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ऐसी अदालत जहां देवी देवता को भी मिलती है सजा - भंगाराव माई का दरबार है देवताओं का न्यायालय

भंगाराव माई का दरबार देवी देवताओं को इंसाफ देने के लिए जाना जाता है. अदालतों से लेकर आम परंपराओं में भी देवी देवताओं की कसमें खाई जाती हैं. लेकिन उन्हीं देवी देवताओं को यदि न्यायालय की प्रक्रिया से गुजरना पड़े, तो यह वाकई में अनूठी परंपरा है. जो इस आधुनिकता के दौर में शायद ही कहीं दिखाई दे.

devils and gods court
देवी देवता को सजा देने वाला कोर्ट
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Published : Aug 27, 2022, 10:24 PM IST

धमतरी: छत्तीसगढ़ में कई ऐसे परंपरा और देव व्यवस्था है, जो आदिम संस्कृति की पहचान बनी हुई है. कुछ ऐसी ही परपंरा धमतरी जिले के वनाचंल इलाके में भी दिखाई देती है. यहां गलती करने पर देवी देवताओं को भी सजा मिलती है. ये सजा बकायदा न्यायधीश कहे जाने वाले देवताओं के मुखिया देते हैं. वहीं शैतान और देवी देवताओं को दैवीय न्यायालय की प्रक्रिया (devils and gods also gets punishment In this court) से भी गुजरना पड़ता है.

यात्रा से इलाके के लोगों की जुड़ी है आस्था: जिले के कुर्सीघाट बोराई में हर साल भादो माह की इस नीयत तिथि पर आदिवासी देवी देवताओं के न्यायधीश भंगा राव माई का यात्रा होता है. जिसमें बीस कोस बस्तर और सात पाली ओडिशा सहित सोलह परगना सिहावा के देवी देवता शिरकत करते हैं. सदियों से चली आ रही इस अनोखी प्रथा और न्याय के दरबार का साक्षी बनने 27 अगस्त को हजारों की तादाद में लोग पहुंचे. इस जात्रा से इलाके के सभी वर्ग और समुदाय के लोगों की आस्था जुड़ी है. कुवरपाट और डाकदार की अगुवाई मे यह जात्रा पूरे विधि विधान के साथ संपन्न हुई.

देवी देवता को सजा देने वाला कोर्ट
भंगाराव माई का दरबार है देवताओं का न्यायालय: कुर्सीघाट बोराई में सदियों पुराना भंगाराव माई का दरबार है. इसे देवी देवताओं के न्यायालय के रूप में जाना जाता है. ऐसा माना जाता है कि भंगाराव माई की मान्यता के बिना क्षेत्र में कोई भी देवी देवता कार्य नहीं कर सकते. वहीं इस विशेष न्यायालय स्थल पर महिलाओं का आना प्रतिबंधित है. मान्यता है कि आस्था और विश्वास के चलते जिन देवी देवताओं की लोग उपासना करते हैं. अगर वही देवी देवता अपने कर्तव्य का निर्वहन न करे, तो उन्हें शिकायत के आधार पर भंगाराव माई सजा देते हैं. सुनवाई के दौरान देवी देवता एक कठघरे में खड़े होते हैं. यहां भंगाराव माई न्यायाधीश के रूप में विराजमान होते हैं. माना जाता है कि सुनवाई के बाद यहां अपराधी को दंड और वादी को इंसाफ मिलता है.


यह भी पढ़ें: VIDEO: बच्चे को जिंदा करने के लिए तांत्रिक ने कब्र से निकाला शव, जानें फिर क्या हुआ


शैतान और देवी देवताओं का कारागार: गांव में होने वाली किसी प्रकार की कष्ट और परेशानी जब दूर नहीं होती. ऐसी स्थिति में गांव में स्थापित देवी-देवताओं को ही दोषी माना जाता है. विदाई स्वरूप उक्त देवी देवताओं के नाम से चिन्हित बकरी या मुर्गी को लेकर ग्रामीण साल में एक बार लगने वाले भंगाराव जात्रा में पहुंचते है.साथ में लाट, बैरंग, डोली को नारियल फूल चावल के साथ भी लाया जाता है. यहां भंगाराव माई की उपस्थिति में कई गांवों से आए शैतान और देवी देवताओं की एक एक कर शिनाख्ती की जाती है. इसके बाद आंगा, डोली, लाड, बैरंग के साथ लाए गए मुर्गी, बकरी, डांग को खाईनुमा गहरे गड्ढे किनारे फेंक दिया जाता है. ग्रामीण इसे कारागार कहते हैं.

