रायपुर : भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डेनमार्क दौरे पर डेनिश राजघराने के सदस्यों से मुलाकात की. इस दौरान पीएम मोदी ने क्राउन प्रिंस को एक अनमोल तोहफा भेंट किया. ये तोहफा था छत्तीसगढ़ कला से बना ढोकरा नाव. ये ढोकरा नाव अब सोशल मीडिया में काफी लोकप्रिय हो (fame of Dhokra Art of Chhattisgarh) रहा है. काफी लोग अब ये जानने की कोशिश कर रहे हैं आखिर ये ढोकरा आर्ट क्या है. किस जगह पर इस आर्ट को महारत हासिल है. यही नहीं ये कितने साल पुराना है. आज हम आपको बताएंगे ढोकरा आर्ट से जुड़ी हर एक जानकारी.
4 हजार साल पुरानी कला : ढोकरा आर्ट का इतिहास इसके नाम के अनुरूप ही काफी पुराना है. पुरातत्वविदों के मुताबिक ढोकरा आर्ट 4 हजार साल पुराना है. मोहन जोदड़ो में खुदाई के दौरान ढोकरा आर्ट से जुड़े कई अवशेष बरामद किए गए हैं. छत्तीसगढ़ का कोंडागांव जिला देश में सबसे पुरानी ढोकरा आर्ट की कलाकृतियां (Artifacts of Dhokra Art)बनाने में प्रसिद्ध हैं. यहां के कलाकारों की ओर से बनाई गई ढोकरा आर्ट की पहचान दुनियाभर में है. देशभर में ढोकरा आर्ट के कई मुरीद हैं. छत्तीसगढ़ में कोंडागांव के अलावा रायगढ में भी ढोकरा आर्ट से कलाकृति बनाई जाती है. यहां के कलाकारों को राष्ट्रपति समेत कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया है.
कोंडागांव और रायगढ़ में कई कारीगर : कोंडागांव और रायगढ़ जिले के गांवों में ढोकरा आर्ट से जुड़े कई कलाकार हैं. लेकिन कोंडागांव के भेलवापारा और रायगढ़ के एकताल के हर घर में ढोकरा आर्ट के कलाकार हैं. राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित एकताल के ढोकरा आर्ट कलाकार धनीराम ने टेलीफोनिक बातचीत में बताया कि उनकी कई पीढियां ढोकरा आर्ट से जुड़ी हुईं हैं. इस शिल्पकला में आदिवासी देवी देवताओं की मूर्ति, नाव, मछली, कछुआ और पशु-पक्षियों की प्रतिमा बनाई जाती है. यह कलाकृतियां जितनी खूबसूरत होती है. उतनी की आकर्षक भी होती है. इसकी मांग विदेश में सर्वाधिक है.
कैसे बनाया जाता है ढोकरा आर्ट : कलाकार धनीराम के मुताबिक "सबसे पहले मिट्टी का ढांचा तैयार किया जाता है. ढांचे पर मोम से कलाकारी की जाती है. फिर उसे सूखने के लिए रख दिया जाता है. मोम के सूखने के बाद उस पर नदी की चिकनी मिट्टी का लेप चढ़ाने के बाद उसे दोबारा सुखाया जाता है. जब मोम के ऊपर लगी मिट्टी पूरी तरह से सूख जाती है, तो उसे आग में तपाया जाता है. आग में तपने की वजह से मोम पूरी तरह पिघल जाता है और जगह खाली हो जाती है. जिसके बाद खाली जगह पर पीतल को पिघलाकर भरा जाता है. उसके बाद मिट्टी को निकाल लिया जाता है. जिससे जो आकृति मिट्टी में बनी रहती है. उसके बाद मोम के पिघलने से आकृति तैयार होती है. वही पीतल का मूर्त रूप ले लेती है. मूर्ति के तैयार होने के बाद उसे साफ किया जाता है. मूर्ति की ज्यादातर सफाई हाथ या फिर छोटी-छोटी छैनी, हथौड़े से की जाती है. कुछ मूर्तियां बड़ी होती है जिनकी सफाई हाथ के अलावा मशीन से होती है.''