रायपुर: मां दुर्गा पांचवे दिन स्कंदमाता के रूप में जानी जाती है. स्कंदमाता कार्तिकेय की माता मानी जाती है. स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं. माता का वाहन सिंह माना गया है. असुरों के अत्याचारों को रोकने के लिए माता ने सिंह पर सवार होकर समस्त असुरों का संहार किया था. स्कंदमाता के हाथ में तलवार कमल पुष्प और अभय मुद्रा है. अभय मुद्रा के माध्यम से समस्त भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं.
विद्या शुरू करने के लिए शुभ दिन: इस दिन विद्या अध्ययन करने के लिए बहुत शुभ माना गया है. संगीत के साधक योग के साधकों के लिए आज का दिन विशेष महत्व रखता है. इस दिन कमल पुष्प से माता की पूजा आराधना और साधना करनी चाहिए. इस शुभ दिन गंगा के जल गोमूत्र से स्थान को साफ कर स्कंदमाता की स्थापना की जाती है. ऐसा माना गया है कि कालिदास के द्वारा लिखे गए रघुवंश रचना में स्कंदमाता का ही आशीर्वाद रहा. तब यह महाग्रंथ पूर्ण हो पाया. स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं. माता का वर्ण शुभ है. स्कंदमाता वात्सल्य की देवी मानी गई है. मां की उपासना से संतान की प्राप्ति होती है. मां का वाहन सिंह है. मां स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं.
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स्कंदमाता को माता पार्वती का ही स्वरूप माना गया है. इस माता को ही गौरी कहा जाता है. स्कंदमाता विद्या, संतान, ज्ञान आदि प्रदान करने वाली देवी मानी गई है. इस शुभ दिन नामकरण, अन्नप्राशन शुभ माना गया है. स्कंद पंचमी के दिन व्यापार शुरू करना और नये वस्त्र खरीदना बहुत ही शुभ माने गए हैं.
स्कंदमाता पूजा विधि:
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद साफ स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
मां की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएं.
स्नान कराने के बाद पुष्प अर्पित करें.
मां को रोली कुमकुम भी लगाएं.
मां को मिष्ठान और पांच प्रकार के फलों का भोग लगाएं.
मां स्कंदमाता का अधिक से अधिक ध्यान करें.
मां की आरती कर आशीर्वाद लें.
स्कंदमाता की आरती
जय तेरी हो स्कंद माता, पांचवा नाम तुम्हारा आता.
सब के मन की जानन हारी, जग जननी सब की महतारी.
तेरी ज्योति जलाता रहूं मैं, हरदम तुम्हे ध्याता रहूं मैं.
कई नामों से तुझे पुकारा, मुझे एक है तेरा सहारा.
कहीं पहाड़ों पर है डेरा, कई शहरों में तेरा बसेरा.
हर मंदिर में तेरे नजारे गुण गाये, तेरे भगत प्यारे भगति.
अपनी मुझे दिला दो शक्ति, मेरी बिगड़ी बना दो.
इन्दर आदी देवता मिल सारे, करे पुकार तुम्हारे द्वारे.
दुष्ट दत्य जब चढ़ कर आये, तुम ही खंडा हाथ उठाये
दासो को सदा बचाने आई, चमन की आस पुजाने आई