सरगुज़ा : आपने छत्तीसगढ़ के कई ऐतिहासिक धरोहरों (historical monuments)के बारे में सुना होगा. लेकिन सरगुजा का रघुनाथ पैलेस (Raghunath Palace), सरगुजा रियासत की कई गाथाओं को अपने अंदर समेट रखा है. इस महल का निर्माण सन 1895 से काफी पहले हुआ था. लेकिन 1895 में उत्तर मुख करते हुए इसे सम्पूर्ण आकार दिया गया और सरगुज़ा के तत्कालीन महाराज रघुनाथ शरण सिंहदेव (Maharaj Raghunath Sharan Singhdeo) के नाम पर इस पैलेस का नाम रघुनाथ पैलेस रखा गया. ये पैलेस हजारों यादों को संजोये हुये है. गुजरते वक्त के साथ पैलेस भी बूढ़ा हो चला है. दीवारों में दरार आ चुकी हैं लेकिन फिर भी यह अद्भुत है. इसे देखने पर एक अद्भुत विरासत को महसूस किया जा सकता है.
महारानी विजेश्वरी ने महल निर्माण में निभाई अहम भूमिका
इस पैलेस को बनाने और इसमें बेहतरीन साज सज्जा का श्रेय महारानी विजेश्वरी (Maharani Vijayeshwari) को जाता है. महारानी विजेश्वरी नेपाल राजघराने (Nepal Kingdom) से थी. जिनका विवाह सरगुज़ा राजपरिवार (Surguja royal family) में हुआ था. महारानी विजेश्वरी ने नेपाल के पैलेस की तर्ज पर नक्शा तैयार किया और इंजीनियर की टीम को पैलेस निर्माण का जिमा सौंपा गया. पैलेस के आंगन में बचपन से रहने वाले और राजपरिवार के करीबी गोविंद शर्मा बताते हैं कि, यह पैलेस 11 एकड़ जमीन में फैला हुआ था. जिसमे बॉटनिकल गार्डन (Botanical Garden) भी शामिल था. पैलेस में 7 आंगन हैं. मुख्य द्वार के बगल में एक कुंआ है. इस पैलेस के हर आंगन, हर चीज की अपनी एक कहानी है, बेहद खास है यहां की हर चीज. पैलेस के अंदर जाते ही पहला आंगन है. जिसमे शीशे के दरवाजे लगे हैं. इस दरवाजे के पीछे पीतल की सीढ़ी (brass ladder) है. पीतल सीढ़ी भी बेहद खास मकसद से बनवाई गई थी. असल में जब महाराज दरबार मे होते थे तो उन्हें खाना खाने या अन्य किसी काम से महारानी के कक्ष के क्षेत्र के आना होता था. तो लंबा रास्ता तय करना पड़ता था. महाराज समय के बड़े पाबंद थे जिसे देखते हुए पीतल की सीढ़ी बनाई गई. यह सीढ़ी महाराज के दरबार और महारानी के कक्ष का एक शॉर्ट कट रास्ता था. जब भी महारानी को महाराज से कोई काम होता वो इसी रास्ते से आकर अपनी बात कह देतीं. दरबार में महाराज को सूचना देने के लिए कॉल बेल लगाई गई थी.
पैलेस में कचहरी भी है मौजूद
इसके अलावा पहले आंगन से ही लगी हुई है कचहरी. जिसमें सैकड़ों आदमखोर जानवरों के शरीर बुत बनकर टंगे हुये हैं. महाराज विश्व विख्यात शिकारी थे और आदमखोर जानवरों के आतंक से परेशान होकर कई रियासतें उन्हें शिकार पर बुलाती थी. महाराज विश्व भर से जंगली जानवरों को मारकर उनकी खाल अपने साथ ले आते थे. जिन्हें आज भी रघुनाथ पैलेस के अंदर देखा जा सकता है. रत्नों से जड़े बड़े बड़े झूमर, अस्त्र शस्त्र आज भी रघुनाथ पैलेस की शान हैं. यहां अतीत के पन्नो में बंद हो चुकी ऐसी बहुत सी यादें हैं जिन्हें यहां आकर देखा और महसूस किया जा सकता है.
महल के पूर्वी हिस्से में है रानी तालाब
इसके पूर्वी हिस्से में रानी तालाब है. इस तालाब में रानियां तीज और छठ जैसे व्रत किया करती थीं. पैलेस के अंदर कृष्ण मंदिर है. जब इस मंदिर का निर्माण हुआ तो उस समय के प्रसिद्ध बेल्जियम ग्लास इस मंदिर में लगाये गये. यही बेल्जियम ग्लास फ़िल्म मुगले आजम की शूटिंग में भी स्तेमाल किये गए थे. इस ग्लास की वजह से मंदिर में जाने के बाद वो भूल भुलैया जैसी लगती थी. समझ नहीं आता था कि रास्ता कितना लंबा है या कितनी तस्वीरें वहां दिख रही हैं. यह मंदिर बेहद अद्भुत थी. आजादी के पहले रियासतों की सत्ता में रघुनाथ पैलेस गुलजार हुआ करता था. लेकिन अब यह सिर्फ राजपरिवार की विरासत और सरगुज़ा की धरोहर के रूप में पुरानी यादों को संजोए हुये एक महल रह गया है. जिसे एक बार भयंकर आगजनी ने तबाह किया. वहीं गुजरते वक्त के साथ यह पुरानी धरोहर खंडहर में तब्लीद हो रही है.
सरगुज़ा रियासत और रघुनाथ पैलेस के वर्तमान मालिक छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य एवं पंचायत मंत्री टी एस सिंहदेव हैं. उनके बाद इस वैभवशाली विरासत को संभालने की जिम्मेदारी टी एस सिंहदेव के भतीजे आदित्येश्वर शरण सिंहदेव को दे दी गई है.