बिलासपुर: दक्षिण भारत की परंपराओं की छटा बिलासपुर में भी बिखेरी जा रही है. बिलासपुर के 60 साल पुराने सुमुख गणेश मंदिर (sumukh Ganesh temple) में गणेश उत्सव का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. गणेश उत्सव को लेकर मंदिर (Glimpses of South India seen in Ganesh temple) में विशेष पूजा अर्चना की जा रही है. रेलवे कंस्ट्रक्शन कॉलोनी के सुमुख गणेश मंदिर में दक्षिण भारत शैली में पूजा अर्चना की जाती है. जो दक्षिण भारतीयों को अपने राज्य से जोड़ती है. उन्हें ये अहसास नहीं होता कि वे गणेश उत्सव बाहर नहीं बल्कि अपने राज्य और अपने शहर में मना रहे हैं.
दक्षिण भारतीय परंपरा से होती है पूजा: गणेश उत्सव को लेकर बिलासपुर में भक्ति का माहौल है. शहर कंट्राक्शन कालोनी में दक्षिण भारतीयों द्वारा निर्मित सुमुख गणेश मंदिर स्थापित है. इस मंदिर के गणेश प्रतिमा की कुछ अलग ही विशेषताएं हैं. इस मंदिर में दक्षिण भारतीय परंपरा के अनुसार ही पूजा पाठ होती है. ठीक उसी प्रकार बिलासपुर के सुमूख गणेश जी की पूजा की जाती है. मंदिर में 57 साल से विराजमान गणेश की प्रतिमा काले ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित है. मंदिर में जितने भी देवी देवताओं की प्रतिमा स्थापित है. वह सभी काले ग्रेनाइट पत्थर से दक्षिण भारत शैली में निर्मित हैं. यही खास बात है कि रेलवे कंस्ट्रक्शन कॉलोनी का गणेश मंदिर शहर के बाकी मंदिरों में अपनी अलग पहचान रखता है.
चतुर्थी में चंदन की गणेश प्रतिमा निर्मित कर की जाती है पूजा: श्री सुमुक्ष गणेश मंदिर में गर्भगृह के साथ ही यहां कि हर चीज में दक्षिण भारतीय परंपराओं की झलक देखी जा सकती है. भगवान की आरती में दक्षिण भारतीय भाषा, शैली और मंत्रोच्चारण से की जाती है. यहां गणेश चतुर्थी की शुरुआत से ही भगवान गणेश की पूजा के साथ धार्मिक अनुष्ठान व वैदिक मंत्रों के साथ गणपति का अभिषेक किया जाता है. प्रतिमा के ठीक नीचे सामने की ओर चंदन पाउडर से एक गणेश प्रतिमा बनाई जाती है. गणेश चतुर्थी में 10 दिन इसी गणेश प्रतिमा की विशेष पूजा की जाती है. भक्ति का अनूठा नजारा देखने को मिलता है. चंदन से बने गणेश के लिए चंदन रंग के साथ ही सफेद चंदन की प्रतिमा भी तैयार की जाती है.
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अभिषेक से बदल दी जाती है प्रतिमा का रंग: सुमुख गणेश मंदिर के मुख्य पुजारी ने बताया कि "गणेश प्रतिमा की जब भस्मारती चावल के आटे से अभिषेक और हल्दी के साथ ही चांदी अर्क से अभिषेक किया जाता है. तो प्रतिमा का रंग बदल जाता है. गणेश चतुर्थी पर्व के लिए सर्वप्रथम गणेश की प्रतिमा पर तिली के तेल और चंदन से लेप लगाया जाता है. उसके बाद पंचामृत और दूध-दही, फलों के रस से स्नान कराया गया जाता है. कलश के अभिषेक से पूजा संपन्न होती है. अभिषेक के बाद गणेश को अलंकार वस्त्र और चांदी के मुकुट के साथ फूलों से सजाया जाता है.
मंदिर का इतिहास: जानकर बताते है जब दक्षिण भारत के राज्यों से लोग रेलवे और दूसरी संस्थानों में काम करने बिलासपुर आए थे. उन्हें अपने यहां के मंदिर और देवताओं की पूजा करने की मन में इच्छा रहती थी. इस इच्छा को पूरा करने वो लोग सुमुख गणेश की प्रतिमा को सन 1965 में दक्षिण भारत के तमिलनाडु से लाया गया था. प्रतिमा काले रंग के ग्रेनाइट पत्थर से बनी है. उस समय रेलवे की जमीन खाली थी और मंदिर बनाने के लिए रेलवे का परमिशन के कार्य पूरे नही हो पाई थी. इस वजह से प्रतिमा को एक पेड़ के नीचे स्थापित किया गया था. बाद में मंदिर बनाने की सहमति रेलवे से मिलने के बाद मंदिर का निर्माण 1971 में किया गया. मंदिर दक्षिण भारत शैली में तैयार किया गया, इसमें चारों तरफ देवी देवताओं की प्रतिमा स्थापित की गई.
मंदिर का किया जा रहा पुनर्निर्माण: मंदिर चोटी होने पर इसका नया निर्माण किया जा रहा है. पहले की जनसंख्या और श्रद्धालुओं की संख्या के हिसाब से मंदिर का निर्माण कराया गया था. लेकिन संख्या के बढ़ने और ज्यादा श्रद्धालुओं के आने से मंदिर छोटी पड़ने लगी है. इसके चलते 6 माह पहले पुराने मंदिर को डिस्मेंटल कर मंदिर का नया निर्माण किया जा रहा रहा. अभी मंदिर पूरी तरह तैयार तो नहीं हो पाई है, लेकिन मंदिर का गर्भ गृह के साथ प्रांगण तैयार कर लिया गया है.
अभिषेक के बाद होती है विशेष पूजा: पूजा प्रतिदिन सहस्त्र अभिषेक सहस्त्रनामा अर्चना के साथ होती है. प्रतिदिन विशेष तरीके से अभिषेक किया जाता है. लेकिन अंतिम दिन विशेष पूजा होती है. इस दिन रुद्राभिषेक होगा. इसमें 11 पंडित एक साथ मिलकर सहस्त्र पाठ और 'जाप' करेंगे. गुप्त तरीके से जाप करने के बाद जो जल होता है, उससे गणपति जी का अभिषेक किया जाता है. इस दिन गणेश मंदिर के चारों ओर परिक्रमा करते हैं. चंदन लेपन, अलंकार किया जाएगा. इसके बाद भूसा को आहार मूषक वाहन में शोभायात्रा निकाली जाएगी. उसके बाद प्रसाद वितरण किया जाएगा. शोभायात्रा में प्रति वर्ष अधिक संख्या में भक्त शामिल होते हैं.