सरगुजा: राष्ट्रीय पक्षी मोर (National Bird Peacock) ना सिर्फ देश की धरोहर है, बल्कि मोर के धार्मिक महत्व (Religious Significance Of Peacock) भी हैं. लिहाजा इसे लेकर कई किवदंतियां प्रचलित हैं. समाज में लोग अलग-अलग तरह की मान्यता मोर के विषय में बना कर रखे हैं.
कुछ वर्ष पूर्व एक विद्वान ने यह दावा किया था की मोर सहवास नहीं करते (Peacocks Don't Mate). कुछ लोग कहते हैं कि 'मोर योगी' (Peacock Yogi) होते हैं. इस तमाम सवालों का जवाब तलाशते ईटीवी भारत ने वरिष्ठ पशु चिकित्सक डॉ चंद्र कुमार मिश्रा से बात की...
डॉ चंद्र कुमार मिश्रा पशु चिकित्सक हैं और अम्बिकापुर में मोर के संरक्षण (Protection Of Peacocks) और उनके प्रजनन विकास (Reproductive Development) के लिये लंबे समय तक काम कर चुके हैं. आलम यह है की संजय पार्क अम्बिकापुर में पल रहे मोर चंद्र कुमार मिश्रा की आवाज सुनते ही चीखने लगते हैं और उनके पास चले आते हैं. जाहिर है, इन्होंने मोर के साथ लंबा समय बिताया है. इसलिए इनका अनुभव भी इनके साथ बड़ा है.
मोर-मोरनी के बीच होती है मेटिंग
हमने मोर के सहवास की सच्चाई इनसे जाना. डॉ मिश्रा ने साफ तौर पर कहा की समाज में फैली सारी बातें मिथक हैं. मोर सहवास करते हैं (Peacocks Mate). मोर-मोरनी के बीच मेटिंग होती है और उस मेटिंग से अंडे प्राप्त होते हैं. अंडों से 28 दिन के बाद बच्चे निकलते हैं. इन 28 में से 14-15 दिन तक मोरनी अंडों को गर्म करने उसके ऊपर बैठती है. इसी प्रक्रिया से मोर प्रजनन करते हैं. मुर्गी के जैसी ही प्रजनन क्रिया (Reproductive Activity) मोर में होती है.
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मुर्गियों का लेते हैं सहयोग
अम्बिकापुर के संजय पार्क में मोर की संख्या अधिक है और अंडों से सुरक्षित बच्चे निकालने की दिशा में यहां मोर के अंडों को गर्म करने के लिये मुर्गियों का सहारा लिया जाता है. पशु चिकित्सक (Veterinary Doctor) मुर्गी के पास मोर के अंडे रख देते हैं और मुर्गियां उन अंडों को अपने बच्चों की तरह ही गर्म कर प्रजनन में सहायता करती है. डॉ मिश्रा बताते हैं कि कुछ लोगों का मानना है कि मोर के आंसू को पी कर मोरनी अंडे देती है. यह कथन भी पूर्णतः गलत है. बिल्कुल भी वैज्ञानिक नहीं है. वैज्ञानिक तथ्य यह है कि मोर-मोरनी सहवास करते हैं और उससे प्राप्त अंडों से मोर के बच्चे निकलते हैं.