंचे.

चूंकि उनका संग्रह काफी विशाल था. क्योंकि, वह 1950 से लेकर 1991 के बीच तक 4 बार सांसद रहे. उनके इतने लंबे कार्यकाल को कम समय में समेटना एक बड़ा मुश्किल काम था, लेकिन फिर भी हमने काफी कम समय में जो संसाधन उपलब्ध था. उन सीमित संसाधनों में हमने उनके संग्रह को एकत्रित किया. उसके बाद हमने पीएचडी में अपने लेखन और उस कार्य को जोड़ा. हम उस दिशा में लगातार काम करते रहे. अभी 7 अप्रैल को मेरा फाइनल वाइवा होगा. चूंकि फाइनल वायवा के 1 हफ्ते के भीतर यूनिवर्सिटी से नोटिफिकेशन जारी होता है. मुझे लगता है एक सप्ताह के भीतर डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान कर दी जाएगी.




सवाल: अपने पिता पर शोध करने के लिए आप कौन-कौन से इलाकों में गए?
जवाब: मुझे भी अपने पिता पर पीएचडी करने के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. यह नहीं कि मेरे पिता हैं तो उनके ऊपर पीएचडी करना बहुत आसान होगा, लेकिन इतना आसान नहीं था. क्योंकि अपने खुद के पिता के ऊपर लिखना, उनके कार्यों को प्रदर्शित करना और समझना बहुत मुश्किल काम होता है. चूंकि उनका राजनीतिक और सामाजिक जीवन बहुत लंबा रहा है. वे सुबह उठकर दौरे पर निकल जाते थे. हमें उनका सानिध्य भी बहुत कम मिला.

ऐसे में बहुत से पुस्तकों और पत्रिकाओं को मैंने अपना साधन बनाया. मैं बहुत सारी लाइब्रेरी में गया. कुछ सप्ताहिक पत्रिकाएं थी, उनका मैंने गहराई से अध्ययन किया. इसके अलावा छत्तीसगढ़ प्रदेश के बहुत से जिलों में दौरा किया. उन जिलों में जा कर उस समय के बुजुर्गों से मुलाकात की, जो मेरे पिता को जानते थे. उन सभी के पास जाकर के जांगड़े जी के बारे में पूछा. उनके व्यक्तित्व की जानकारी जुटाई. तमाम जानकारियों को एकत्रित किया. जिसे मैंने अपने शोध कार्य में सम्मिलित किया.


सवाल: आपका शोध अंतिम पड़ाव पर है. ऐसे में क्या कुछ नई बातें निकल कर सामने आई?
जवाब: नई बात तो यह होती है कि आज के दौर और पहले के दौर में बहुत अंतर आ चुका है. पहले के दौर में लोग सेवा भावना से काम करते थे. नेक सामाजिकता और अपने समाज के लिए, प्रदेश के लिए और देश के लिए एक ललक होती थी. हम किस प्रकार अपने देश और समाज के लिए काम कर सकें. जिससे हमारा समाज सभी के साथ बराबर में एक ही पंक्ति में खड़ा हो सके. कोई बच्चा अशिक्षित ना हो सके. हम अपने प्रदेश को विकास की ओर कैसे ले जा सकें. उसका माध्यम क्या होगा. उस दौर में ऐसे लोग होते थे जो उन कार्य को करते थे, लेकिन आज के दौर में या बहुत मुश्किल काम होता है.

क्योंकि आजकल लोगों में स्वार्थ की भावना होती है. सामाजिक काम करना तो बहुत दूर की बात है. लोग राजनीति भी धर्मोपार्जन का एक साधन मानते हैं. मुझे यह सीखने को मिला कि किस प्रकार से सामाजिक कामों से हम लोगों को एक अच्छा जीवन शैली और उसको समाज के बराबर की पंक्ति में लाकर खड़ा कर सकें. कोई भी बच्चा अशिक्षित ना रहे. अपने समाज को किस प्रकार से ऊंचाइयों तक ले जा सकते हैं. यह सब मुझे सीखने को मिला. जब लोग बताते गए तो मुझे खुद को भी यह शिक्षा मिली कि किस प्रकार वे सीमित संसाधन में उस समय पैदल गांव में घूम घूम कर समाज को एकजुट कर आगे बढ़ाया. उनके त्याग और संघर्ष के बारे में जानने को मिला. यह निश्चित रूप से हम सब के लिए और आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणादाई है. मुझे भी उनके जीवन और उनके कामों से काफी प्रेरणा मिली है.




