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dhamtari gangrel dam: गंगरेल में 6 साल से लोगों की एंट्री बैन, स्थानीय लोगों ने खोला मोर्चा

dhamtari gangrel dam धमतरी में राज्य शासन से कोई आदेश नहीं होने के बावजूद जिले के जल संसाधन विभाग ने 6 साल से गंगरेल बांध के अंदर लोगो की एंट्री बैन कर रखी है. स्थानीय लोगों ने इस मुद्दे पर विभाग के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. इस तरह के बेतुके आदेश के खिलाफ आंदोलन की रूपरेखा बनाई जा रही है.

dhamtari gangrel dam
धमतरी का गंगरेल बांध
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Published : Oct 6, 2022, 12:41 PM IST

धमतरी: धमतरी के गंगरेल बांध के गेट के बंद होने का मुद्दा अब तूल पकड़ता (dhamtari gangrel dam) जा रहा है. बीते 6 साल से ये गेट आम पर्यटको के लिये बंद (dhamtari gangrel dam gate closed for six years ) है. यहां आने वाले हजारो पर्यटक निराश होकर लौटते है. राज्य शासन से कोई आदेश नही होने के बावजूद जिले के जलसंसाधन विभाग की ये मनमानी है. आखिर क्या है ये सारा मामला क्यो इस तरह के बेतुके आदेश दिये गए. हमने इसकी पड़ताल की है.

1977 में बन कर तैयार हुआ गंगरेल बांध: 1977 में बन कर तैयार हुआ गंगरेल बांध शुरू से ही पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करता रहा है. खास तौर पर बरसात के मौसम में जब बांध लबालब भरा होता है. इसके गेट खुले होते हैं. भारी भरकम मशीनें, हरे भरे पहाड़ों के बीच दूर तक पानी ही पानी, ये सारा नजारा रोमांचित करने वाला होता है. इसी नजारे को देखने हर छुट्टी के दिन यहां हजारो पर्यटक आते हैं. पर्यटको की इसी भीड़ के कारण यहां सरकारी मोटेल के अलावा निजी होटेल भी बड़ी संख्या में खुल रहे है. एक नया पर्यटन उद्योग खड़ा हो रहा है. लेकिन 6 साल से पर्यटक उस रोमांच का आनंद नहीं ले पा रहे है. जिसके लिये वो दूर दराज से गंगरेल तक आते हैं. लोगो को निराश होकर लौैटना पड़ता है. इस हिस्से में इंट्री बैन होने से यहां मौजूद व्यवसाय भी ठप होने लगा है.


प्रशासन स्तर पर नहीं लगाया कोई प्रतिबंध: जल संसाधन विभाग ने गंगरेल बांध के अंदर लोगो की एंट्री बैन कर रखा है. जबकि एक समय वो भी था. जब पर्यटन बोर्ड यहां लोगो को आकर्षित करने के लिये खुद संसाधन मुहैया करवाता था. जलसंसाधन विभाग के इस अजीबो गरीब आदेश की जब पड़ताल की गई, तो पता चला कि ये एकतरफा मनमानी है. सरकारी दस्तावेज बताते हैं कि राज्य सरकार या प्रशासन स्तर से इस तरह का कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है. जिले के ही अधिकारियों ने ये सब किया है.

यह भी पढ़ें: धमतरी में भाजपा ने किया एसपी दफ्तर के सामने हंगामा, NSUI नेता पर FIR की मांग

होटल व्यवसायियों का अधिकारियों में मिलीभगत: माना जा रहा है कि होटेल व मोटेल से जुड़े कुछ व्यवसायियों से अधिकारियों की सांठ गांठ है. इस तरह के प्रतिबंध की आड़ में पर्यटकों की भीड़ को एक खास इलाके की तरफ डायवर्ट करने की साजिश चल रही है. हांलाकि अब धमतरी के स्थानीय लोगों ने इस मुद्दे पर मोर्चा खोल दिया है. इस तरह के बेतुके आदेश के खिलाफ आंदोलन की रूपरेखा बनाई जा चुकी है.

धमतरी विधायक ने बताया जनविरोधी फैसला: अब ये मुद्दा आम लोगो की भावना से जुड़ा हुआ है, तो राजनीति भी होने लगी है. धमतरी विधायक रंजना साहू ने इसे जनविरोध फैसला बता रही है, साथ ही इसकी जांच भी करवाने की बात कर रही है.

लोगों को बांध के अंदर की सैर करवाने पर विचार जारी: इतना ही नहीं पर्यटकों के लिये बने हुए गार्डन को भी ठेके पर दे दिया गया है. ठेकेदार मनमर्जी से कुछ भी निर्माण करवा रहे हैं. कोई भूत दिखा रहा है, तो कोई रेस्टोरेंट खड़ा कर रहा है. जिला प्रशासन ने इस मामले में बताया कि "सुरक्षा के मद्दे नजर प्रतिबंध लगाए गए हैं." धमतरी कलेक्टर पीएस एल्मा ने अपनी योजना बताते हुए कहा कि "भविष्य में फिर से बस के जरिये लोगों को बांध के अंदर की सैर करवाने पर विचार किया जा रहा है."

