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बंगाली महिलाओं ने मां दुर्गा के साथ सिंदूर खेला की परंपरा निभाई, नृत्य कर मां को किया विदा

Sindoor Khela in bilaspur बिलासपुर के मिलन मंदिर कालीबाड़ी में दुर्गा विसर्जन के पहले बंगाली महिलाओं ने सिंदूर खेला की परंपरा को निभाया. जिसके बाद महिलाओं ने मां दुर्गा की विदाई दी. महिलाओ ने मां को विदाई देने के समय निभाई जाने वाली सारी परंपरा पूरी की. मां को सिंदूर लगाकर सिंदूर खेला की परंपरा निभाई गई. इस मौके पर बंगाली समाज की महिलाओं ने एक दूसरे को सिंदूर लगाई और नृत्य किया.

Bengali women followed the tradition of playing vermilion
बंगाली महिलाओं ने सिंदूर खेला की परंपरा निभाई
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Published : Oct 5, 2022, 8:51 PM IST

बिलासपुर: पूरे देश में सबसे ज्यादा दुर्गा पूजा और नवरात्रि के पर्व को पश्चिम बंगाल में धूमधाम से मनाया जाता है. यहां देवी दुर्गा की आराधना की परंपरा सदियों से चली आ रही है. दुर्गा उत्सव में बंगाली समाज विशेष ढंग से मां की पूजा अर्चना कर भक्तिभाव से उनकी सेवा करता है. कई अलग अलग तरह की पूजा भी बंगाली समाज के लोग करते हैं. बिलासपुर के बंगाली समाज द्वारा गोंड़पारा स्थित मिलन मंदिर कालीबाड़ी में दुर्गा स्थापना कर उनकी पूजा की गई. Sindoor Khela in bilaspur

बंगाली महिलाओं ने सिंदूर खेला की परंपरा निभाई

सिंदूर खेला की परंपरा निभाई: विसर्जन के पूर्व बंगाली परंपरा के अनुसार यहां सिंदूर खेला का आयोजन किया गया. महिलाएं इस मौके पर जहां देवी की स्थापना की, वहां से हटाकर दूसरी जगह उन्हें रखकर सिंदूर खेला की परंपरा निभाई. इस परंपरा के अनुसार जैसे एक बेटी को विवाह पश्चात ससुराल के लिए विदा करते समय जो परंपरा निभाई जाती है, वैसे ही मां दुर्गा के विसर्जन को मां के ससुराल जाना कहा जाता है और विदाई दी जाती है.

Played the tradition of playing vermilion with Maa Durga
मां दुर्गा के साथ सिंदूर खेला की परंपरा निभाई

मीठा खिला कर देवी मां को किया विदा : विदाई के समय बेटी रोती है और परिवार वालों को छोड़ने के वियोग में उसके आंखों से आंसू बहते हैं. उसी तरह माना जाता है कि मां दुर्गा भी मायका छोड़ अपने ससुराल जाती है और उनकी आंखों से आंसू बहते हैं. वह रोती है, तब घर की महिलाएं मां के आंसू पान के पत्तों से पोछती हैं और अपना प्यार जताती है. इसके अलावा मां की मांग सिंदूर से भरी जाती है और मीठा खिला कर मां को विदा करती है. बंगाली महिलाएं इस मौके पर एक दूसरे को भी सिंदूर लगाकर मीठा खिलाती है और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है. आने वाले वर्षों में विपदाएं, विपत्ति और तकलीफों को दूर करने मां दुर्गा से कामना किया जाता है.

यह भी पढ़ें: Devi idol immersion in Raipur : जवारा के साथ देवी की मूर्तियों का विसर्जन


क्या है विदाई की परंपरा: सिंदूर खेला के दौरान महिलाएं मां दुर्गा को मिठाई खिलाकर उनको विदा करते हुए रोती है और एक अलग तरह से आवाज निकालती है. जिससे ये दर्शाया जाता है कि मां के विदाई से उन्हें बहुत दुख हो रहा है. मां से लिपटकर रोती है और उन्हें ससुराल में खुश रहने की बात कहती है.

सिंदूर खेला के बाद करते है मछली भोग: पश्चिम बंगाल में मछली को पवित्र माना जाता है और उसकी पूजा भी की जाती है. दुर्गा विसर्जन के बाद मछली भोग की परंपरा है. ऐसा माना जाता है कि मछली परिवार का पेट पालती है. वह व्यापार का मुख्य स्रोत है और घरों में मछली भोग से शांति बनी रहती है. यही कारण है कि मछली भोग किया जाता है. मछली भोग करने के कई कारण हैं.