सवाल: बहुत कम ही लोग होते हैं, जो अपने पिता के ऊपर पीएचडी करते हैं, आपकी पीएचडी जल्द पूरी होने वाली है, आप कैसा महसूस कर रहें हैं?
जवाब: मैं तो अपने आप को बहुत ही भाग्यशाली मानता हूं कि मेरे पिता मुखर व्यक्तित्व के धनी थे. उनके विषय पर पीएचडी करना एक बहुत ही गर्व का विषय है. मेरा सौभाग्य है कि मुझे मेरे पिता के ऊपर पीएचडी करने का अवसर प्राप्त हुआ. क्योंकि उनका जीवन और उनका औरा इतना विशाल था कि उसे इतने कम समय में समेटना मेरे लिए बहुत ही मुश्किल काम था. इसलिए उनके जीवन से संबंधित बहुत से विषय मेरी पीएचडी में शामिल भी नहीं हो पाए. समय के अभाव की वजह कहें या कोरोना काल की वजह से, सीमित संसाधन और कुछ आर्थिक अभाव की भी वजह से मैं बहुत सारी चीजों का संकलन नहीं कर पाया. इसका मुझे बहुत ही दुख रहेगा, लेकिन फिर भी मैंने पूरी कोशिश की. उनकी जीवन की उपलब्धियों को और उनके द्वारा किए गए कार्यों को जनता या समाज के मध्य लेकर जाऊं. साथ ही किस प्रकार जांगड़े जी ने सीमित संसाधन में समाज के लिए अतुलनीय कार्य किया. यह मेरे लिए गर्व का विषय है.

रायपुर: आपने, अब तक विभिन्न विषयों में पीएचडी करने वाले शोधार्थियों के बारे में सुना होगा. आप ऐसे ही पीएचडी होल्डरों के शोध को भी पढ़ा होगा. आप कई पीएचडी करने वालों के शोध पत्र के विषयों को भी जानते होंगे. लेकिन आपने शायद ही सुना होगा कि कोई पुत्र अपने पिता के जीवन पर आधारित शोध कर रहा हो. आज हम आपको एक ऐसे ही शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं. जो अपने पिता के ऊपर पीएचडी कर रहे हैं. हम बात कर रहे हैं राजधानी रायपुर में रहने वाले हेमचंद्र जांगड़े की. हेमचंद्र अपने पिता स्वर्गीय रेशमलाल जांगड़े पर आधारित पीएचडी कर रहे हैं.

बेटे ने की पिता पर पीएचडी

रेशमलाल जांगड़े आजादी के बाद देश की पहली संसद में सांसद चुने गए थे.रेशमलाल जांगड़े ने स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में भी बढ़चढ़कर हिस्सा लिया था. रेशमलाल जी के जीवन के अलग-अलग पहलुओं को लेकर उनके पुत्र हेमचंद्र जांगड़े पीएचडी कर रहे हैं. हेमचंद्र यह पीएचडी प. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय से कर रहे हैं. उनका शोध इस माह पूरा होने वाला है और जल्द ही पीएचडी की उपाधि विश्वविद्यालय द्वारा दे दी जाएगी. ऐसे में ईटीवी भारत ने हेमचंद्र से (Exclusive conversation with Hemchandra Jangde) खास बातचीत की है.