कई पीढ़ी बाद देवता ने बदला चोला: पूजा अर्चना के बाद देवी देवताओं पर लगने वाले आरोपों की गंभीरता से सुनवाई होती है.आरोपी पक्ष की ओर से दलील पेश करने सिरहा, पुजारी, गायता, माझी, पटेल सहित ग्राम के प्रमुख उपस्थित होते हैं. दोनों पक्षों की गंभीरता से सुनवाई के पश्चात आरोप सिद्ध होने पर फैसला सुनाया जाता है. मान्यता है कि दोषी पाए जाने पर इसी तरह से देवी देवताओं को सजा दी जाती है. कुंदन साक्षी ने बताया कि "इस साल यह यात्रा इसलिए और महत्वपूर्ण हो गई है, क्योंकि कई पीढ़ी बाद इस बार देवता ने अपना चोला बदला है."

धमतरी: छत्तीसगढ़ में कई ऐसे परंपरा और देव व्यवस्था है, जो आदिम संस्कृति की पहचान बनी हुई है. कुछ ऐसी ही परपंरा धमतरी जिले के वनाचंल इलाके में भी दिखाई देती है. यहां गलती करने पर देवी देवताओं को भी सजा मिलती है. ये सजा बकायदा न्यायधीश कहे जाने वाले देवताओं के मुखिया देते हैं. वहीं शैतान और देवी देवताओं को दैवीय न्यायालय की प्रक्रिया (devils and gods also gets punishment In this court) से भी गुजरना पड़ता है.

यात्रा से इलाके के लोगों की जुड़ी है आस्था: जिले के कुर्सीघाट बोराई में हर साल भादो माह की इस नीयत तिथि पर आदिवासी देवी देवताओं के न्यायधीश भंगा राव माई का यात्रा होता है. जिसमें बीस कोस बस्तर और सात पाली ओडिशा सहित सोलह परगना सिहावा के देवी देवता शिरकत करते हैं. सदियों से चली आ रही इस अनोखी प्रथा और न्याय के दरबार का साक्षी बनने 27 अगस्त को हजारों की तादाद में लोग पहुंचे. इस जात्रा से इलाके के सभी वर्ग और समुदाय के लोगों की आस्था जुड़ी है. कुवरपाट और डाकदार की अगुवाई मे यह जात्रा पूरे विधि विधान के साथ संपन्न हुई.

देवी देवता को सजा देने वाला कोर्ट
भंगाराव माई का दरबार है देवताओं का न्यायालय: कुर्सीघाट बोराई में सदियों पुराना भंगाराव माई का दरबार है. इसे देवी देवताओं के न्यायालय के रूप में जाना जाता है. ऐसा माना जाता है कि भंगाराव माई की मान्यता के बिना क्षेत्र में कोई भी देवी देवता कार्य नहीं कर सकते. वहीं इस विशेष न्यायालय स्थल पर महिलाओं का आना प्रतिबंधित है. मान्यता है कि आस्था और विश्वास के चलते जिन देवी देवताओं की लोग उपासना करते हैं. अगर वही देवी देवता अपने कर्तव्य का निर्वहन न करे, तो उन्हें शिकायत के आधार पर भंगाराव माई सजा देते हैं. सुनवाई के दौरान देवी देवता एक कठघरे में खड़े होते हैं. यहां भंगाराव माई न्यायाधीश के रूप में विराजमान होते हैं. माना जाता है कि सुनवाई के बाद यहां अपराधी को दंड और वादी को इंसाफ मिलता है.


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शैतान और देवी देवताओं का कारागार: गांव में होने वाली किसी प्रकार की कष्ट और परेशानी जब दूर नहीं होती. ऐसी स्थिति में गांव में स्थापित देवी-देवताओं को ही दोषी माना जाता है. विदाई स्वरूप उक्त देवी देवताओं के नाम से चिन्हित बकरी या मुर्गी को लेकर ग्रामीण साल में एक बार लगने वाले भंगाराव जात्रा में पहुंचते है.साथ में लाट, बैरंग, डोली को नारियल फूल चावल के साथ भी लाया जाता है. यहां भंगाराव माई की उपस्थिति में कई गांवों से आए शैतान और देवी देवताओं की एक एक कर शिनाख्ती की जाती है. इसके बाद आंगा, डोली, लाड, बैरंग के साथ लाए गए मुर्गी, बकरी, डांग को खाईनुमा गहरे गड्ढे किनारे फेंक दिया जाता है. ग्रामीण इसे कारागार कहते हैं.

कई पीढ़ी बाद देवता ने बदला चोला: पूजा अर्चना के बाद देवी देवताओं पर लगने वाले आरोपों की गंभीरता से सुनवाई होती है.आरोपी पक्ष की ओर से दलील पेश करने सिरहा, पुजारी, गायता, माझी, पटेल सहित ग्राम के प्रमुख उपस्थित होते हैं. दोनों पक्षों की गंभीरता से सुनवाई के पश्चात आरोप सिद्ध होने पर फैसला सुनाया जाता है. मान्यता है कि दोषी पाए जाने पर इसी तरह से देवी देवताओं को सजा दी जाती है. कुंदन साक्षी ने बताया कि "इस साल यह यात्रा इसलिए और महत्वपूर्ण हो गई है, क्योंकि कई पीढ़ी बाद इस बार देवता ने अपना चोला बदला है."

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