मछली भोग की क्या है मान्यता: पश्चिम बंगाल और साउथ के कई इलाकों में मछली का व्यापार किया जाता है. मछली पकड़कर बेचकर पैसे कमाए जाते हैं. जैसे उत्तर भारत या कई राज्यों में चावल की पूजा की जाती है. वैसे ही मछली की पूजा की जाती है. धान की पूजा इस लिए की जाती है कि वह किसान का परिवार पालती है और वह उसका जीवन चलाता है. उसी प्रकार पहले पश्चिम बंगाल में मछली मुख्य व्यापार में शामिल था. यही कारण है कि दुर्गा पूजा के बाद सिंदूर खेला की परंपरा पूरी करने के बाद बंगाली समाज की महिलाएं मछली भोग करती हैं.

बिलासपुर: पूरे देश में सबसे ज्यादा दुर्गा पूजा और नवरात्रि के पर्व को पश्चिम बंगाल में धूमधाम से मनाया जाता है. यहां देवी दुर्गा की आराधना की परंपरा सदियों से चली आ रही है. दुर्गा उत्सव में बंगाली समाज विशेष ढंग से मां की पूजा अर्चना कर भक्तिभाव से उनकी सेवा करता है. कई अलग अलग तरह की पूजा भी बंगाली समाज के लोग करते हैं. बिलासपुर के बंगाली समाज द्वारा गोंड़पारा स्थित मिलन मंदिर कालीबाड़ी में दुर्गा स्थापना कर उनकी पूजा की गई. Sindoor Khela in bilaspur

बंगाली महिलाओं ने सिंदूर खेला की परंपरा निभाई

सिंदूर खेला की परंपरा निभाई: विसर्जन के पूर्व बंगाली परंपरा के अनुसार यहां सिंदूर खेला का आयोजन किया गया. महिलाएं इस मौके पर जहां देवी की स्थापना की, वहां से हटाकर दूसरी जगह उन्हें रखकर सिंदूर खेला की परंपरा निभाई. इस परंपरा के अनुसार जैसे एक बेटी को विवाह पश्चात ससुराल के लिए विदा करते समय जो परंपरा निभाई जाती है, वैसे ही मां दुर्गा के विसर्जन को मां के ससुराल जाना कहा जाता है और विदाई दी जाती है.

Played the tradition of playing vermilion with Maa Durga
मां दुर्गा के साथ सिंदूर खेला की परंपरा निभाई

मीठा खिला कर देवी मां को किया विदा : विदाई के समय बेटी रोती है और परिवार वालों को छोड़ने के वियोग में उसके आंखों से आंसू बहते हैं. उसी तरह माना जाता है कि मां दुर्गा भी मायका छोड़ अपने ससुराल जाती है और उनकी आंखों से आंसू बहते हैं. वह रोती है, तब घर की महिलाएं मां के आंसू पान के पत्तों से पोछती हैं और अपना प्यार जताती है. इसके अलावा मां की मांग सिंदूर से भरी जाती है और मीठा खिला कर मां को विदा करती है. बंगाली महिलाएं इस मौके पर एक दूसरे को भी सिंदूर लगाकर मीठा खिलाती है और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती है. आने वाले वर्षों में विपदाएं, विपत्ति और तकलीफों को दूर करने मां दुर्गा से कामना किया जाता है.

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क्या है विदाई की परंपरा: सिंदूर खेला के दौरान महिलाएं मां दुर्गा को मिठाई खिलाकर उनको विदा करते हुए रोती है और एक अलग तरह से आवाज निकालती है. जिससे ये दर्शाया जाता है कि मां के विदाई से उन्हें बहुत दुख हो रहा है. मां से लिपटकर रोती है और उन्हें ससुराल में खुश रहने की बात कहती है.

सिंदूर खेला के बाद करते है मछली भोग: पश्चिम बंगाल में मछली को पवित्र माना जाता है और उसकी पूजा भी की जाती है. दुर्गा विसर्जन के बाद मछली भोग की परंपरा है. ऐसा माना जाता है कि मछली परिवार का पेट पालती है. वह व्यापार का मुख्य स्रोत है और घरों में मछली भोग से शांति बनी रहती है. यही कारण है कि मछली भोग किया जाता है. मछली भोग करने के कई कारण हैं.

मछली भोग की क्या है मान्यता: पश्चिम बंगाल और साउथ के कई इलाकों में मछली का व्यापार किया जाता है. मछली पकड़कर बेचकर पैसे कमाए जाते हैं. जैसे उत्तर भारत या कई राज्यों में चावल की पूजा की जाती है. वैसे ही मछली की पूजा की जाती है. धान की पूजा इस लिए की जाती है कि वह किसान का परिवार पालती है और वह उसका जीवन चलाता है. उसी प्रकार पहले पश्चिम बंगाल में मछली मुख्य व्यापार में शामिल था. यही कारण है कि दुर्गा पूजा के बाद सिंदूर खेला की परंपरा पूरी करने के बाद बंगाली समाज की महिलाएं मछली भोग करती हैं.

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