सवाल: आप अपने पिता की जीवन पर पीएचडी कर रहे हैं, यह सब्जेक्ट चुनने का ख्याल आपके मन में कैसे आया?
जवाब: 2014 में जब मेरे बाबूजी का निधन हुआ. उसके पश्चात मेरे मन में उथल-पुथल मचा. फिर मेरे मन में एक भावना जागृत हुई कि मेरे पिता ने समाज के लिए जो काम किया है. प्रदेश के लिए काम किया है. गरीब, पिछड़े, दलित और निम्न वर्ग के लोगों के लिए जो काम किया है. उसे किस प्रकार से मैं जनता के सामने लाऊं. यह निश्चित रूप से मेरे मन में इस बात की भावना थी. मैंने सोचा कि क्यों न मैं खुद अपने बाबूजी पर ही कुछ ऐसा कार्य करूं और उनके कार्यों को जनता तक ले जाऊं.

ताकि लोग यह जाने और समझे कि किस तरह रेशमलाल जांगड़े जी ने अपना पूरा जीवन समाज के लिए और गरीब, दलित, शोषित बच्चों के उत्थान के लिए किया है. वह लोगों तक पहुंच सके. इसलिए मैंने यह विषय को चुना और मैंने यह निर्णय लिया है कि मैं निश्चित रूप से अपने पिता के ऊपर ही पीएचडी करुंगा.


सवाल: कितना समय हो चुका आपको पीएचडी करते, आपकी पीएचडी कब पूरी होगी?
जवाब: 2016 से मैंने इसकी शुरुआत की थी, लेकिन बीच मैं राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग का सदस्य रहा था. राजनीतिक और सामाजिक व्यस्तता की वजह से इस उपाधि में कुछ विलंब हुआ. बाबूजी की लेखन सामग्री दिल्ली के पार्लियामेंट और राज्य विधान सभा सचिवालय की लाइब्रेरी से भी लानी थी. चूंकि उस समय कोरोना कॉल का भी समय था. इस वजह से भी काफी विलंब हुआ. हम दिल्ली गए. कोरोना के चलते पार्लियामेंट की लाइब्रेरी जाने में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा. फिर भी हम किसी प्रकार से वहां की लाइब्रेरी में पहुंचे.

चूंकि उनका संग्रह काफी विशाल था. क्योंकि, वह 1950 से लेकर 1991 के बीच तक 4 बार सांसद रहे. उनके इतने लंबे कार्यकाल को कम समय में समेटना एक बड़ा मुश्किल काम था, लेकिन फिर भी हमने काफी कम समय में जो संसाधन उपलब्ध था. उन सीमित संसाधनों में हमने उनके संग्रह को एकत्रित किया. उसके बाद हमने पीएचडी में अपने लेखन और उस कार्य को जोड़ा. हम उस दिशा में लगातार काम करते रहे. अभी 7 अप्रैल को मेरा फाइनल वाइवा होगा. चूंकि फाइनल वायवा के 1 हफ्ते के भीतर यूनिवर्सिटी से नोटिफिकेशन जारी होता है. मुझे लगता है एक सप्ताह के भीतर डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान कर दी जाएगी.




सवाल: अपने पिता पर शोध करने के लिए आप कौन-कौन से इलाकों में गए?
जवाब: मुझे भी अपने पिता पर पीएचडी करने के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. यह नहीं कि मेरे पिता हैं तो उनके ऊपर पीएचडी करना बहुत आसान होगा, लेकिन इतना आसान नहीं था. क्योंकि अपने खुद के पिता के ऊपर लिखना, उनके कार्यों को प्रदर्शित करना और समझना बहुत मुश्किल काम होता है. चूंकि उनका राजनीतिक और सामाजिक जीवन बहुत लंबा रहा है. वे सुबह उठकर दौरे पर निकल जाते थे. हमें उनका सानिध्य भी बहुत कम मिला.

ऐसे में बहुत से पुस्तकों और पत्रिकाओं को मैंने अपना साधन बनाया. मैं बहुत सारी लाइब्रेरी में गया. कुछ सप्ताहिक पत्रिकाएं थी, उनका मैंने गहराई से अध्ययन किया. इसके अलावा छत्तीसगढ़ प्रदेश के बहुत से जिलों में दौरा किया. उन जिलों में जा कर उस समय के बुजुर्गों से मुलाकात की, जो मेरे पिता को जानते थे. उन सभी के पास जाकर के जांगड़े जी के बारे में पूछा. उनके व्यक्तित्व की जानकारी जुटाई. तमाम जानकारियों को एकत्रित किया. जिसे मैंने अपने शोध कार्य में सम्मिलित किया.