पर्यटन माफियाओं का जाल: बड़ी आशंका यही है कि इसके पीछे पर्यटन माफिया का जाल हो सकता है. राजधानी से लेकर जिला स्तर के ब्यूरोक्रेट तक इसके हिस्सेदार हो सकते है. क्योंकि हर छुट्टी में यहां हजारो लोग आते है और हर दिन लाखों का कारोबार होता है. देखना होगा कि स्थानिय लोगों के आंदोलन से क्या ये समस्या खत्म होती है या नहीं.

धमतरी: धमतरी के गंगरेल बांध के गेट के बंद होने का मुद्दा अब तूल पकड़ता (dhamtari gangrel dam) जा रहा है. बीते 6 साल से ये गेट आम पर्यटको के लिये बंद (dhamtari gangrel dam gate closed for six years ) है. यहां आने वाले हजारो पर्यटक निराश होकर लौटते है. राज्य शासन से कोई आदेश नही होने के बावजूद जिले के जलसंसाधन विभाग की ये मनमानी है. आखिर क्या है ये सारा मामला क्यो इस तरह के बेतुके आदेश दिये गए. हमने इसकी पड़ताल की है.

1977 में बन कर तैयार हुआ गंगरेल बांध: 1977 में बन कर तैयार हुआ गंगरेल बांध शुरू से ही पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करता रहा है. खास तौर पर बरसात के मौसम में जब बांध लबालब भरा होता है. इसके गेट खुले होते हैं. भारी भरकम मशीनें, हरे भरे पहाड़ों के बीच दूर तक पानी ही पानी, ये सारा नजारा रोमांचित करने वाला होता है. इसी नजारे को देखने हर छुट्टी के दिन यहां हजारो पर्यटक आते हैं. पर्यटको की इसी भीड़ के कारण यहां सरकारी मोटेल के अलावा निजी होटेल भी बड़ी संख्या में खुल रहे है. एक नया पर्यटन उद्योग खड़ा हो रहा है. लेकिन 6 साल से पर्यटक उस रोमांच का आनंद नहीं ले पा रहे है. जिसके लिये वो दूर दराज से गंगरेल तक आते हैं. लोगो को निराश होकर लौैटना पड़ता है. इस हिस्से में इंट्री बैन होने से यहां मौजूद व्यवसाय भी ठप होने लगा है.


प्रशासन स्तर पर नहीं लगाया कोई प्रतिबंध: जल संसाधन विभाग ने गंगरेल बांध के अंदर लोगो की एंट्री बैन कर रखा है. जबकि एक समय वो भी था. जब पर्यटन बोर्ड यहां लोगो को आकर्षित करने के लिये खुद संसाधन मुहैया करवाता था. जलसंसाधन विभाग के इस अजीबो गरीब आदेश की जब पड़ताल की गई, तो पता चला कि ये एकतरफा मनमानी है. सरकारी दस्तावेज बताते हैं कि राज्य सरकार या प्रशासन स्तर से इस तरह का कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है. जिले के ही अधिकारियों ने ये सब किया है.

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होटल व्यवसायियों का अधिकारियों में मिलीभगत: माना जा रहा है कि होटेल व मोटेल से जुड़े कुछ व्यवसायियों से अधिकारियों की सांठ गांठ है. इस तरह के प्रतिबंध की आड़ में पर्यटकों की भीड़ को एक खास इलाके की तरफ डायवर्ट करने की साजिश चल रही है. हांलाकि अब धमतरी के स्थानीय लोगों ने इस मुद्दे पर मोर्चा खोल दिया है. इस तरह के बेतुके आदेश के खिलाफ आंदोलन की रूपरेखा बनाई जा चुकी है.

धमतरी विधायक ने बताया जनविरोधी फैसला: अब ये मुद्दा आम लोगो की भावना से जुड़ा हुआ है, तो राजनीति भी होने लगी है. धमतरी विधायक रंजना साहू ने इसे जनविरोध फैसला बता रही है, साथ ही इसकी जांच भी करवाने की बात कर रही है.

लोगों को बांध के अंदर की सैर करवाने पर विचार जारी: इतना ही नहीं पर्यटकों के लिये बने हुए गार्डन को भी ठेके पर दे दिया गया है. ठेकेदार मनमर्जी से कुछ भी निर्माण करवा रहे हैं. कोई भूत दिखा रहा है, तो कोई रेस्टोरेंट खड़ा कर रहा है. जिला प्रशासन ने इस मामले में बताया कि "सुरक्षा के मद्दे नजर प्रतिबंध लगाए गए हैं." धमतरी कलेक्टर पीएस एल्मा ने अपनी योजना बताते हुए कहा कि "भविष्य में फिर से बस के जरिये लोगों को बांध के अंदर की सैर करवाने पर विचार किया जा रहा है."

पर्यटन माफियाओं का जाल: बड़ी आशंका यही है कि इसके पीछे पर्यटन माफिया का जाल हो सकता है. राजधानी से लेकर जिला स्तर के ब्यूरोक्रेट तक इसके हिस्सेदार हो सकते है. क्योंकि हर छुट्टी में यहां हजारो लोग आते है और हर दिन लाखों का कारोबार होता है. देखना होगा कि स्थानिय लोगों के आंदोलन से क्या ये समस्या खत्म होती है या नहीं.

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