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रायपुर में दो सदियों से विराजमान हैं राजाधिराज, हर रोज हवेली में होती है भव्य पूजा - oldest temple of raipur

रायपुर शहर के बीचो-बीच 241 से एक हवेली में विराजमान हैं राजाधिराज. इस हवेली का पूरा नाम गोकुल चंद्रमा हवेली मंदिर (Gokul Chandra Haveli Temple of Raipur) है. जिसमे आज भी दोनों समय ठाकुरजी की सेवा जारी है.

Rajadhiraj is sitting in Raipur for two centuries
रायपुर में दो सदियों से विराजमान हैं राजाधिराज
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Published : Apr 26, 2022, 1:10 PM IST

Updated : Apr 26, 2022, 3:11 PM IST

रायपुर : राजधानी का इतिहास बेहद पुराना है. यहां कई प्राचीन मंदिर विद्यमान है. उन्हीं प्राचीन मंदिरों में से एक मंदिर सदर बाजार बूढ़ातालाब में स्थित है. बूढ़ातालाब के श्री गोकुल चंद्रमा हवेली मंदिर का 241 साल पुराना इतिहास (oldest temple of raipur) है. 241 साल पुराने इस मंदिर के बारे में जानने के लिए ईटीवी की टीम पहुंची. जिसके बाद मंदिर से जुड़े कई रहस्य खुले. आज हम आपको बताएंगे इस पुरातन मंदिर के इतिहास को.

रायपुर के राजाधिराज : 241 साल पहले इस मंदिर की स्थापना की गई थी. इस मंदिर को पुष्टि मार्ग मंदिर भी कहा जाता है. जिसमे प्रभु श्रीकृष्ण की उपासना होती है . श्रीकृष्ण इस मंदिर में ठाकुर के रूप में विराजमान हैं. भक्तगण इन्हें राजाधिराज भी (Rajadhiraj is sitting in Raipur for two centuries)कहते हैं. लिहाजा एक राजा की तरह कृष्ण की 241 साल से सेवा हो रही है. इस मंदिर के ट्रस्ट से जुड़े जयेश भाई पारिख ने बताया कि ठाकुरजी की सेवा एक राजा की तरह होती है. राजा महल या हवेली में ही रहा करते थे. इसलिए पुष्टिमार्ग के मंदिर को हवेली कहा जाता है.

1781 में बना था ट्रस्ट : 1781 में पुष्टिमार्ग ट्रस्ट का निर्माण स्वर्गीय किशन दास पुरोहित ने किया था. इसके बाद इसकी जिम्मेदारी उनके बड़े सुपुत्र बंशीलाल पुरोहित ने संभाली. शुरुआत में इस हवेली (Gokul Chandra Haveli Temple of Raipur) का नाम पुरोहित निवास था. जिसके बाद इसे पूरे वैभव के साथ वल्लभकुल के नृसिंह लाल महाराज को भेंट किया गया. क्योंकि बंशीलाल पुरोहित महाराज गुजरात में रहते थे.उनके लिए बार-बार रायपुर आना संभव नहीं था. इसलिए उन्होंने वल्लभ कुल के पुरुषोत्तम लाल महाराज को यह हवेली दे दी. आज इनके वंशज महाप्रभु वल्लभाचार्य के प्राकट्य स्थल चंपारण की देख रेख करते हैं.

ये भी पढ़ें- 101 लीटर दूध से श्रीकृष्ण का अभिषेक

हवेली में गौशाला भी मौजूद : एक ओर जहां हवेली में ठाकुर जी की सेवा की जाती है. वहीं हवेली के अंदर गौशाला भी मौजूद हैं, जहां गाय की सेवा भी होती है. साथ में ठाकुर जी को लगने वाले भोग में गाय का शुद्ध दूध का इस्तेमाल किया जाता है. श्री गोकुल चंद्रमा हवेली (Gokul Chandra Haveli Temple of Raipur) में ठाकुर जी की सेवा एक राजा के रूप में की जाती है. इनके दर्शन का समय भी निर्धारित रहता है. ठाकुरजी के दर्शन का समय सुबह 8:00 से 8:15 तक मंगला, सुबह 9:30 बजे श्रृंगार, सुबह 11:30 बजे राजभोग, संध्या 4:30 बजे उत्थापन , शाम 5:30 बजे भोग, संध्या आरती और रात्रि 7:00 बजे शयन का समय निर्धारित है.