सवाल: आपका शोध अंतिम पड़ाव पर है. ऐसे में क्या कुछ नई बातें निकल कर सामने आई?
जवाब: नई बात तो यह होती है कि आज के दौर और पहले के दौर में बहुत अंतर आ चुका है. पहले के दौर में लोग सेवा भावना से काम करते थे. नेक सामाजिकता और अपने समाज के लिए, प्रदेश के लिए और देश के लिए एक ललक होती थी. हम किस प्रकार अपने देश और समाज के लिए काम कर सकें. जिससे हमारा समाज सभी के साथ बराबर में एक ही पंक्ति में खड़ा हो सके. कोई बच्चा अशिक्षित ना हो सके. हम अपने प्रदेश को विकास की ओर कैसे ले जा सकें. उसका माध्यम क्या होगा. उस दौर में ऐसे लोग होते थे जो उन कार्य को करते थे, लेकिन आज के दौर में या बहुत मुश्किल काम होता है.

क्योंकि आजकल लोगों में स्वार्थ की भावना होती है. सामाजिक काम करना तो बहुत दूर की बात है. लोग राजनीति भी धर्मोपार्जन का एक साधन मानते हैं. मुझे यह सीखने को मिला कि किस प्रकार से सामाजिक कामों से हम लोगों को एक अच्छा जीवन शैली और उसको समाज के बराबर की पंक्ति में लाकर खड़ा कर सकें. कोई भी बच्चा अशिक्षित ना रहे. अपने समाज को किस प्रकार से ऊंचाइयों तक ले जा सकते हैं. यह सब मुझे सीखने को मिला. जब लोग बताते गए तो मुझे खुद को भी यह शिक्षा मिली कि किस प्रकार वे सीमित संसाधन में उस समय पैदल गांव में घूम घूम कर समाज को एकजुट कर आगे बढ़ाया. उनके त्याग और संघर्ष के बारे में जानने को मिला. यह निश्चित रूप से हम सब के लिए और आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणादाई है. मुझे भी उनके जीवन और उनके कामों से काफी प्रेरणा मिली है.




सवाल: बहुत कम ही लोग होते हैं, जो अपने पिता के ऊपर पीएचडी करते हैं, आपकी पीएचडी जल्द पूरी होने वाली है, आप कैसा महसूस कर रहें हैं?
जवाब: मैं तो अपने आप को बहुत ही भाग्यशाली मानता हूं कि मेरे पिता मुखर व्यक्तित्व के धनी थे. उनके विषय पर पीएचडी करना एक बहुत ही गर्व का विषय है. मेरा सौभाग्य है कि मुझे मेरे पिता के ऊपर पीएचडी करने का अवसर प्राप्त हुआ. क्योंकि उनका जीवन और उनका औरा इतना विशाल था कि उसे इतने कम समय में समेटना मेरे लिए बहुत ही मुश्किल काम था. इसलिए उनके जीवन से संबंधित बहुत से विषय मेरी पीएचडी में शामिल भी नहीं हो पाए. समय के अभाव की वजह कहें या कोरोना काल की वजह से, सीमित संसाधन और कुछ आर्थिक अभाव की भी वजह से मैं बहुत सारी चीजों का संकलन नहीं कर पाया. इसका मुझे बहुत ही दुख रहेगा, लेकिन फिर भी मैंने पूरी कोशिश की. उनकी जीवन की उपलब्धियों को और उनके द्वारा किए गए कार्यों को जनता या समाज के मध्य लेकर जाऊं. साथ ही किस प्रकार जांगड़े जी ने सीमित संसाधन में समाज के लिए अतुलनीय कार्य किया. यह मेरे लिए गर्व का विषय है.

Last Updated : Apr 7, 2022, 9:02 PM IST
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