रायपुरः एक दिसंबर से छत्तीसगढ़ में धान की खरीदी की शुरुआत सरकार करेगी. इस बार सरकार ने धान खरीदी का लक्ष्य पिछले बार की तुलना में एक लाख मीट्रिक टन अधिक यानी 93 लाख मीट्रिक टन रखा है. हर बार की तरह इस वर्ष भी खरीदी की शुरुआत होने से पहले ही केंद्र और राज्य सरकार में ठन गई है.
वजह केंद्र सरकार द्वारा उसना चावल न लिए जाने का फैसला है. केंद्र की मोदी सरकार ने नियमों का हवाला देते हुए यह फैसला लिया है मगर दूसरी तरफ प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल का कहना है कि अगर केंद्र की सरकार इस फैसले पर अड़ी रही तो प्रदेश के 500 राइस मिलों में ताला (lock in rice mills) लग सकता है. यह राइस मिलर्स के लिए भी चिंता का सबब बना हुआ है. इस मामले को लेकर छत्तीसगढ़ में राजनीतिक बयान बाजियां (political statements) भी जारी हैं।
...तो अब राइस मिलों पर मंडरा रहा खतरा
छत्तीसगढ़ राइस मिलर्स एसोसिएशन (Chhattisgarh Rice Millers Association) के अध्यक्ष योगेश अग्रवाल कहते है कि हमारे यहां 60 से 70 फ़ीसदी उसना धान होता है और 40 से 50 फीसदी धान अरवा क्वालिटी का होता है. इस वर्ष केंद्र सरकार ने कहा है कि छत्तीसगढ़ से उसना क्वालिटी का चावल नहीं लेंगे. ऐसे में हमारे 60 से 70 फीसदी धान का क्या होगा? राज्य सरकार ने इस बार पहले से अधिक धान खरीदने की घोषणा (paddy purchase announcement) की है. अब सवाल यह उठता है कि इतने बड़े मात्रा में सरकार धान को रखेगी कहां? क्योंकि मिलिंग नहीं होगी तो धान खराब होगा. यह बहुत बड़ा सवाल है कि सरकार उस धान का करेगी क्या? क्योंकि उसमें से 40-50 प्रतिशत धान ऐसे हैं जिनका अरवा मिलिंग हो जाएगी.
लेकिन 'उसना क्वालिटी' के जो धान हैं, उसका कुछ नहीं हो सकता. कहा कि हमारे यहां 450-500 राइस मिलें हैं, उनके सामने बहुत बड़ा संकट आ जाएगा. आखिर वह क्या करें? वह हमेशा से उसना कि इतनी बड़ी करोड़ों की फैक्ट्री लगा कर रखे हैं. आज वहां कस्टमाइज नहीं कर पाएंगे. क्योंकि बैंक से लोन लिया गया है. ऐसे में बहुत बड़ी मुसीबत आ सकती है. इसका समाधान कैसे निकलेगा. कुछ समझ में नहीं आ रहा है. एसोसिएशन के अध्यक्ष अग्रवाल ने मांग की है कि छत्तीसगढ़ का उसना चावल खरीदा जाए, नहीं तो यहां का उद्योग चरमरा जाएगा (the industry will collapse).
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सीएम ने की थी केंद्र से उसना चावल खरीदने की मांग
राइस मिल एसोसिएशन (Rice Mill Association) के अध्यक्ष बताते हैं कि केंद्र सरकार ने यह कहा है कि हमारे पास 4 साल का स्टॉक पहले से रखा हुआ है. 4 साल से ज्यादा का चावल स्टॉक (rice stock) नहीं कर सकते हैं. क्योंकि चावल की अधिक आयु 4 वर्ष होती है. अध्यक्ष योगेश अग्रवाल में बताया कि ऐसा ही 2007 में भी हुआ था, जब केंद्र ने छत्तीसगढ़ का उसना चावल खरीदने से मना कर दी थी. उसके बाद 2013-14 में भी अरवा चावल बंद कर दिया था. वैसे ही इस बार यही स्थिति आ गई है. क्योंकि जिन प्रदेशों में छत्तीसगढ़ के चावल जाते थे, उन प्रदेशों की पैदावार बढ़ गई है. उन प्रदेशों में भी उसना क्वालिटी का धान (quality paddy) होने लगा.
क्योंकि कुछ सालों से देश ने कृषि में उन्नति की. सभी जगह धान की पैदावार अच्छी हो रही है, लेकिन यह मुसीबत हमारे राज्य सरकार के साथ में है और अन्य प्रदेशों के साथ में भी है. दो दिन पहले केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Union Finance Minister Nirmala Sitharaman) की अध्यक्षता में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री की ऑनलाइन बैठक रखी गई थी. इस बैठक में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने केंद्र सरकार से छत्तीसगढ़ का उसना चावल खरीदे जाने की मांग की थी. उन्होंने कहा था कि ऐसा नहीं करने से यहां की राइस मिले बंद होने की कगार में आ जाएंगी. इससे राइस मिलों के साथ ही किसानों को भी नुकसान (farmers also suffer) हो सकता है.
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सीएम बघेल कर रहे हैं राजनीति- भाजपा
भाजपा के नेताओं ने कहा कि प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा जिस प्रकार से उसना चावल को लेकर राजनीति की जा रही है. खासकर केंद्र की सरकार पर आरोप मढ़े जा रहे हैं, वह वास्तव में इस प्रदेश के साथ बहुत बड़ा अन्याय है. जबकि सरकार जानती है कि केंद्र की अपनी नीतियां होती हैं. सच्चिदानंद उपासने ने कहा कि केंद्र को पूरे देश को देखना होता है ना कि एक राज्य को. ऐसी स्थिति में अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप धान की खरीदी करती है. उसना चावल को लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री जिस तरह से आरोप केंद्र पर लगा रहे हैं, वह प्रदेश के मिल मालिकों के साथ किसानों के साथ अन्याय की श्रेणी में आता है. वास्तव में यदि प्रदेश का हित चाहते तो निश्चित रूप से कस्टम मिलिंग में छूट दें, उसे निर्यात की अनुमति प्रदान करें तो इससे इस प्रदेश का हित होगा. किसानों का हित होगा.
मिल मालिकों का हित होगा. इस प्रकार की नीति बनानी चाहिए. केवल केंद्र पर आरोप मढ़कर अपने कर्तव्यों पर इतिश्री करना यह प्रदेश सरकार की जिम्मेदारी नहीं होती है. कई बार तो केंद्र की सरकार अरवा चावल को आवश्यकता नहीं होने पर नहीं खरीदती है. यह सभी राज्यों को पता है कि केंद्र के क्या नियम है . इन बातों को जानते हुए भी केंद्र की नीतियों पर प्रहार कर प्रदेश की जनता से वाह-वाही लूटने का काम सरकार के द्वारा किया जा रहा है.