रायपुर : राजधानी का इतिहास बेहद पुराना है. यहां कई प्राचीन मंदिर विद्यमान है. उन्हीं प्राचीन मंदिरों में से एक मंदिर सदर बाजार बूढ़ातालाब में स्थित है. बूढ़ातालाब के श्री गोकुल चंद्रमा हवेली मंदिर का 241 साल पुराना इतिहास (oldest temple of raipur) है. 241 साल पुराने इस मंदिर के बारे में जानने के लिए ईटीवी की टीम पहुंची. जिसके बाद मंदिर से जुड़े कई रहस्य खुले. आज हम आपको बताएंगे इस पुरातन मंदिर के इतिहास को.

रायपुर के राजाधिराज : 241 साल पहले इस मंदिर की स्थापना की गई थी. इस मंदिर को पुष्टि मार्ग मंदिर भी कहा जाता है. जिसमे प्रभु श्रीकृष्ण की उपासना होती है . श्रीकृष्ण इस मंदिर में ठाकुर के रूप में विराजमान हैं. भक्तगण इन्हें राजाधिराज भी (Rajadhiraj is sitting in Raipur for two centuries)कहते हैं. लिहाजा एक राजा की तरह कृष्ण की 241 साल से सेवा हो रही है. इस मंदिर के ट्रस्ट से जुड़े जयेश भाई पारिख ने बताया कि ठाकुरजी की सेवा एक राजा की तरह होती है. राजा महल या हवेली में ही रहा करते थे. इसलिए पुष्टिमार्ग के मंदिर को हवेली कहा जाता है.

1781 में बना था ट्रस्ट : 1781 में पुष्टिमार्ग ट्रस्ट का निर्माण स्वर्गीय किशन दास पुरोहित ने किया था. इसके बाद इसकी जिम्मेदारी उनके बड़े सुपुत्र बंशीलाल पुरोहित ने संभाली. शुरुआत में इस हवेली (Gokul Chandra Haveli Temple of Raipur) का नाम पुरोहित निवास था. जिसके बाद इसे पूरे वैभव के साथ वल्लभकुल के नृसिंह लाल महाराज को भेंट किया गया. क्योंकि बंशीलाल पुरोहित महाराज गुजरात में रहते थे.उनके लिए बार-बार रायपुर आना संभव नहीं था. इसलिए उन्होंने वल्लभ कुल के पुरुषोत्तम लाल महाराज को यह हवेली दे दी. आज इनके वंशज महाप्रभु वल्लभाचार्य के प्राकट्य स्थल चंपारण की देख रेख करते हैं.

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हवेली में गौशाला भी मौजूद : एक ओर जहां हवेली में ठाकुर जी की सेवा की जाती है. वहीं हवेली के अंदर गौशाला भी मौजूद हैं, जहां गाय की सेवा भी होती है. साथ में ठाकुर जी को लगने वाले भोग में गाय का शुद्ध दूध का इस्तेमाल किया जाता है. श्री गोकुल चंद्रमा हवेली (Gokul Chandra Haveli Temple of Raipur) में ठाकुर जी की सेवा एक राजा के रूप में की जाती है. इनके दर्शन का समय भी निर्धारित रहता है. ठाकुरजी के दर्शन का समय सुबह 8:00 से 8:15 तक मंगला, सुबह 9:30 बजे श्रृंगार, सुबह 11:30 बजे राजभोग, संध्या 4:30 बजे उत्थापन , शाम 5:30 बजे भोग, संध्या आरती और रात्रि 7:00 बजे शयन का समय निर्धारित है.

Last Updated : Apr 26, 2022, 3:11 PM IST

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