रायपुर: रायपुर में संस्कृति विभाग में ड्रामा डायरेक्टर योग मिश्रा ने डायरेक्टर विवेक आचार्य पर बदसलूकी का आरोप लगाया था. इसी कड़ी में विभाग के उपसंचालक उमेश मिश्रा के द्वारा कलाकारों, विधायकों और मंत्रियों की अनदेखी पर पहले निलंबन और अब बहाली कर दी गई.
योग मिश्रा ने संस्कृति विभाग के अधिकारियों के साथ बीते अपने अनुभवों को भी ईटीवी भारत से साझा किया. योग मिश्रा ने कहा कि सरकार का काम होता है योजना बनाना और उन योजनाओं के क्रियान्वयन की जवाबदारी अधिकारियों की होती है. लेकिन ये अधिकारी अपनी जवाबदारी सही ढंग से नहीं निभा रहे हैं. इस वजह से इन योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों को नहीं मिल पा रहा है. उन्होंने कहा कि आज भारत भवन बनाने की पहल की जा रही है लेकिन कलाकारों की सुधि विभाग नहीं ले रहा है.
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कला और कलाकारों को बचाने की अपील
ऐसे में सिर्फ भारत भवन बना कर क्या फायदा होगा? जब कलाकारों को ही उसका लाभ नहीं मिलेगा. बाहर से कलाकार बुलाए जाएंगे. यदि कलाकारों के लिए ही कुछ करना है तो पहले रंगमंच के लिए यहां माहौल बनाना होगा. उसके बाद बाकी व्यवस्थाएं करनी होंगी. योग मिश्रा का कहना है कि मंत्री भी इस विभाग पर नकेल कसने में नाकाम रहे हैं. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जो अधिकारी जनप्रतिनिधियों का फोन नहीं उठाते, मंत्री विधायकों की बात नहीं सुनत, उसे निलंबित किया जाता है. बाद में वह बिना माफी मांगे बहाल हो जाता है. मिश्रा ने कहा कि यदि स्थिति जल्द सामान्य नहीं हुई तो आने वाले समय में कला से जुड़े लोग और परेशान होंगे. हो सकता है कि वह इस रास्ते से भी अलग हो जाएं।
योग मिश्रा ने विवेक आचार्य पर लगाए थे यह आरोप
कुछ समय पहले एक ड्रामे से संबंधित काम के लिए योग्य मिश्रा संस्कृति विभाग के संचालक विवेक आचार्य के पास गए थे. यहां उनके साथ बदसलूकी की गई. हालांकि बाद में उन्होंने अपने साथ हुई बदसलूकी को एक ड्रामे के रूप में लोगों तक पहुंचाया. उस ड्रामे का नाम था 'संस्कृति विभाग तुम्हारे बाप का नहीं'. जो ड्रामे का नाम था इसी शब्द का इस्तेमाल करने का आरोप योग मिश्रा ने संस्कृति विभाग के संचालक विवेक आचार्य पर लगाया था और विरोध स्वरूप इस नाटक का मंचन किया गया.
नाटक को लोगों ने किया था काफी पसंद
इसकी लोगों के द्वारा जमकर सराहना की गई. इस दौरान संस्कृति और कला से जुड़े लोगों ने भी संस्कृति विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए थे. विरोध स्वरूप किए गए इस ड्रामे का असर शासन-प्रशासन पर नहीं हुआ. ना तो विभाग में आचार्य के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई और ना ही सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लिया. उसके बाद हाल ही में संस्कृत के उपसंचालक उमेश मिश्रा का मामला सामने आया है. उन्हें पहले जनप्रतिनिधियों का फोन नहीं उठाने और काम में लापरवाही बरतने के लिए निलंबित किया गया और बाद में बहाल कर दिया गया. इस बात की पुष्टि खुद संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत ने की. इस पूरे घटनाक्रम के बीच एक बात सामने आ रही है कि संस्कृति विभाग में अफसरशाही हावी होता जा रही है. विभाग के अफसर ना तो कलाकारों की सुन रहे हैं और ना ही सरकार में बैठे जनप्रतिनिधियों को महत्व दे रहे हैं. यही वजह है कि गाहे-बगाहे संस्कृति विभाग की गतिविधियां चर्चा में बनी रहती हैं.